आगरा/नई दिल्ली 20 अगस्त । सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक आदेश में कहा कि किसी बच्चे की अस्थाई कस्टडी यदि किसी रिश्तेदार के पास है तो इससे अभिभावक का बच्चे की कस्टडी का प्राकृतिक अधिकार समाप्त नहीं हो जाता और नाबालिग बेटी की कस्टडी उसके पिता को दे दी।
घटनाक्रम के अनुसार कोविड 19 के दौरान नाबालिग की मां की दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु के बाद पिता ने अपनी नाबालिग बेटी की देखभाल के लिए अपनी भाभी से कहा था, क्योंकि बच्ची को महिला देखभाल की आवश्यकता थी। हालांकि, पुनर्विवाह के बाद अपीलकर्ता (पिता) ने अपनी भाभी से यह तर्क देते हुए कि अब वह और उसकी पत्नी नाबालिग बेटी की देखभाल कर सकते हैं ।अकसर होने वाली मुलाकातों से बच्ची ने अपने प्राकृतिक पिता और भाई के साथ मिलने के दौरान अच्छी तरह से तालमेल बिठा लिया है।
उन्होंने अपनी नाबालिग बेटी की कस्टडी मांगी। इस पर सुनवाई करते हुए जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने कहा,
“हमारी राय में केवल इसलिए कि अपीलकर्ता ने दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों का सामना किया, जिसके परिणामस्वरूप प्रतिवादी संख्या 5 और 6 को नाबालिग बच्चे की अस्थायी हिरासत दी गई। केवल इसलिए कि उन्होंने कुछ वर्षों तक उसकी देखभाल की, यह अपीलकर्ता को नाबालिग बच्चे की हिरासत से वंचित करने का आधार नहीं हो सकता, जो उसका एकमात्र प्राकृतिक अभिभावक है।”
न्यायालय ने पाया कि अपीलकर्ता/पिता, जो अच्छी तरह से शिक्षित हैं और सरकारी अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं, अपनी नाबालिग बेटी की देखभाल कर सकते हैं। यदि कस्टडी उन्हें हस्तांतरित की जा रही है।
जस्टिस बीआर गवई द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया,
“अपने बच्चों की देखभाल करने के अलावा, अपीलकर्ता अपने बच्चों को बेहतरीन शिक्षा सुविधाएं प्रदान कर सकता है। जिस बच्चे ने कम उम्र में अपनी मां को खो दिया, उसे उसके पिता और प्राकृतिक भाई की संगति से वंचित नहीं किया जा सकता। प्रासंगिक समय में अपीलकर्ता के पास अपने नवजात बच्चे के पालन-पोषण के लिए अपनी मृत पत्नी की बहनों पर निर्भर रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।”
न्यायालय ने अपीलकर्ता के इस तर्क को स्वीकार कर लिया कि पुनर्विवाह के पश्चात वह अपनी पत्नी के साथ मिलकर उसके बच्चे की देखभाल कर सकता है तथा कहा,
“रिकॉर्ड में प्रस्तुत तस्वीरों के अवलोकन से यह भी पता चलता है कि हाईकोर्ट तथा इस न्यायालय द्वारा दिए गए मुलाकात के अधिकार के अनुसार, नाबालिग बच्चे का परिवार के साथ अच्छा तालमेल है तथा चार सदस्यों वाला परिवार खुश दिखाई देता है।”
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न्यायालय ने तेजस्विनी गौड़ एवं अन्य बनाम शेखर जगदीश प्रसाद तिवारी एवं अन्य के मामले का उल्लेख किया, जिसमें न्यायालय ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस निर्णय की पुष्टि की, जिसमें मृतक मां के रिश्तेदारों को बच्चे की कस्टडी पिता को सौंपने का निर्देश दिया गया था।
न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला,
“जैसा कि ऊपर चर्चा की गई, हम पाते हैं कि अपीलकर्ता के प्राकृतिक अभिभावक होने के अलावा, नाबालिग बच्चे के कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए भी उसे अपने प्राकृतिक परिवार के साथ रहना चाहिए। नाबालिग बच्चा अभी बहुत छोटा है तथा वह बहुत कम समय में अपने प्राकृतिक परिवार के साथ बहुत अच्छी तरह से घुल-मिल जाएगा। इसलिए हम अपील स्वीकार करने के लिए इच्छुक हैं।”