कोर्ट ने कहा जमानत तय करने के लिए अभियुक्त का बयान पर्याप्त नहीं है, इसके लिए सभी कारकों पर विचार किया जाना चाहिए
आगरा / नई दिल्ली 09 अक्टूबर।
अदालत ने जेल नही, जमानत के सिद्धांत को दोहराया और कहा आरोपी द्वारा अपराध मे अपनी कथित संलिप्तता के बारे मे सीमा शुल्क अधिकारियों को दिया गया बयान, जमानत पर रिहा होने से रोकने के लिए पर्याप्त नही दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने हाल ही में ई-सिगरेट की तस्करी के आरोपी एक व्यक्ति को जमानत दे दी
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न्यायाधीश अभिषेक कुमार ने कहा कि आरोपी व्यक्ति द्वारा सीमा शुल्क अधिकारियों को अपराध में अपनी कथित संलिप्तता के बारे में दिया गया बयान उसे जमानत पर रिहा होने से रोकने के लिए पर्याप्त नहीं है।
अदालत ने जमानत नियम और जेल अपवाद के सिद्धांत को दोहराते हुए तथा यह देखते हुए कि उसे लगातार हिरासत में रखना आवश्यक नहीं है, आरोपी को जमानत देने का आदेश दिया।
न्यायाधीश ने कहा,
“… बरामदगी पहले ही हो चुकी है और आरोपी 24/08/2024 से हिरासत में है, वर्तमान मामले में आरोपी की आगे की हिरासत की आवश्यकता नहीं है… सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बार-बार दोहराया गया है कि जमानत नियम है और जेल अपवाद है और आरोपी को केवल इस आधार पर सलाखों के पीछे नहीं रखा जा सकता है कि उसने कोई अपराध किया है, क्योंकि यह दंडात्मक सजा का काम करता है जो जमानत आवेदनों पर विचार करते समय कानून का अधिदेश नहीं है।”
अदालत ने आरोपी को अन्य जमानत शर्तों के साथ जेल से रिहाई के लिए एक लाख रुपये का जमानत बांड जमा करने का निर्देश दिया।
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दिल्ली कोर्ट:
सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया है कि जमानत नियम है और जेल अपवाद है।
राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) द्वारा 23 अगस्त को विभिन्न स्थानों पर तलाशी अभियान के बाद आरोपी व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया। तलाशी में बड़ी मात्रा में ई-सिगरेट और विदेशी सिगरेट बरामद की गई और जब्त की गई।
अगले दिन, 24 अगस्त को, आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया और कथित तौर पर डीआरआई अधिकारियों द्वारा सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 की धारा 108 के तहत दबाव में उसका बयान लिया गया।
आवेदक पर अवैध व्यापार नेटवर्क में शामिल होने और ई-सिगरेट की तस्करी करने का आरोप लगाया गया था।
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उनके वकील ने तर्क दिया कि गिरफ्तारी गैरकानूनी थी और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता) के तहत आरोपी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है।
उन्होंने तर्क दिया कि डीआरआई के पास ई-सिगरेट से जुड़े मामलों की जांच करने का अधिकार नहीं है, क्योंकि इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट निषेध अधिनियम, 2019, एक विशेष कानून होने के नाते, इस मामले में सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 पर वरीयता लेता है।
डीआरआई ने जमानत याचिका का विरोध करते हुए तर्क दिया कि मामले में गंभीर आरोप शामिल हैं और सीमा शुल्क अधिनियम की धारा 108 के तहत आरोपी के बयान का हवाला दिया। उन्होंने यह भी दावा किया कि डीआरआई के पास ई-सिगरेट की तस्करी की जांच करने का अधिकार है, जो प्रतिबंधित वस्तुएँ हैं।
डीआरआई की दलीलों को खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि हालांकि आरोपी व्यक्ति का बयान साक्ष्य के तौर पर कुछ महत्व रखता हो सकता है, लेकिन यह जमानत के सवाल पर निर्णय लेने का एकमात्र आधार नहीं बन सकता।
दिल्ली कोर्ट:
जमानत तय करने के लिए अभियुक्त का बयान पर्याप्त नहीं है, इसके लिए सभी कारकों पर विचार किया जाना चाहिए।
[डीआरआई बनाम यश टेकवानी]
Order / Judgement – DRI_v_Yash
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साभार: बार & बेंच
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