सामूहिक हत्याकांड के दोषी तीन आरोपियों को फाँसी की सज़ा
बीस आरोपियों में से तेरह की हो चुकी है मौत, चार आरोपी आज तक है फ़रार
आगरा /मैनपुरी 18 मार्च ।
मैनपुरी जसराना के गांव दिहुली में 18 नवंबर 1981 को दलितों की हत्या कर दी गई थी। इस मामले में 44 साल बाद अब न्यायालय का फैसला आया है। सामूहिक हत्याकांड के लिए दोषी मानते हुए एडीजे विशेष डकैती कोर्ट माननीय इंदिरा सिंह ऐतिहासिक फैसला देते हुए तीन को फांसी सजा सुनाई गई है। इसके साथ ही दो दोषियों पर दो-दो लाख और एक दोषी पर एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया। कोर्ट से आदेश होने के बाद पुलिस तीनों को जिला कारागार मैनपुरी ले गई। वहां उन्हें दाखिल किया गया।
मैनपुरी विशेष डकैती अदालत में मंगलवार सुबह 11.30 बजे दोषी कप्तान सिंह, रामसेवक और रामपाल को मैनपुरी जिला कारागार से भारी सुरक्षा के बीच लाकर पेश किया गया। अदालत में इस चर्चित नरसंहार में कोर्ट में तथ्य के गवाह के तौर पर लायक सिंह, वेदराम, हरिनरायण, कुमर प्रसाद, बनवारी लाल की गवाही हुई। हालांकि इन सभी की अब मौत हो चुकी है। मगर, इनकी गवाही के सहारे ही पूरा केस कोर्ट में टिका रहा और अदालत ने दोषियों को सजा सुनाई। गवाह कुमर प्रसाद की गवाही सबसे अहम रही। उन्होंने बतौर चश्मदीद कोर्ट में अपनी गवाही दी थी। कुमर प्रसाद की गवाही में नरसंहार और वेदराम की गवाही में हत्याओं के साथ ही लूट का भी उल्लेख था।
घटना क्रम के अनुसार मैनपुरी जनपद के जसराना थाना क्षेत्र के ग्राम दिहुली (घटना के समय मैनपुरी का हिस्सा) में 24 दलितों की सामूहिक हत्या कर दी गई थी। वर्ष 1981 में 18 नवंबर की शाम 6 बजे की यह घटना थी। डकैत संतोष और राधे के गिरोह ने एक मुकदमे में गवाही के विरोध में हथियारों से लैस होकर दिहुली गांव में घुसकर महिलाओं, पुरुषों और बच्चों पर गोलियां चलाई गई थी। इसमें 24 लोगों की मौत हुई थी। बदमाशों ने हत्या करने के बाद लूटपाट भी की थी। रिपोर्ट दिहुली के लायक सिंह ने 19 नवंबर 1981 को थाना जसराना में दर्ज कराई थी।
थाना जसराना में राधेश्याम उर्फ राधे, संतोष सिंह उर्फ संतोषा के अलावा 20 लोगों के खिलाफ दर्ज हुई थी। मैनपुरी से लेकर इलाहाबाद तक यह मामला कोर्ट में चला।
इसके बाद 19 अक्तूबर 2024 को बहस के लिए मुकदमा फिर से मैनपुरी सेशन कोर्ट में ट्रांसफर किया गया। जिला जज के आदेश पर विशेष डकैती कोर्ट में इसकी सुनवाई हुई। इस केस में कुल 20 के खिलाफ केस दर्ज हुआ था जिनमे से 13 की मौत हो चुकी है और एक 4 आरोपी अभी तक फरार है ।
इस नरसंहार को अंजाम देने के आरोप में गिरोह सरगना संतोष उर्फ संतोषा और राधे सहित गैंग के सदस्य कमरुद्दीन, श्यामवीर, कुंवरपाल, राजे उर्फ राजेंद्र, भूरा, प्रमोद राना, मलखान सिंह, रविंद्र सिंह, युधिष्ठिर पुत्र दुर्गपाल सिंह, युधिष्ठिर पुत्र मंशी सिंह, पंचम पुत्र मंशी सिंह, लक्ष्मी, इंदल और रुखन, ज्ञानचंद्र उर्फ गिन्ना, कप्तान सिंह, रामसेवक और रामपाल पर मुकदमा दर्ज हुआ था।
लक्ष्मी, इंदल और रुखन, ज्ञानचंद्र उर्फ गिन्ना, कप्तान सिंह, रामसेवक और रामपाल को छोड़कर सभी की मौत हो चुकी है। लक्ष्मी, इंदल और रुखन, ज्ञानचंद्र उर्फ गिन्ना अभी फरार हैं। इनकी फाइल को अलग कर दिया है। अब पुलिस या तो इनको गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश करेगी या फिर इनके विषय में पड़ताल करेगी। अगर, इनकी मौत हो चुकी है तो इनकी मौत की रिपोर्ट कोर्ट में दाखिल कर मुकदमे की फाइल को बंद कराएगी।
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इस जघन्य हत्याकांड में जिन दलितों को शिकार बनाया गया था उनमें ज्वाला प्रसाद, रामप्रसाद, रामदुलारी, श्रृंगार वती, शांति, राजेंद्री, राजेश, रामसेवक, शिवदयाल, मुनेश, भरत सिंह, दाताराम, आशा देवी, लालाराम, गीतम, लीलाधर, मानिकचंद्र, भूरे, कुं. शीला, मुकेश, धनदेवी, गंगा सिंह, गजाधर व प्रीतम सिंह की हत्या हुई थी।
तीनों आरोपियों में से रामसेवक और कप्तान सिंह को आईपीसी 148 (घातक हथियारों से लैस होकर उपद्रव करना) के तहत तीन साल की कैद,आईपीसी 302 (हत्या) और 149 (विधि विरुद्ध जमावड़ा) के तहत फांसी की सजा और एक लाख रुपये का जुर्माना, आईपीसी 307 (जानलेवा हमला) के तहत आजीवन कारावास और 50 हजार रुपये का जुर्माना, आईपीसी 449 (किसी के घर में घुसकर अपराध को अंजाम देना) और 450 (गृह अतिचार) के तहत आजीवन कारावास और 50 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई गई ।
रामपाल को फाँसी के साथ साथ आईपीसी 120 बी (आपराधिक षड्यंत्र करना) और आईपीसी 302 (हत्या करना) के तहत आजीवन कारावास और एक लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई गई ।
44 वर्ष तक चले इस केस में संपूर्ण घटनाक्रम इस प्रकार रहा ।
18 नवंबर 1981 को दिहुली में 24 लोगों की गोलियों से भूनकर हत्या हुई।
18 नवंबर 1981 की रात को जसराना थाने में मुकदमा दर्ज हुआ।
26 फरवरी 1982 तक मुख्य आरोपी राधे और संतोषा सहित 15 आरोपियों की गिरफ्तारी।
26 फरवरी 1982 को चार्जशीट कोर्ट में दाखिल।
13 मई 1982 को कोर्ट में आरोपियों पर चार्ज फ्रेम।
5 मई 1983 को मुकदमा हाईकोर्ट के आदेश पर प्रयागराज की सेशन कोर्ट ट्रांसफर।
19 अक्तूबर 2024 को बहस के लिए मुकदमा फिर से मैनपुरी सेशन कोर्ट में ट्रांसफर।
11 मार्च 2025 को तीन आरोपी दोषी करार।
18 मार्च 2025 को दोषियों को सुनाई गई सजा।
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