आगरा।
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग-प्रथम, आगरा के अध्यक्ष माननीय सर्वेश कुमार और सदस्य राजीव सिंह ने लाइफ इंश्योरेंस कारपोरेशन ऑफ इण्डिया (एलआईसी) के खिलाफ दायर एक परिवाद में बीमाधारक के पक्ष में बड़ा फैसला सुनाया है।
आयोग ने एलआईसी को ‘सेवा में कमी’ और ‘अनुचित व्यापार संव्यवहार’ का दोषी मानते हुए बीमाधारक श्रीमती दिनेश कुमारी को पॉलिसी सरेंडर पर गलत तरीके से काटी गई राशि ₹1,20,254/- ब्याज, मानसिक पीड़ा क्षतिपूर्ति और वाद व्यय सहित लौटाने का आदेश दिया है।
क्या है मामला:
परिवादिनी श्रीमती दिनेश कुमारी ने एलआईसी से 14.11.2017 को ₹10,00,000/- की ‘जीवन अक्षय-6’ पॉलिसी संख्या 267319683 खरीदी थी। उन्होंने पॉलिसी के तहत विकल्प ‘एफ’ चुना था, जो “Immediate Annuity for life with return to purchase price” के अनुसार बीमाधारक को वार्षिक प्राप्ति के अतिरिक्त क्रय मूलधन को वापस पाने का अधिकार देता है।
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परिवादिनी ने अपनी बीमारी के इलाज के लिए धन की आवश्यकता होने पर लगभग 8 वर्ष बाद 03.02.2025 को पॉलिसी सरेंडर करने के लिए आवेदन किया। परिवादिनी के अनुसार, उन्हें यह आश्वासन दिया गया था कि पॉलिसी वापस करने पर पूरा मूलधन बिना किसी कटौती के वापस किया जाएगा।
हालांकि, बीमा कंपनी ने मूलधन ₹10,00,000/- में से ₹1,02,254/- की कटौती करके केवल ₹8,97,746/- वापस किए, जिसे परिवादिनी ने गलत कटौती और सेवा में कमी बताया।
बीमा कंपनी का तर्क:
बीमा कंपनी ने लिखित कथन में कटौती किए जाने की बात स्वीकार करते हुए कहा कि कटौती पॉलिसी के अनुबंध एवं शर्तों के अनुसार नियमानुसार की गई थी। कंपनी ने यह भी कहा कि परिवादिनी को सरेंडर करने से पहले ₹4,80,278/- का भुगतान 14 मासिक किस्तों में किया जा चुका है।
आयोग का निष्कर्ष:
आयोग ने दोनों पक्षों के तर्कों और सबूतों की समीक्षा के बाद निष्कर्ष निकाला कि:
* परिवादिनी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 की धारा 2(7) के तहत उपभोक्ता की श्रेणी में आती हैं।
* पॉलिसी के विकल्प ‘एफ’ के अंतर्गत बीमारी की स्थिति में सरेंडर पर पॉलिसीधारक को क्रय मूल्य का भुगतान करने की बात कही गई है।
* पॉलिसी के अनुबंध एवं शर्तों की धारा 20 में “Surrender Value means an amount, if any, that becomes payable in case of surrender under Option F-” Annuity for life with return of purchase price” अंकित है।

* कटौती के संबंध में किसी भी अपवर्जन क्लॉज (Terms of Exclusion) के बारे में परिवादिनी को स्पष्ट रूप से सूचित नहीं किया गया था और न ही ऐसी किसी सूचना पर उनके हस्ताक्षर थे।
* आयोग ने माननीय उच्चतम न्यायालय की निर्णयज विधियों जैसे भारत वाच कम्पनी बनाम नेशनल इंश्योरेंस कम्पनी लि0 2019 (6) एस० सी० सी० 212 और मै० टैस्को मार्केटिंग प्रा० लि० बनाम टाटा ए० आई० जी० जनरल इंश्योरेंस कं० लि० व अन्य 2022 लाइव लॉ (सुप्रीम कोर्ट) 937 का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि यदि अपवर्जन शर्त की सूचना बीमाधारक को पॉलिसी के समय नहीं दी गई है, तो ऐसी शर्त के आधार पर बीमा दावा खारिज नहीं किया जा सकता।
आदेश:
आयोग ने एलआईसी को आदेशित किया कि वह निर्णय की तिथि (08.10.2025) से 45 दिन के भीतर:
* गलत रूप से काटी गई धनराशि ₹1,20,254/- का भुगतान 06 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज के साथ परिवाद प्रस्तुत करने की दिनांक (09.04.2025) से वास्तविक भुगतान की दिनांक तक करे।
* मानसिक पीड़ा क्षतिपूर्ति के लिए ₹10,000/- और वाद व्यय हेतु ₹5,000/- का भुगतान करे।
* यदि बीमा कंपनी समय पर भुगतान करने में चूक करती है, तो परिवादिनी उपरोक्त समस्त धनराशि पर 09 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज प्राप्त करने की अधिकारिणी होंगी।
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