भदोही के जिला जज की विशेष अपील पर अगली सुनवाई 16 अप्रैल को
आगरा/प्रयागराज १२ अप्रैल ।
सिविल कोर्ट के चालक मिनिस्ट्रियल कैडर संवर्ग में आते हैं अथवा नहीं, इस प्रश्न का समाधान अब इलाहाबाद हाई कोर्ट करेगा ? संत रविदास नगर भदोही के जिला जज की ओर से दायर विशेष अपील में दावा किया गया है कि सिविल कोर्ट के चालक को मिनिस्ट्रियल कैडर का हिस्सा नहीं माना जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्र तथा न्यायमूर्ति दोनाडी रमेश की खंडपीठ यह प्रकरण सुन रही है। अगली सुनवाई 16 अप्रैल को होगी।
अपीलकर्ता जिला जज का तर्क है कि सिविल कोर्ट में ड्राइवर की सेवाएं उत्तर प्रदेश सरकार की ड्राइवर सेवा नियमावली, 1993 के प्रावधानों द्वारा शासित होती हैं और इसमें ड्राइवर को मिनिस्ट्रियल कैडर का हिस्सा बनाने का कोई प्रावधान नहीं है। इसलिए सिविल कोर्ट के चालक को न्यायालय के सामान्य मंत्रिस्तरीय कैडर में लाने के लिए पहले की गई कार्रवाई और उसके बाद की पदोन्नति कानून के विपरीत मानी जाए।
अधिकारियों ने प्रतिवादी (याची) को उसके मूल कैडर में बहाल करने में कोई अवैधानिकता नहीं की है। प्रतिवादी के अधिवक्ता एस.पी. पांडेय ने इस दलील का जवाब देने के लिए समय की मांग की है। जिला जज ने हाई कोर्ट की एकल पीठ के आदेश को चुनौती दी है। मुकदमे से जुड़े तथ्यों के अनुसार प्रतिवादी जितेंद्र कुमार पांडेय ने इससे पहले हाई कोर्ट में न्याय की गुहार लगाई थी।
न्यायमूर्ति नीरज तिवारी ने 11 फरवरी 2025 को उसकी याचिका की सुनवाई के बाद प्रकरण में विचार किए जाने की आवश्यकता जताई थी और उसके खिलाफ जारी आदेश पर रोक लगा दी थी। जितेंद्र 1997 में चालक था। मई 2003 में कनिष्ठ सहायक पद पर पदोन्नत हुआ और मई 2006 में वरिष्ठ सहायक पद।
प्रधान सहायक पद पर उसकी पदोन्नति पर विचार चल रहा था कि 09 जुलाई 2024 को उसे नोटिस दी गई जिसमें हाई कोर्ट के नौ जनवरी 2013 के पत्र का हवाला देते हुए कहा गया कि चालक पृथक संवर्ग है। अतः उसे तृतीय श्रेणी पद पर पदोन्नत एवं समायोजित नहीं किया जा सकता। जितेंद्र ने अपने जवाब में कहा कि उसने कोई धोखाधड़ी नहीं की है। पदोन्नति उपरांत वह 20 वर्षों से अधिक समय से पद पर कार्य कर रहा है।
हाई कोर्ट की तरफ से पेश हुए अधिवक्ता ने कहा कि जिला न्यायपालिका में चालक अलग संवर्ग है। पद तृतीय श्रेणी का है तथा अलग वेतनमान है। जनवरी 2013 का परिपत्र अधीनस्थ सिविल न्यायालय, मंत्रिस्तरीय स्थापना नियम, 1947 पर आधारित है। नियम विपरीत की गई कोई भी कार्रवाई कानून की दृष्टि में अमान्य है। समय रहते इसे सुधारा जा सकता है।
Stay Updated With Latest News Join Our WhatsApp – Group Bulletin & Channel Bulletin
- इलाहाबाद हाईकोर्ट में हुई कानपुर की सीसामऊ सीट से पूर्व सपा विधायक इरफान सोलंकी की जमानत अर्ज़ी पर आज सुनवाई - April 16, 2025
- इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि अपनी मर्जी से शादी करने मात्र से पुलिस सुरक्षा का अधिकार नहीं मिल जाता, वास्तविक खतरा होना जरूरी - April 16, 2025
- इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि एक बार मुकदमा शुरू हो जाने और गवाहों का परीक्षण हो जाने के बाद, संवैधानिक अदालतों को फिर से विवेचना खोलने या ट्रांसफर करने से बचना चाहिए - April 14, 2025