आगरा/प्रयागराज २४ मई ।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ऑनलाइन गेमिंग और सट्टेबाजी से बढ़ते सामाजिक विघटन और आर्थिक नुकसान पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार को तत्काल एक प्रभावी कानून बनाने का सुझाव दिया है।
कोर्ट ने कहा है कि वर्तमान में लागू सार्वजनिक जुआ अधिनियम 1867 एक औपनिवेशिक युग का कानून है जो आज के ऑनलाइन युग में पूरी तरह अप्रासंगिक हो गया है।
न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की एकल पीठ ने आगरा के इमरान खान व अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह महत्वपूर्ण आदेश दिया। याचियों के खिलाफ तीन साल पहले सार्वजनिक जुआ अधिनियम के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी, जिसके बाद न्यायिक मजिस्ट्रेट ने उन्हें समन जारी किया था। याचियों ने आपराधिक कार्रवाई को रद्द करने की मांग की थी।
“सामाजिक विघटन” की ओर धकेल रहा ऑनलाइन गेमिंग
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में इस बात पर जोर दिया कि ऑनलाइन गेमिंग और सट्टेबाजी ने राज्य और राष्ट्र की सीमाओं को पार कर लिया है, और सर्वर सिस्टम दुनिया की सीमाओं को खत्म कर चुके हैं, जिस पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है।
कोर्ट ने चिंता व्यक्त की कि पैसे कमाने के लालच में देश के किशोर और युवा आसानी से इसकी चपेट में आ रहे हैं। इससे उनमें अवसाद, चिंता, अनिद्रा जैसी मानसिक समस्याएं बढ़ रही हैं, जिससे सामाजिक विघटन को बढ़ावा मिल रहा है।
कोर्ट ने विशेष रूप से निम्न और मध्य वर्ग के युवाओं को ऑनलाइन गेम उपलब्ध कराने वाले प्लेटफॉर्मों के झांसे में आकर आर्थिक नुकसान उठाने पर दुख व्यक्त किया।
प्रो. के.वी. राजू की अध्यक्षता में समिति गठित करने का सुझाव
इन चुनौतियों से निपटने के लिए, कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया है कि वह आर्थिक सलाहकार प्रो. के.वी. राजू की अध्यक्षता में एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन करे।
इस समिति में प्रमुख सचिव, राज्य कर और अन्य विशेषज्ञों को भी शामिल किया जाना चाहिए। समिति का कार्य वर्तमान स्थिति का आकलन करना और एक प्रभावी विधायी व्यवस्था का सुझाव देना होगा। कोर्ट ने प्रदेश के मुख्य सचिव को अनुपालनार्थ आदेश की प्रति भेजने का भी निर्देश दिया है।
अस्पष्ट कानून और बढ़ती चुनौतियाँ
कोर्ट ने पाया कि ऑनलाइन सट्टेबाजी और जुआ खेलने वालों के खिलाफ कोई प्रभावी कानून नहीं है। सार्वजनिक जुआ अधिनियम के तहत अधिकतम ₹2000/- का जुर्माना और बारह महीने तक की कैद का प्रावधान है, जो आज के समय में नगण्य है। इसके अलावा, फैंटेसी स्पोर्ट्स, पोकर और ई-स्पोर्ट्स जैसे ऑनलाइन गेम्स को लेकर कानून पूरी तरह अस्पष्ट है।
चूंकि ऑनलाइन प्लेटफॉर्म राज्य, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं से संचालित होते हैं, इसलिए बड़ी संख्या में युवा इसकी जद में आकर भारी नुकसान उठा रहे हैं।
अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य और भारत की स्थिति
आदेश में यूके, अमेरिका सहित दुनिया के कई विकसित देशों द्वारा जुए को नियंत्रित करने के लिए किए गए उपबंधों का भी उल्लेख किया गया है। यूके ने 2005 में जुआ अधिनियम लागू किया है, जिसमें लाइसेंसिंग आवश्यकताओं, आयु सत्यापन प्रोटोकॉल, जिम्मेदार विज्ञापन मानकों और धन शोधन विरोधी उपायों जैसे प्रावधान शामिल हैं।
ऑस्ट्रेलिया ने 2001 में और अमेरिका के न्यू जर्सी और पेंसिल्वेनिया जैसे राज्यों ने ऑनलाइन कैसीनो को वैध और विनियमित किया है। सिंगापुर और दक्षिण कोरिया जैसे कई अन्य देशों ने भी ऑनलाइन सट्टेबाजी की व्यवस्था की है।
अदालत ने कहा कि भारत के नीति आयोग ने दिसंबर 2020 में एक नीति पत्र जारी किया था, लेकिन अभी भी यह क्षेत्र “ग्रे एरिया” में है, जिसका अर्थ है कि कोई स्पष्ट कानून या विनियमन नहीं है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले को ऑनलाइन गेमिंग और सट्टेबाजी से उत्पन्न होने वाली चुनौतियों से निपटने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
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