आगरा /प्रयागराज 12 सितंबर।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना है कि उत्तर प्रदेश लोक सेवा (शारीरिक रूप से दिव्यांग स्वतंत्रता सेनानियों के आश्रितों और भूतपूर्व सैनिकों के लिए आरक्षण) अधिनियम 1993 की धारा 2 (बी) के तहत परपोती स्वतंत्रता सेनानियों का आश्रित नहीं है।
न्यायालय ने कृष्ण नंद राय बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और दो अन्य पर भरोसा किया, जहां इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि परपोता स्वतंत्रता सेनानियों के आश्रित की परिभाषा में शामिल नहीं है।
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तथ्यात्मक पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता का मामला यह है कि वह उत्तर प्रदेश की निवासी है, जबकि उसके परदादा-परदादी को बिहार राज्य के सक्षम प्राधिकारी द्वारा स्वतंत्रता सेनानी घोषित किया गया, क्योंकि वे वहां के निवासी थे।
याचिकाकर्ता नीट-(यूजी)-2024 परीक्षा में शामिल हुई। उसने स्वतंत्रता सेनानियों के आश्रितों के लिए आरक्षण की मांग करते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, क्योंकि उसे नीट परिणाम घोषित होने के अधीन काउंसलिंग में भाग लेने की अनुमति नहीं दी गई।
यह तर्क दिया गया कि उसे आरक्षण के लाभ से वंचित किया जा रहा था और उसे काउंसलिंग के लिए समय आवंटित नहीं किया जा रहा था।
याचिकाकर्ता ने नीट-(यूजी)-2024 परीक्षा के लिए दिशा-निर्देशों को इस हद तक चुनौती दी कि उन्होंने भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 का उल्लंघन करने के आधार पर अन्य राज्य के स्वतंत्रता सेनानी के आश्रितों को आरक्षण के लाभों को बाहर रखा।
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हाईकोर्ट का फैसला
न्यायालय ने देखा कि यू.पी. की धारा 2 (बी) लोक सेवा (शारीरिक रूप से दिव्यांग स्वतंत्रता सेनानियों के आश्रितों और भूतपूर्व सैनिकों के लिए आरक्षण) अधिनियम 1993 में स्वतंत्रता सेनानियों के आश्रित को पुत्र/पुत्री और पौत्र/पौत्री के रूप में परिभाषित किया गया और ऐसे आश्रित की वैवाहिक स्थिति अप्रासंगिक है।
इस परिभाषा को संपूर्ण मानते हुए न्यायालय ने माना कि परपोती स्वतंत्रता सेनानियों के आश्रित की परिभाषा में नहीं आती है।
जस्टिस आलोक माथुर ने कहा,
“इस मामले में याचिकाकर्ता स्वतंत्रता सेनानी के आश्रित की परपोती होने का दावा करती है। कृष्ण नंद राय (सुप्रा) के निर्णय के याचिकाकर्ताओं के समान परिस्थिति में है और उक्त निर्णय का अनुपात वर्तमान मामले के तथ्यों पर पूरी तरह लागू होगा। इसलिए याचिकाकर्ता को भी स्वतंत्रता सेनानियों के आश्रित की परिभाषा में शामिल नहीं किया जाएगा। इस आधार पर याचिकाकर्ता द्वारा की गई प्रार्थना को स्वीकार नहीं किया जा सकता है।”
तदनुसार, रिट याचिका खारिज कर दी गई।
केस टाइटल- अवनी पांडे बनाम मेडिकल शिक्षा और प्रशिक्षण महानिदेशालय।
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