न्यायालय ने कहा कि विभिन्न संस्थाओं और समाजों द्वारा जारी किए जाते है फर्जी विवाह प्रमाण पत्र
फर्जी विवाह प्रमाण पत्रों से विवाहित जोड़े पुलिस सुरक्षा के लिए खटखटाते है अदालतों के दरवाजे
आगरा /प्रयागराज 14 सितंबर।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में गौतमबुद्ध नगर (नोएडा) और गाजियाबाद के पुलिस आयुक्तों को विवाह सम्पन्न कराने में शामिल आर्य समाज मंदिरों और संबंधित सोसायटियों/ट्रस्टों के कामकाज की गहन और विवेकपूर्ण जांच करने का निर्देश दिया है।
न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर ने यह आदेश तब पारित किया जब कई मामलों में पुलिस सत्यापन से पता चला कि बाल विवाह निरोधक अधिनियम और हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए विवाह कराएजा रहे थे।
ऐसे जोड़ों द्वारा दायर याचिकाओं के साथ दायर किए गए आधार कार्ड सहित दस्तावेज भी जाली पाए गए और यहां तक कि नोटरीकृत हलफनामों पर शपथ पत्र पर प्रस्तुत वचन भी फर्जी पाए गए।
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न्यायालय ने यह भी कहा कि
विवाह पंजीकरण अधिकारी ने बिना सत्यापन के फर्जी और अमान्य विवाह प्रमाणपत्र के आधार पर विवाह पंजीकृत कर दिया।
न्यायालय ने कहा
“संक्षेप में, इस तरह की शादियाँ मानव तस्करी, यौन शोषण और जबरन श्रम को बढ़ावा देती हैं। बच्चे सामाजिक अस्थिरता, शोषण, जबरदस्ती, हेरफेर और उनकी शिक्षा में व्यवधान के कारण भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक आघात सहते हैं। इसके अलावा, ये मुद्दे अदालतों पर एक महत्वपूर्ण बोझ डालते हैं। इसलिए, दस्तावेज़ सत्यापन और ट्रस्टों और समाजों की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए एक मजबूत प्रणाली विकसित करने की आवश्यकता है।”
इस प्रकार, न्यायालय ने पुलिस को निम्नलिखित पहलुओं की जांच करने का निर्देश दिया,
i) गौतमबुद्ध नगर और गाजियाबाद जिले के क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र में विवाह कराने वाले ऐसे ट्रस्ट/सोसायटी का नाम
(ii) जांच में ट्रस्ट/सोसायटी के अध्यक्ष, सचिव और पुरोहित- जो विवाह कराते हैं- तथा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शामिल किसी अन्य व्यक्ति की प्रोफाइलिंग (सामाजिक, वित्तीय और अन्यथा आपराधिक पृष्ठभूमि, यदि कोई हो) शामिल होगी
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(iii) लिंक और संपर्क सहित संसाधन जिनके माध्यम से ट्रस्ट प्रबंधन (गतिविधियों का लाभार्थी) भागे हुए लड़के और लड़कियों से उनकी शादी के लिए संपर्क करता है
(iv) उन व्यक्तियों का विवरण, जो भागे हुए जोड़ों की आयु, आवासीय पता, फर्जी हलफनामे और पुलिस को फर्जी शिकायतें बनाने और कानून के खिलाफ आश्रय और सुरक्षा प्रदान करने में मदद करते हैं
(v) ट्रस्ट/सोसायटी के वित्तीय लेनदेन का विवरण
(vi) ट्रस्ट/सोसायटी के सदस्यों और पुरोहित द्वारा विवाह संपन्न कराने के लिए दक्षिणा के नाम पर ली जाने वाली फीस का ब्यौरा
(vii) कोई अन्य गोपनीय सूचना जो न्यायालय को मामले की तह तक पहुंचने और यह समझने में मदद कर सके कि विवाह संपन्न कराने से लेकर न्यायालय में सुरक्षा याचिका दायर करने तक का “संपूर्ण दुष्चक्र” किस प्रकार जाली दस्तावेजों के आधार पर चलता है।
न्यायमूर्ति दिवाकर ने पहले इस तथ्य को चिन्हित किया था कि विभिन्न संगठनों और समाजों द्वारा फर्जी विवाह प्रमाण-पत्र जारी किए जा रहे हैं ताकि जोड़े पुलिस सुरक्षा की मांग करते हुए न्यायालयों का दरवाजा खटखटा सकें।
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3 सितंबर को न्यायालय ने पाया कि मामला महानिरीक्षक पंजीयन कार्यालय की प्राथमिकता सूची में नहीं है। इसलिए न्यायालय ने प्रमुख सचिव (स्टाम्प एवं पंजीयन), लखनऊ को मामले की स्वयं निगरानी करने तथा न्यायालय के आदेशों का अनुपालन सुनिश्चित करने का निर्देश दिया।
अधिवक्ता रंजीत कुमार यादव ने याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व किया।
अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता अश्विनी कुमार त्रिपाठी ने राज्य का प्रतिनिधित्व किया।
[शनिदेव एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं 7 अन्य]
Order / Judgement – Shanidev_And_Another_vs_State_of_UP_and_7_Others
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