घरेलू हिंसा कानून की कार्यवाही के खिलाफ धारा 482 पोषणीय
आगरा /प्रयागराज 29 नवंबर ।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि घरेलू हिंसा कानून के तहत न्यायिक मजिस्ट्रेट या सत्र अदालत के आदेश के खिलाफ दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 पोषणीय है। कोर्ट न्यायिक प्रक्रिया का दुरूपयोग रोकने व न्याय हित में धारा 482 (528 बीएनएसएस)के तहत हाईकोर्ट अपनी अंतर्निहित शक्ति का प्रयोग कर सकती है।
कोर्ट ने घरेलू हिंसा कानून की कुछ कार्यवाही सिविल प्रकृति का होने के नाते अदालत के आदेश के खिलाफ धारा 482 की याचिका पोषणीय न मानने के सुमन मिश्रा केस के फैसले को हाईकोर्ट की दिनेश कुमार यादव केस पूर्ण पीठ के फैसले के विपरीत करार दिया और कहा घरेलू हिंसा कानून के तहत कार्यवाही में अदालत के आदेश को धारा 482 में चुनौती दी जा सकती है।
कोर्ट ने याचियों के पक्ष में फैसला सुनाते हुए याचिकाओं को गुण-दोष पर सुनवाई हेतु पेश करने का निर्देश दिया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति ए.के. सिंह देशवाल ने देवेंद्र अग्रवाल व 3 अन्य सहित आधा दर्जन याचिकाओं पर उठे विधि प्रश्न को तय करते हुए दिया है।
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कोर्ट के समक्ष सरकारी वकील ने याचिकाकाओं की पोषणीयता पर आपत्ति की ।कहा धारा 482 के तहत घरेलू हिंसा कानून की कार्यवाही के खिलाफ याचिका दाखिल नहीं की जा सकती।
सुप्रीम कोर्ट के सुमन मिश्रा केस के फैसले का हवाला दिया। कहा घरेलू हिंसा कानून में सिविल प्रकृति के आदेश भी होते हैं जो दंड प्रक्रिया संहिता के तहत पारित नहीं किए जा सकते।
इसलिए धारा 482 में इन्हें चुनौती नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने कहा घरेलू हिंसा कानून की धारा 27 में न्यायिक मजिस्ट्रेट व धारा 28 में सत्र अदालत का उल्लेख है जो आपराधिक अदालत है। इसलिए न्यायिक प्रक्रिया का दुरूपयोग रोकने के लिए न्याय हित में धारा 482 की याचिका पोषणीय है।
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