सत्र अदालत की उम्रकैद की सजा बरकरार, एकमात्र बचे दोषसिद्ध अभियुक्त को गिरफ्तार कर जेल भेजने का निर्देश, कहा आरोपी दया या नरमी का हकदार नहीं
आगरा /प्रयागराज १७ अप्रैल ।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ललितपुर में हत्या की कोशिश व दुष्कर्म के आरोपित को सत्र अदालत से मिली उम्रकैद की सजा बरकरार रखी है और आरोपित के जमानत पर रहने व अपील की सुनवाई में 42 साल की देरी के लिए खेद जताया है।
न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति डॉ. गौतम चौधरी की खंडपीठ ने कहा, “न्यायालय विशेष रूप से पक्षकारों और सामान्य रूप से समाज के समक्ष खेद व्यक्त करता है कि इस अपील को तय करने में 42 वर्ष लग गए। चार दशकों की इस लंबी अवधि में पक्षकारों को न्याय नहीं मिला है। चार अभियुक्त वीर सिंह, गंगाधर, धर्मलाल और बंधु का निधन हो चुका है। पीड़ित भी अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं।
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पीठ ने कहा कि ऐसे मामलों में, न्यायालयों को वास्तविक समय में न्याय प्रदान करना चाहिए। ट्रायल कोर्ट ने चार साल के भीतर निर्णय दिया था और फिर जिम्मेदारी उच्च न्यायालय पर आ गई थी। कोर्ट ने इकलौते बचे अभियुक्त बाबूलाल की दोषसिद्धि की पुष्टि की। उसे आत्मसमर्पण के लिए निर्देशित किया गया है। कोर्ट ने कहा है कि ऐसा नहीं होता है तो मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट उसे शेष सजा काटने के लिए गिरफ्तार कर जेल भेजें।
कोर्ट ने कहा कि मामले में जो कुछ भी हुआ, उससे अधिक जघन्य और बर्बर कुछ भी नहीं हो सकता। इस बात की पुष्टि करने के लिए कोर्ट को पर्याप्त साक्ष्य मिले कि जीवित बचे दोषी बाबू लाल ने एक महिला के साथ दुष्कर्म के साथ ही मारपीट की थी। खंडपीठ ने कहा, “यह ध्यान में रखते हुए कि अपराध की जघन्य प्रकृति मुकदमे में विधिवत साबित हो चुकी है, आरोपित अपीलकर्ता को सजा के सवाल पर कोई दया या नरमी नहीं मिलनी चाहिए। दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि वह मुश्किल से चार साल तक ही जेल में रहा और उसे इस अपील के लंबित रहने के दौरान जमानत पर रिहा कर दिया गया। उसे शेष सजा काटनी होगी।
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