इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महाकुंभ भगदड़ मामले में राज्य सरकार से पूछा कि क्या न्यायिक आयोग की भूमिका का विस्तार हताहतों की संख्या की पहचान करने के लिए किया जा सकता है ?

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आगरा /प्रयागराज 20 फरवरी ।

29 जनवरी को प्रयागराज में महाकुंभ में हुई भगदड़ के बाद लापता हुए लोगों का ब्यौरा मांगने वाली जनहित याचिका (पी आई एल ) पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से मौखिक रूप से पूछा कि क्या उसके द्वारा नियुक्त न्यायिक आयोग की जांच का दायरा बढ़ाकर इसमें हताहतों की संख्या की पहचान करना और भगदड़ से संबंधित अन्य शिकायतों की जांच करना शामिल किया जा सकता है ?

चीफ जस्टिस अरुण भंसाली और जस्टिस क्षितिज शैलेंद्र की खंडपीठ ने कहा कि अभी तक आयोग के दायरे में भगदड़ से संबंधित अन्य प्रासंगिक विवरणों की जांच शामिल नहीं है।

जब राज्य सरकार ने एडिशनल एडवोकेट जनरल मनीष गोयल के नेतृत्व में सुझाव दिया कि आयोग भगदड़ के सभी पहलुओं की जांच करने के लिए पूरी तरह से सक्षम है तो अदालत ने कहा कि जब आयोग की नियुक्ति की गई तो घटना के तात्कालिक निहितार्थ – जैसे कि हताहतों और लापता लोगों की संख्या – राज्य के अधिकारियों के लिए उपलब्ध नहीं थे। इसलिए अदालत ने संकेत दिया कि इन विवरणों को अब आयोग की जांच में शामिल किया जा सकता है।

इस प्रकार एडिशनल एडवोकेट जनरल मनीष गोयल को अगली सुनवाई की तारीख सोमवार (24 फरवरी) तक इस संबंध में निर्देश प्राप्त करने का निर्देश दिया गया। इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व मानद सचिव एडवोकेट सुरेश चंद्र पांडे द्वारा दायर जनहित याचिका पर अदालत ने जवाब मांगा।

याचिका में प्रयागराज में महाकुंभ में भगदड़ के बाद लापता हुए लोगों का विवरण एकत्र करने के लिए न्यायिक निगरानी समिति के गठन की मांग की गई। खंडपीठ के समक्ष याचिकाकर्ता के वकील एडवोकेट सौरभ पांडे ने कहा कि कई मीडिया पोर्टलों ने राज्य सरकार द्वारा आधिकारिक तौर पर बताई गई मौतों (30) की संख्या पर विवाद किया।

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उन्होंने विभिन्न मीडिया रिपोर्ट और पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल ) की प्रेस रिलीज का भी हवाला दिया। उन्होंने तर्क दिया कि मृतकों के परिजनों को मृत्यु प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए इधर-उधर भागने पर मजबूर होना पड़ रहा है।

पांडे ने कहा,

“मृतकों के शवों को बिना पोस्टमार्टम के 15,000 रुपये लेकर इस आश्वासन के साथ सौंप दिया गया कि मृत्यु प्रमाण पत्र दिया जाएगा। अब लोगों को मृत्यु प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए इधर-उधर भागने पर मजबूर किया जा रहा है। राज्य का कर्तव्य लोगों की मदद करना था। फिर भी राज्य ने आम जनता के लिए बाधाएं खड़ी की हैं। मेरे पास एंबुलेंस चलाने वाले लोगों के वीडियो हैं, जिन्होंने बताया है कि उन्होंने कितने लोगों को अस्पताल पहुंचाया है।”

एडवोकेट पांडे ने आगे बताया कि आधिकारिक बयानों में सेक्टर 21 और कुंभ मेले के आसपास के अन्य इलाकों में हुई भगदड़ का उल्लेख नहीं किया गया।

जवाब में एएजी गोयल ने कहा कि जनहित याचिका में की गई सभी प्रार्थनाओं पर राज्य सरकार द्वारा नियुक्त न्यायिक आयोग विचार कर रहा है। हालांकि, चीफ जस्टिस भंसाली ने टिप्पणी की कि आयोग के दायरे में यह शामिल नहीं है कि भगदड़ के दौरान क्या हुआ ?

इसे देखते हुए न्यायालय ने भगदड़ को शामिल करने के लिए जांच के दायरे को व्यापक बनाने की आवश्यकता पर बल देते हुए एएजी गोयल को इस मामले पर निर्देश प्राप्त करने का निर्देश दिया।

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खंडपीठ ने एएजी से यह भी कहा कि वह राज्य सरकार को न्यायिक आयोग के संबंध में सामान्य अधिसूचना जारी न करने और इसके बजाय संदर्भ की शर्तों को व्यापक रूप से बताने के लिए कहें।

भगदड़ 29 जनवरी की सुबह हुई, जिसमें कथित तौर पर 30-39 लोग मारे गए। प्रभावित क्षेत्र संगम पवित्र स्नान स्थल था। न्यूज मिन्ट की ग्राउंड जांच रिपोर्ट का दावा है कि मरने वालों की संख्या संभवतः 79 के करीब है।

यूपी सरकार ने 29 जनवरी की भगदड़ की जांच के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटायर जज जस्टिस हर्ष कुमार की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय न्यायिक आयोग का गठन किया। पैनल ने लोगों से घटना के संबंध में जानकारी देने को कहा।

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साभार: लाइव लॉ

विवेक कुमार जैन
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