आगरा उपभोक्ता आयोग द्वितीय ने केयर हेल्थ इंश्योरेंस को ₹2.5 लाख भुगतान करने का दिया निर्देश

न्यायालय मुख्य सुर्खियां
मानसिक उत्पीड़न का भी हर्जाना देने के किए आदेश

आगरा, उत्तर प्रदेश: ६ जून ।

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, द्वितीय, आगरा के अध्यक्ष माननीय आशुतोष और महिला सदस्य पारुल कौशिक ने केयर हेल्थ इंश्योरेंस लिमिटेड (पूर्व में रेलिगेयर हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड) को वादी उपभोक्ता राजकुमार खंडेलवाल को चिकित्सा खर्च और मानसिक उत्पीड़न के एवज में ₹2.5 लाख का भुगतान करने का आदेश दिया है।

आयोग ने पाया कि बीमा कंपनी ने पॉलिसीधारक के दावे को “चिकित्सा दस्तावेजों में विसंगति” और “पहले से मौजूद बीमारियों का खुलासा न करने” जैसे आधारों पर मनमाने ढंग से खारिज कर दिया था, जबकि बीमा कंपनी ने कोई मेडिकल टेस्ट नहीं कराया था।

मामले का विवरण:

राजकुमार खंडेलवाल (61 वर्ष) ने अपने और अपने परिवार के लिए 5 जनवरी, 2021 से 4 जनवरी, 2022 तक ₹10 लाख के सम इंश्योर्ड की ‘केयर हेल्थ इंश्योरेंस केयर प्लान’ पॉलिसी ली थी, जिसे बाद में 28 मार्च, 2022 से 27 मार्च, 2023 तक के लिए नवीनीकृत किया गया। उन्होंने ₹51,451/- का एकल प्रीमियम और नवीनीकरण के लिए ₹56,982/- का भुगतान किया था।

8 मार्च, 2023 को खंडेलवाल को पहली बार ‘सेरेब्रोवास्कुलर स्ट्रोक’ (सीवीए स्ट्रोक) के कारण पैरालिसिस हो गया और उन्हें जी.जी. मेडिकल इंस्टीट्यूट एंड रिसर्च सेंटर, आगरा में भर्ती कराया गया। उनके परिवार ने क्लेम के लिए आवेदन किया और सभी आवश्यक दस्तावेज जमा किए, जिसमें ₹69,610/- के चिकित्सा बिल भी शामिल थे।

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लेकिन केयर हेल्थ इंश्योरेंस ने 21 अगस्त, 2023 को यह कहते हुए क्लेम खारिज कर दिया कि “चिकित्सा दस्तावेजों में विसंगति” है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं किया कि किस प्रकार की विसंगति थी।

इसके बाद, खंडेलवाल को 17 मार्च, 2023 को अपोलो हॉस्पिटल, दिल्ली में भर्ती कराया गया, जहां लगभग ₹9,78,700/- का खर्च आया। इस क्लेम को भी बीमा कंपनी ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि खंडेलवाल ने ‘हाइपरटेंशन और डायबिटीज’ के अपने पिछले रिकॉर्ड का खुलासा नहीं किया था।

हालांकि, खंडेलवाल के डिस्चार्ज सर्टिफिकेट में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि इन बीमारियों का पहली बार पता चला था। बाद में, 31 अगस्त, 2023 को उन्हें फिर से जी.जी. मेडिकल इंस्टीट्यूट में भर्ती कराया गया, जहां ₹34,700/- का खर्च आया, इस क्लेम को भी खारिज कर दिया गया। कुल मिलाकर, खंडेलवाल को ₹10,82,710/- का खर्च आया।

बीमा कंपनी ने अपने लिखित बयान में दावा किया कि खंडेलवाल के बेटे ने मधुमेह/उच्च रक्तचाप और शराब के इतिहास से इंकार किया था, जबकि जी.जी. मेडिकल इंस्टीट्यूट के आईसीपी और डिस्चार्ज समरी में इन स्थितियों का उल्लेख था।

उन्होंने यह भी तर्क दिया कि ओपीडी पेपर में एक वर्ष के मधुमेह/उच्च रक्तचाप का इतिहास बताया गया था, जो डिस्चार्ज समरी में “हाल ही में पता चला” के विपरीत था। बीमा कंपनी ने ‘उबेरिमा फाइड’ (परम सद्भाव) के सिद्धांत का हवाला दिया, जिसके तहत बीमाधारक को सभी पूर्व-मौजूदा बीमारियों का खुलासा करना चाहिए।

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उपभोक्ता आयोग का निर्णय:

आयोग ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने और दस्तावेजों की जांच के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि परिवादी (राजकुमार खंडेलवाल) बीमा कंपनी का उपभोक्ता है। आयोग ने पाया कि बीमा कंपनी द्वारा सेवा में कमी की गई थी। आयोग ने अपने आदेश में कहा कि बीमा कंपनी यह स्पष्ट नहीं कर पाई कि “चिकित्सा दस्तावेजों में किस प्रकार की विसंगति” थी और न ही उसने कोई मेडिकल टेस्ट कराया था।

आयोग ने केयर हेल्थ इंश्योरेंस लिमिटेड को आदेश की तिथि से 30 दिनों के भीतर राजकुमार खंडेलवाल को उनके खर्च की ₹2,50,000/- की आंशिक राशि और मानसिक और शारीरिक क्षतिपूर्ति के एवज में ₹10,000/- का अतिरिक्त भुगतान करने का निर्देश दिया। यदि भुगतान 30 दिनों के भीतर नहीं किया जाता है, तो कंपनी को 6% वार्षिक ब्याज के साथ पूरी राशि का भुगतान करना होगा। यह निर्णय 27 मई, 2025 को अध्यक्ष माननीय आशुतोष और महिला सदस्य पारुल कौशिक की पीठ ने सुनाया।

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विवेक कुमार जैन
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