सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हाईकोर्ट धारा 482 सीआरपीसी के अधिकार के अलावा अनुच्छेद 226 के तहत आपराधिक कार्यवाही कर सकते है रद्द

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आगरा /नई दिल्ली 03 जनवरी ।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 482 सीआरपीसी के तहत आपराधिक मामला रद्द करने की अपनी शक्ति का प्रयोग करने के अलावा, हाईकोर्ट कानून के दुरुपयोग को रोकने के लिए संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत आपराधिक मामला रद्द करने की शक्तियों का भी प्रयोग कर सकता है।

अदालत ने कहा,

“यह सच है कि आम तौर पर आपराधिक कार्यवाही रद्द करने की मांग की जाएगी और धारा 482 सीआरपीसी के तहत हाईकोर्ट की अंतर्निहित शक्ति का प्रयोग करके ऐसा किया जाएगा। लेकिन निश्चित रूप से इसका मतलब यह नहीं है कि यह केवल भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत असाधारण शक्ति के आह्वान में नहीं किया जा सकता है।”

जस्टिस सी.टी. रविकुमार और जस्टिस संजय कुमार की खंडपीठ इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस निर्णय के विरुद्ध दायर आपराधिक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपने रिट क्षेत्राधिकार का प्रयोग करते हुए अपीलकर्ताओं के विरुद्ध आपराधिक मामले को रद्द करने से इनकार कर दिया गया था।

अपीलकर्ता विदेशी नागरिक और हुंडई इंजीनियरिंग एंड कंस्ट्रक्शन इंडिया एलएलपी (एचईसी इंडिया एलएलपी) का परियोजना प्रबंधक एफ आई आर में आरोपी है। एफ आई आर में कुल 9 करोड़ रुपये के भुगतान में चूक से संबंधित धोखाधड़ी, जालसाजी और आपराधिक साजिश का आरोप लगाया गया।

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अनुबंधों की श्रृंखला में कई उपठेकेदार शामिल थे और शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि चेक का अनादर और भुगतान न करने से उसके भाई की मृत्यु सहित वित्तीय और व्यक्तिगत नुकसान हुआ।

हाईकोर्ट का निर्णय खारिज करते हुए जस्टिस रविकुमार द्वारा लिखे गए निर्णय में कहा गया कि हाईकोर्ट ने अपीलकर्ताओं के विरुद्ध विषयगत एफ आई आर रद्द करने के लिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत असाधारण शक्ति का प्रयोग करने से इंकार करके गलती की है।

न्यायालय ने हरियाणा राज्य और अन्य बनाम भजन लाल और अन्य (1992) के मामले का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया कि अनुच्छेद 226 के तहत असाधारण शक्ति या धारा 482 सीआरपीसी के तहत अंतर्निहित शक्ति का प्रयोग हाईकोर्ट द्वारा किसी भी न्यायालय की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने या न्याय के उद्देश्यों को सुरक्षित करने के लिए किया जा सकता है।

साथ ही पेप्सी फूड्स लिमिटेड और अन्य बनाम विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट और अन्य (1998) के मामले ने न्यायालय की इस टिप्पणी का समर्थन किया, जहां यह माना गया,

“हाईकोर्ट आपराधिक मामलों में न्यायिक पुनर्विचार की अपनी शक्ति का प्रयोग कर सकता है। यह संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत या धारा 482 सीआरपीसी के तहत न्यायालय की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने या न्याय के उद्देश्यों को सुरक्षित करने के लिए इस शक्ति का प्रयोग कर सकता है। इसके अलावा, यह माना गया कि उस शक्ति का प्रयोग प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करेगा।”

चूंकि एफ आई आर में अपीलकर्ता के खिलाफ कथित अपराध के बारे में खुलासा नहीं किया गया, इसलिए भजन लाल के मामले में निर्धारित कानून को लागू करते हुए न्यायालय ने अपीलकर्ता के खिलाफ लंबित आपराधिक मामला रद्द कर दिया।

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न्यायालय ने कहा,

“विषयगत एफ आई आर का अवलोकन करने से पता चलता है कि उसमें कथित अपराध(ओं) के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई, क्योंकि उसमें कुछ भी जोड़ा नहीं गया। इसके अलावा, अस्पष्ट आरोपों के अलावा, उनमें से बाकी को अगर सच भी मान लिया जाए तो भी किसी अपराध के होने का खुलासा नहीं होता और अपीलकर्ता के खिलाफ कोई मामला नहीं बनता। ऐसी परिस्थितियों में अपीलकर्ता को मुकदमे का सामना करने के लिए कहना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने के अलावा और कुछ नहीं होगा। इस तरह एफ आई आर रद्द करने और उसके आधार पर आगे की कार्यवाही करने के अधिकार का प्रयोग करने से इनकार करके हस्तक्षेप न करना न्याय की विफलता होगी।”

तदनुसार, अपील स्वीकार की गई।

केस टाइटल: किम वानसू बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य।

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साभार: लाइव लॉ

विवेक कुमार जैन
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