सर्वोच्च न्यायालय ने कृषि भूमि में विवाहित महिलाओं को उत्तराधिकार दिए जाने वाली जन हित याचिका का लिया संज्ञान।

उच्चतम न्यायालय मुख्य सुर्खियां
केंद्र, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार को चार सप्ताह में जवाब देने का नोटिस किया जारी
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में विवाहित महिलाओं के कृषि भूमि अधिकारों पर भेदभाव के खिलाफ है याचिका

आगरा/नई दिल्ली 08 नवंबर ।

कृषि भूमि उत्तराधिकार में विवाहित महिलाओं के प्रति भेदभाव किए जाने संबधी श्वेता गुप्ता की महत्वपूर्ण जनहित याचिका पर संज्ञान लेते हुए सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला, और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने दिनांक 6 नवंबर 2024 को केंद्र सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार और उत्तराखंड सरकार को नोटिस जारी करते हुए चार सप्ताह में जवाब मांगा है । इस मामले में अगली सुनवाई की तिथि 10 दिसंबर 2024 निश्चित की है।

इस याचिका में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कृषि भूमि उत्तराधिकार कानूनों में विवाहित महिलाओं के साथ किए जा रहे भेदभावपूर्ण प्रावधानों को चुनौती दी गई है।

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प्रमुख बिंदुः

याचिका में उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 और उत्तराखंड भूमि कानूनों में कृषि भूमि के उत्तराधिकार में महिलाओं के विरुद्ध स्पष्ट भेदभावकारी प्रावधानों की ओर संकेत किया गया है, जिन्हें संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन बताया गया है।

अविवाहित बेटियों को प्राथमिकताः  

राजस्व संहिता की धारा 108 और 110 के प्रावधानों के तहत अविवाहित बेटियों को विवाहित बेटियों की तुलना में प्राथमिकता दी गई है। यदि अविवाहित पुत्री है तो वह अपने माता पिता की कृषि भूमि की उत्तराधिकारी बनेगी और विवाहित पुत्री को कृषि भूमि में उत्तराधिकार का कोई अधिकार प्राप्त नहीं होगा।

इसका सीधा अर्थ यह है कि विवाहित बेटियां अपने माता-पिता की कृषि भूमि में उत्तराधिकार से वंचित हो जाती हैं। याचिका में इसे महिलाओं के अधिकारों और स्वतंत्रता का उल्लंघन बताते हुए रेखांकित किया गया है कि विवाह एक महिला के उत्तराधिकार अधिकार को समाप्त करने का कारण नहीं बनना चाहिए।

विधवा के पुनर्विवाह पर कृषि भूमि से वंचितः  

धारा 110 के तहत, किसी विधवा का पुनर्विवाह उसकी कृषि भूमि के अधिकार को समाप्त कर देता है। पुनर्विवाह को महिला की मृत्यु के समान माना गया है, और पुर्नविवाह पर विधवा का कृषि भूमि पर अधिकार स्वतः समाप्त हो जाता है। याचिका में इसे महिला के संवैधानिक अधिकारों का अतिक्रमण और असंवैधानिक बताया गया है।

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पुनर्विवाह मृत्यु के समानः  

धारा 109 में यह प्रावधान है कि यदि कोई महिला कृषि भूमि में उत्तराधिकारी बनती है और उसका पुनर्विवाह होता है, तो यह उसके अधिकार को समाप्त कर देता है। महिला का पुनर्विवाह उसके लिए कृषि भूमि उत्तराधिकार का अंत बन जाता है। महिला के अधिकारों का उल्लंघन बताते हुए कहा गया है कि विवाह या पुनर्विवाह के कारण महिला के उत्तराधिकार अधिकार समाप्त नहीं होने चाहिए।

विवाहित महिला व विवाहित पुरूष में अन्तरः

धारा 109 और धारा 110 के अनुसार, विवाहित महिलाओं को उनके वैवाहिक स्थिति के आधार पर कृषि भूमि उत्तराधिकार में वंचित किया जाता है, जबकि पुरुषों के लिए ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। याचिका में यह तर्क दिया गया है कि विवाह का अधिकार एक मौलिक अधिकार है और इसे उत्तराधिकार अधिकारों के साथ समझौता नहीं किया जाना चाहिए। पुरूष के विवाह होने पर उत्तराधिकार में प्राप्त हुयी कृषि भूमि पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है जबकि पुत्री के विवाह पर भूमि का स्वामित्व ही उसका समाप्त हो जाता है।

यही नहीं, धारा 109 के अनुसार, यदि कोई महिला अपने पति की कृषि भूमि में उत्तराधिकारी बनती है और उसके बाद उसकी मृत्यु हो जाती है, तो वह भूमि महिला के अपने परिवार के सदस्यों के बजाय पति के वारिसों को उत्तराधिकार में प्राप्त होती है। यह प्रावधान महिला के अपने परिवार को उत्तराधिकार से वंचित कर देता है, जिससे उसे और उसके परिवार को आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ता है।

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याचिका में कथनः

याचिका में श्वेता गुप्ता ने कहा है विवाह या पुनर्विवाह किसी भी महिला का निजी और मौलिक अधिकार है, जो संवैधानिक रूप से संरक्षित है। यह अस्वीकार्य है कि विवाह को आधार बनाकर महिला को कृषि भूमि उत्तराधिकार से वंचित किया जाए। यह भेदभाव महिलाओं की गरिमा और उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। महिलाओं को अपने उत्तराधिकार अधिकार और विवाह के बीच चुनने के लिए मजबूर करना असंवैधानिक है।

समाज में व्यापक प्रभाव

सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तरदाताओं को नोटिस जारी करते हुए चार सप्ताह में उत्तर देने का आदेश दिया है। न्यायालय का यह कदम इस संवेदनशील मुद्दे पर संवैधानिक मानदंडों के आधार पर निर्णय लेने की गंभीरता को दर्शाता है। याचिका का उद्देश्य इन भेदभावपूर्ण प्रथाओं को समाप्त करना और महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करना है, ताकि सभी महिलाओं को कृषि भूमि उत्तराधिकार में समान अधिकार मिल सकें।

वरिष्ठ अधिवक्ता के.सी. जैन

वरिष्ठ अधिवक्ता के0सी0 जैन द्वारा इस जनहित याचिका में न्यायालय के समक्ष तर्क प्रस्तुत किये गये। उन्होंने कहा कि यह याचिका समाज में विवाहित महिलाओं के खिलाफ कृषि भूमि के उत्तराधिकार से सम्बन्धित प्रचलित भेदभावपूर्ण प्रथाओं को समाप्त करने और संवैधानिक समानता सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।

यदि सर्वोच्च न्यायालय इस याचिका पर सकारात्मक निर्णय देता है, तो यह निर्णय महिलाओं के अधिकारों और समानता की दिशा में एक ऐतिहासिक मील का पत्थर साबित होगा। यह निर्णय कृषि भूमि के अब तक के क्रय विक्रयों को प्रभावित नहीं करेगा व भविष्य के लिये ही दिशा निर्धारित करेगा।

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विवेक कुमार जैन
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