इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुलंदशहर में चलती कार में गैंग रेप व हत्या रेयर ऑफ द रेयरेस्ट नहीं माना

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तीन दोषियों की फांसी की सजा 25 साल कैद में तब्दील

आगरा/प्रयागराज 05 अक्टूबर।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुलंदशहर जिले में छह वर्ष पूर्व 17 वर्षीय किशोरी के साथ गैंग रेप और हत्या के तीन अभियुक्तों की फांसी की सजा को बिना किसी छूट के 25 साल कारावास में तब्दील कर दिया है।

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न्यायमूर्ति अरविंद सिंह सांगवान एवं न्यायमूर्ति मोहम्मद अजहर हुसैन इदरीसी की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि यह दुर्लभतम से दुर्लभतम (रेयर ऑफ द रेयरेस्ट) मामला नहीं है, जिसमें मृत्युदंड दिया जा सके। कोर्ट ने यह भी कहा कि दोषियों के समाज में सुधार और पुनर्वास की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।

मामले के तथ्यों के अनुसार दो जनवरी 2018 की शाम अभियुक्त जुल्फिकार अब्बासी, दिलशाद अब्बासी और मालानी उर्फ ​​इजरायल ने मस्ती करने के लिए एक लड़की को उठाने का फैसला किया। उन्होंने पीड़िता को अपनी साइकिल पर अकेले आते देखा और जबरन अपनी गाड़ी में उठा लिया। फिर चलती गाड़ी में ही उसके साथ बारी-बारी से रेप किया।

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जब लड़की रोने लगी तो उन्होंने उसके ही दुपट्टे से गला घोंटकर उसकी हत्या कर दी और उसके बाद उसकी लाश को नाले में फेंक दिया। मार्च 2021 में बुलंदशहर की पोक्सो अदालत ने तीनों आरोपियों को दोषसिद्ध पाते हुए फांसी की सज़ा सुनाई। अदालत ने कहा था कि उनके अपराध ने लोगों को डरा दिया था। माता-पिता अपनी लड़कियों को स्कूल भेजने से डरने लगे थे।

अदालत ने उन्हें आईपीसी की धारा 364, 376D, 302/34, 201, 404 और पाक्सो एक्ट की धारा 5G जी/6 के तहत दोषी ठहराया था। उनकी अपीलों और मृत्युदंड की पुष्टि के लिए निचली अदालत के संदर्भ पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने साक्ष्यों का पुनः मूल्यांकन करने के बाद उनकी फांसी की सजा 25 वर्ष कैद में तब्दील कर दी।

घटना की तारीख को पीड़िता की उम्र लगभग 17 वर्ष 03 माह और 28 दिन थी। इस बात को ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट के इस निष्कर्ष को बरकरार रखा कि अभियुक्तों ने पीड़िता का अपहरण करने का अपराध किया, जो 18 वर्ष से कम आयु की थी।

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उसके साथ गंभीर यौन उत्पीड़न भी किया और फिर दुपट्टे से गला घोंटकर उसकी हत्या कर दी और उसके शव को नाले के पास फेंक दिया। हाईकोर्ट ने उनकी दोषसिद्धि की पुष्टि की। तीनों की सजा के सवाल पर हाईकोर्ट ने कहा कि यह दुर्लभतम मामला नहीं है, जिसमें मृत्युदंड दिया जा सके।

मौत की सजा हटाते हुए कोर्ट ने कहा कि अपीलार्थियों का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है और उनके परिवार भी उन्हें सहयोग कर रहे हैं। अपीलार्थियों की आयु लगभग 24 वर्ष है। समाज में उनके सुधार और पुनर्वास की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।

ट्रायल कोर्ट ने भी मृत्युदंड देने से पहले यह निष्कर्ष दर्ज नहीं किया कि आरोपी समाज के लिए खतरा हो सकते हैं।

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मनीष वर्मा
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