नाबालिग पार्टनर के साथ लिव-इन में रहने वाले जोड़े को उनके धर्म के बावजूद सुरक्षा नहीं मिल सकती : पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

उच्च न्यायालय मुख्य सुर्खियां

आगरा /चंडीगढ़ 11 सितंबर ।

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि लिव-इन में रहने वाले जोड़े, जिनमें से एक या दोनों साथी नाबालिग हैं, न्यायालय से सुरक्षा नहीं मांग सकते, क्योंकि वे अनुबंध करने के लिए सक्षम नहीं हैं।

जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस सुदीप्ति शर्मा की खंडपीठ ने कहा,

“नाबालिग के अनुबंध में प्रवेश करने पर रोक है। जिसकी अक्षमता नाबालिग या वयस्क के साथ लिव-इन संबंध में प्रवेश करने के लिए गलत विकल्प चुनने को भी शामिल करती है। यदि नाबालिग भागीदारों को सुरक्षा प्रदान की जाती है, जो ऐसे लिव-इन संबंध में हैं, जहां उनमें से केवल एक नाबालिग है, या जहां दोनों नाबालिग हैं, तो इस प्रकार से संरक्षण प्रदान करना, नाबालिग के विवेकाधिकार के वैधानिक प्रतिबंधों के विपरीत होगा।”

इसमें कहा गया कि किसी भी धार्मिक संप्रदाय से संबंधित नाबालिग अनुबंध करने के लिए अक्षम है।

Also Read - जम्मू कश्मीर चुनाव में प्रचार के लिए सांसद इंजीनियर राशिद को मिली अंतरिम जमानत

न्यायालय ने कहा,

“नाबालिगों द्वारा चुनाव करने की स्वतंत्रता को हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम, 1956 और संरक्षक और वार्ड अधिनियम, 1890 के रूप में नामित कानूनों द्वारा सक्षम रूप से प्रतिबंधित किया गया है।”

ये टिप्पणियां एकल न्यायाधीश द्वारा इस मुद्दे पर एकल पीठों के विरोधाभासी निर्णयों को देखने के बाद किए गए संदर्भ की सुनवाई करते समय की गईं।

नाबालिग साथी को शामिल करने वाले लिव-इन जोड़े के मुद्दे पर न्यायालय ने कहा,

“हिंदुओं के अलावा अन्य धार्मिक समुदायों के संबंध में भारतीय वयस्कता अधिनियम, इस प्रकार वयस्कता की आयु निर्धारित करता है, जिससे नाबालिग के अनुबंध में प्रवेश करने पर रोक लग जाती है।”

न्यायालय ने कहा कि नाबालिगों के माता-पिता होने के नाते उसे ऐसी स्थिति में नाबालिग बच्चे के कल्याण को सुनिश्चित करना चाहिए और बच्चे को माता-पिता के पास वापस भेज दिया जाना चाहिए।

Also Read - दहेज की मांग सिद्ध न होने पर धारा 304 बी के तहत दहेज हत्या के लिए दोषसिद्धि कायम नहीं रह सकती : सुप्रीम कोर्ट

न्यायालय ने कहा,

“न्यायालय पर डाला गया उक्त गंभीर कर्तव्य (पैरेंस पैट्रिया) स्वाभाविक रूप से यह अपेक्षा करता है कि संबंधित नाबालिग को नाबालिग या वयस्क के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में भागीदार बनने की अनुमति देने के बजाय उसकी हिरासत उसके माता-पिता और प्राकृतिक अभिभावक को वापस सौंपना सुनिश्चित किया जाना चाहिए।”

हालांकि, इसमें यह भी कहा गया कि यदि न्यायालय की राय है कि नाबालिग के जीवन को “आसन्न खतरा” है तो किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 के प्रासंगिक प्रावधानों के अनुसार कार्यवाही की जा सकती है और न्यायालय नाबालिग को वयस्क होने तक बाल गृह या नारी निकेतन में आराम से रहने का निर्देश दे सकता है।

केस टाइटल: यशपाल और अन्य बनाम हरियाणा राज्य और अन्य

Stay Updated With Latest News Join Our WhatsApp  – Group BulletinChannel Bulletin

 

Source Link

 

विवेक कुमार जैन
Follow me

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *