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न्यायपालिका की स्वतंत्रता का मतलब हमेशा सरकार के खिलाफ़ फ़ैसला सुनाना नहीं: सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़

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आगरा/नई दिल्ली 05 नवंबर ।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने सोमवार (4 नवंबर) को कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता का मतलब यह नहीं है कि हमेशा सरकार के खिलाफ़ फ़ैसला सुनाया जाए।

10 नवंबर को पद छोड़ने वाले निवर्तमान सीजेआई ने कहा कि सोशल मीडिया के आगमन के साथ कई “दबाव समूह” उभरे हैं, जो किसी मामले में उनके हितों के अनुसार फ़ैसला न होने पर रोना रोते हैं। न्यायिक स्वतंत्रता का मतलब सिर्फ़ सरकार से ही नहीं बल्कि ऐसे “दबाव समूहों” और “हित समूहों” से भी स्वतंत्रता है।

इंडियन एक्सप्रेस द्वारा आयोजित चर्चा में बोलते हुए सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि न्यायालय की भूमिका “राजनीतिक विपक्ष” की नहीं है।

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सीजेआई ने कहा,

“परंपरागत रूप से, न्यायिक स्वतंत्रता को कार्यपालिका से स्वतंत्रता के रूप में परिभाषित किया जाता है। न्यायपालिका से स्वतंत्रता का मतलब अब भी सरकार से स्वतंत्रता है। लेकिन न्यायिक स्वतंत्रता के मामले में यही एकमात्र बात नहीं है। हमारा समाज बदल गया। खास तौर पर सोशल मीडिया के आगमन के साथ आप हित समूहों, दबाव समूहों और ऐसे समूहों के समूह को देखते हैं, जो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का उपयोग करके न्यायालयों पर दबाव डालने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे कुछ खास नतीजे निकल सकें। आप पाते हैं कि इन समूहों के बहुत से हिस्से कहते हैं, ‘अगर आप मेरे पक्ष में फैसला करते हैं तो आप स्वतंत्र हैं। अगर आप मेरे पक्ष में फैसला नहीं करते हैं तो आप स्वतंत्र नहीं हैं।’ यही वह बात है जिस पर मुझे आपत्ति है। स्वतंत्र होने के लिए एक जज के पास यह स्वतंत्रता होनी चाहिए कि वह अपने विवेक के अनुसार निर्णय ले सके, बेशक, वह विवेक जो कानून और संविधान द्वारा निर्देशित हो।”

सीजेआई ने कहा कि जब उन्होंने चुनावी बांड रद्द किया तो उन्हें स्वतंत्र के रूप में सराहा गया, लेकिन जब उन्होंने सरकार के पक्ष में एक और मामला तय किया तो उनकी आलोचना की गई।

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सीजेआई ने दर्शकों की तालियों के बीच कहा,

“जब आपने चुनावी बांड पर फैसला किया, “ओह, आप स्वतंत्र हैं!” लेकिन अगर कोई फैसला सरकार के पक्ष में जाता है तो आप स्वतंत्र नहीं हैं। यह मेरी स्वतंत्रता की परिभाषा नहीं है।”

उन्होंने कहा,

“आपको जजों को यह तय करने की छूट या स्वतंत्रता देनी चाहिए कि उन्हें न्याय का संतुलन कहां लगता है, भले ही फैसला किसके पक्ष में जाए। यह वास्तव में मेरी चिंता है कि आज यह उम्मीद की जाती है कि आपसे एक स्वतंत्र न्यायालय के रूप में व्यवहार किया जाएगा, बशर्ते आप लगातार सरकार के खिलाफ़ रहें। जिन मामलों में सरकार के खिलाफ़ जाना है, हमने सरकार के खिलाफ़ फैसला किया। लेकिन अगर कानून के अनुसार किसी मामले में सरकार के पक्ष में फैसला होना है, तो आपको कानून के अनुसार फैसला करना होगा। यह संदेश जाना चाहिए जो एक स्थिर और जीवंत न्यायपालिका के अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है।”

यह पूछे जाने पर कि क्या लोकसभा चुनाव के नतीजों ने न्यायालय के दृष्टिकोण को बदल दिया, सीजेआई ने कहा,

“माहौल से ऐसा लग सकता है कि इन चीजों से फर्क पड़ता है। हमने 4 जून के फैसले से पहले ही चुनावी बॉन्ड मामले पर फैसला कर लिया। हमने देश में चुनाव होने से पहले ही इस मामले पर फैसला कर लिया था। ये ऐसे मुद्दे नहीं हैं, जो जजों को प्रभावित करते हैं। लेकिन न्यायालय के भीतर आम सहमति बनाना, जिस दिशा में हमें जाना चाहिए, उसे बनाने के लिए कुछ हद तक विचार-विमर्श की आवश्यकता होती है। आप मामलों में अचानक रातोंरात ट्रैक नहीं बदल सकते। वे क्रमिक बदलावों के साथ मामलों का फैसला करते हैं। न्यायालय से आने वाला यह क्रमिक बदलाव हमारे न्यायशास्त्र की स्थिरता को बनाए रखने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि बाएं से दाएं या ऊपर से नीचे तक कोई क्रांतिकारी बदलाव न हो।”

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साभार: लाइव लॉ

विवेक कुमार जैन
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