आगरा/नई दिल्ली 26 अगस्त।
सर्वोच्च न्यायालय ने 30 साल पुराने दहेज हत्या के मामले में पति की दोषसिद्धि बरकरार रखी, क्योंकि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 113बी के तहत दहेज हत्या की धारणा पति द्वारा खारिज नहीं की गई थी।
अदालत ने कहा कि जब अभियोजन पक्ष ने यह साबित करने का प्रारंभिक भार समाप्त कर दिया कि मृतक की मृत्यु उत्पीड़न और क्रूरता के कारण हुई और उसकी शादी की तारीख से सात साल के भीतर 100% जलने की चोटों के कारण हुई थी तो साक्ष्य अधिनियम की धारा 113 बी के तहत आरोपी के खिलाफ लगाए गए अनुमान खारिज करने का दायित्व आरोपी पर आ जाता है।
कोर्ट ने कहा कि
जिस पति ने उसी कमरे में उसके साथ सोया था, वह बच गया। इसलिए यह बताना उसके विशेष ज्ञान में है कि मृत्यु कैसे हुई ? इसलिए साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 के अनुसार उस पर अतिरिक्त भार डाला गया, जिसमें कहा गया कि किसी व्यक्ति के विशेष ज्ञान में आने वाली बातों को साबित करने का भार उस व्यक्ति पर है।
यदि किसी महिला को मृत्यु से पहले क्रूरता और उत्पीड़न का सामना करना पड़ा था और मृत्यु दहेज की मांग के संबंध में हुई तो धारा 113 बी के आधार पर उस व्यक्ति के खिलाफ यह अनुमान लगाया जाता है कि उसने दहेज हत्या का कारण बनाया।
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न्याय मूर्ति सीटी रविकुमार और न्याय मूर्ति संजय करोल की खंडपीठ ने कहा,
“अभियोजन पक्ष ने जब अपना भार पूरा कर लिया और ऐसे तथ्यों को साबित कर दिया तो साक्ष्य अधिनियम की धारा 113 बी के प्रावधानों के अनुसार अपीलकर्ताओं पर यह स्थापित करने का भार था कि यह दहेज हत्या नहीं थी, साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 भी पहले अपीलकर्ता-पति पर भार डालती है, जो उसके साथ एक ही कमरे में सोने गया, लेकिन बिना किसी चोट के बच गया, यह बताने का कि मृत्यु कैसे हुई, क्योंकि यह उक्त धारा के अर्थ के भीतर विशेष ज्ञान में थी।”
न्यायालय ने कहा कि अपीलकर्ता/आरोपी अपने अनुमान को पूरा करने में विफल रहे तथा धारा 313 सीआरपीसी के तहत बयान दर्ज करने के दौरान, जब उन्हें दोषी ठहराने वाली सामग्री दी गई तो उन्होंने कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया।
न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला,
“उपर्युक्त परिस्थितियों, अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य तथा साक्ष्य अधिनियम की धारा 113 बी के प्रावधानों के अनुसार अपीलकर्ताओं द्वारा अपने दायित्व का निर्वहन करने में परिणामी विफलता तथा साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 के तहत प्रथम अपीलकर्ता-पति पर डाले गए अतिरिक्त दायित्व को देखते हुए हमारा विचार है कि उच्च न्यायालय अभिलेख पर उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर उचित निष्कर्ष पर पहुंचा है।”
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तदनुसार, निर्णय बरकरार रखा गया तथा अपीलकर्ताओं/आरोपी की दोषसिद्धि बरकरार रखी गई।
केस टाइटल: दामोदर एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, आपराधिक अपील नंबर 960/2018
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