कोर्ट ने कहा वेद शास्त्र का ज्ञाता देखें मंदिरों का प्रबंधन, वकीलों को मंदिर प्रबंधन से रखें दूर।
जिला जज को विवादों का निस्तारण कराने के हर कदम उठाने का निर्देश।
आगरा /प्रयागराज 29 अगस्त।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि मथुरा के मंदिरों में प्रबंधकीय विवाद के कारण वकीलों को रिसीवर नियुक्त करने से सिविल वादों का निस्तारण करने में रूचि नहीं ली जा रही। कोर्ट ने कहा वेद शास्त्र का ज्ञान रखने वाले श्रद्धालु को मंदिरों का प्रशासन व प्रबंधन सौंपा जाना चाहिए, इससे वकीलों को दूर रखा जाय।
कोर्ट ने जिला जज को सिविल वादों के शीघ्र निपटारे के हर प्रयास करने का निर्देश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने देवेंद्र कुमार शर्मा व अन्य बनाम रूचि तिवारी अपर सिविल जज सीनियर डिवीजन मथुरा के खिलाफ दाखिल अवमानना याचिका को निस्तारित करते हुए दिया है।
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कोर्ट ने अदालत के 28 मार्च 23 के आदेश को रद्द करते हुए प्रकरण तय करने के लिए सिविल जज को वापस भेज दिया है। कोर्ट ने कहा मथुरा के अधिकांश पुराने व प्रसिद्ध मंदिर कानूनी विवादों के पचड़े में फंसे हुए हैं। लोगों में मंदिरों का रिसीवर बनने की होड़ लगी है। ये ट्रस्ट, सेवायतों व प्रबंध समिति को मंदिर व्यवस्था नहीं करने दे रहे।
अदालत से नियुक्त रिसीवर मंदिर प्रबंधन देख रहा है। हाईकोर्ट ने जिला जज मथुरा से विवादित मंदिरों की सूची मांगी। हाईकोर्ट व अधीनस्थ अदालतों के अधिवक्ता चंदन शर्मा ने जिला जज की रिपोर्ट दी और बताया कि मथुरा में कुल 197 मंदिर विवादों में घिरे हैं।
बृंदावन, गोवर्धन, बलदेव, गोकुल, बरसाना, माठ आदि जगहों पर मंदिर स्थित है। जिन मंदिरों में वकील रिसीवर है, वे केस को तय कराने के बजाय लंबित रखने में रूचि लेते हैं।
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मुकदमा तय करने का कोई प्रयास नहीं करते। रिसीवर होना स्टेटस सिंबल बना हुआ है। हर कोई रिसीवर बनना चाहता है। वकीलों के पास मंदिर प्रशासन व प्रबंधन के लिए समय नहीं। वकील मुकदमा कर खुद रिसीवर बन रहे।
हाईकोर्ट ने कमेटी को रिसीवर बनाने का आदेश दिया था किन्तु एक वकील को ही बनाया गया तो अवमानना याचिका दायर कर याची ने खुद को रिसीवर नियुक्त करने की मांग की। 1957 मे गिरिराज सेवक समिति बारा बाजार, गोवर्धन पंजीकृत हुई। जो गिरिराज मंदिर का प्रबंधन देखती थी। 1998 तक शांति से चलता रहा।
इसके बाद चुनाव को लेकर विवाद शुरू हुआ। पीठासीन अधिकारी ने सन् 2000 मे चुनाव को वैध घोषित किया। जो सिविल वाद व याचिका में उलझता गया।
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