सुप्रीम कोर्ट ने भारत संघ की अपील खारिज करते हुए आदेश दिया कि लॉटरी वितरक सर्विस टैक्स का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी नहीं

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आगरा/नई दिल्ली 11 फरवरी ।

सुप्रीम कोर्ट ने सिक्किम उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेशों को बरकरार रखा, जिसमें वित्त अधिनियम, 1994 की धारा 65(105) के खंड (zzzzn) को असंवैधानिक घोषित किया गया, जिसे वित्त अधिनियम, 2010 द्वारा सम्मिलित किया गया।

उक्त खंड ने “लॉटरी सहित जुए के खेल को बढ़ावा देने, विपणन करने, आयोजन करने या किसी अन्य तरीके से आयोजन में सहायता करने” की गतिविधि को कर योग्य सेवा की नई श्रेणी के रूप में पेश किया।

याचिकाकर्ता सिक्किम सरकार द्वारा आयोजित क्रमशः कागज और ऑनलाइन लॉटरी टिकटों की बिक्री के व्यवसाय में लगी निजी लिमिटेड कंपनियां हैं। वित्त अधिनियम, 2010 की धारा 65(105) के खंड (zzzzn) को इस आधार पर चुनौती दी गई कि उनके द्वारा की गई गतिविधि “कर योग्य सेवा” के दायरे में नहीं आती है।

इसके अलावा, लॉटरी वितरकों ने तर्क दिया कि लॉटरी का संचालन “सट्टेबाजी और जुआ” का कार्य है, जिसके लिए राज्य विधानमंडल को सातवीं अनुसूची की सूची II की प्रविष्टि 62 के तहत विशेष अधिकार प्राप्त है। संसद सातवीं अनुसूची की सूची I की प्रविष्टि 97 के तहत सूची II की प्रविष्टि 34 और 62 के तहत आने वाली किसी भी गतिविधि के संबंध में कोई कर नहीं लगा सकती।

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उक्त आदेश के द्वारा हाईकोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस प्रमोद कोहली और एस.पी. वांगडी की खंडपीठ ने वित्त अधिनियम, 2010 की धारा 65(105) के खंड (zzzzn) को संविधान के विरुद्ध बताते हुए रद्द कर दिया।

हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के पक्ष में फैसला सुनाया कि लॉटरी वितरकों की गतिविधियां सेवा नहीं हैं। इस प्रकार, यह कर योग्य सेवा के दायरे से बाहर है। इसने यह भी माना कि लॉटरी सहित जुए के खेल को बढ़ावा देने, विपणन करने, आयोजन करने या किसी अन्य तरीके से आयोजन में सहायता करने की गतिविधि को सूची II, सातवीं अनुसूची की प्रविष्टि 62 के तहत “सट्टेबाजी और जुआ” की अभिव्यक्ति में शामिल किया गया और केवल राज्य विधानमंडल ही ऐसी गतिविधि पर कर लगाने के लिए सक्षम है।

सुप्रीम कोर्ट ने सिक्किम हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार द्वारा दायर अपीलों को खारिज कर दिया।

जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिसि एन.के. सिंह की खंडपीठ ने कहा कि लॉटरी वितरक और सिक्किम राज्य के बीच संबंध मुख्य-प्रधान था न कि एजेंसी के लिए प्रमुख। चूंकि संबंध में कोई एजेंसी नहीं है, इसलिए प्रतिवादी (वितरक) सेवा कर का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी नहीं थे, क्योंकि वे राज्य सरकार को कोई सेवा नहीं दे रहे हैं।

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जस्टिस नागरत्ना ने फैसले के मुख्य अंशों को पढ़ते हुए कहा,

“कोई एजेंसी नहीं होने के कारण सिक्किम सरकार के एजेंट के रूप में प्रतिवादी-करदाताओं द्वारा कोई सेवा प्रदान नहीं की गई, लॉटरी टिकट के खरीदार और सिक्किम सरकार के बीच लेन-देन पर सेवा कर देय नहीं है।”

हालांकि, प्रतिवादी सूची II की प्रविष्टि 62 के तहत राज्य द्वारा लगाए गए जुआ कर का भुगतान करना जारी रखेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस निष्कर्ष की पुष्टि की कि लॉटरी राज्य सूची की प्रविष्टि 62 के तहत “सट्टेबाजी और जुआ” के अंतर्गत आती है। इसलिए केवल राज्य सरकार ही कर लगा सकती है।

यह निर्णय के. अरुमुघम बनाम भारत संघ में 2024 के फैसले के बाद आया, जिसमें कहा गया कि राज्य सरकार द्वारा लॉटरी टिकटों की बिक्री एक सेवा नहीं है, बल्कि अतिरिक्त राजस्व अर्जित करने की एक गतिविधि है।

इसलिए थोक लॉटरी खरीदार राज्य द्वारा प्रदान की गई किसी भी सेवा को बढ़ावा या विपणन नहीं कर रहे हैं, जिससे “व्यावसायिक सहायक सेवा” शीर्षक के तहत सेवा कर देयता को आकर्षित किया जा सके।

केस टाइटल: भारत संघ और अन्य बनाम फ्यूचर गेमिंग सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड और अन्य आदि

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साभार: लाइव लॉ

विवेक कुमार जैन
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