SC with UP

देश की सर्वोच्च अदालत ने कहा कि गैंगस्टर्स जैसे सख्त कानूनों के तहत एफ आई आर दर्ज होने पर सख्त जांच है जरूरी

उच्चतम न्यायालय मुख्य सुर्खियां

आगरा/नई दिल्ली 13 फरवरी

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (12 फरवरी) को फैसला सुनाया कि उत्तर प्रदेश गैंगस्टर्स एक्ट जैसे सख्त कानूनों के तहत दर्ज एफ आई आर की सख्त जांच जरूरी है, जिससे संपत्ति या वित्तीय विवादों में गैंगस्टर एक्ट का दुरुपयोग न हो सके ।

कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि संविधान के अनुच्छेद 21 की अवहेलना सिर्फ किसी के विरुद्ध आपराधिक अपराध दर्ज होने के आधार पर नहीं की जा सकती। इसके अलावा, न्यायालय ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अधिकारियों को गैंगस्टर अधिनियम के सख्त प्रावधानों को लागू करने में असीमित विवेक नहीं दिया जा सकता।

कोर्ट ने कहा,

“आखिरकार, भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार को सिर्फ इस वजह से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि किसी व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज किए गए है ।अधिनियम को लागू करने की बात आने पर संबंधित अधिकारियों को कोई भी असीमित विवेक का प्रयोग करने देना स्पष्ट रूप से नासमझी होगी। कोई प्रावधान जितना कठोर या दंडात्मक होगा, उसे सख्ती से लागू करने पर उतना ही जोर और आवश्यकता होगी।”

जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश गैंगस्टर्स और असामाजिक गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1986 (गैंगस्टर्स एक्ट ) के तहत तीन व्यक्तियों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामला खारिज कर दिया, यह देखते हुए कि पक्षों के बीच संपत्ति विवाद के कारण गैंगस्टर्स एक्ट के तहत एफ आई आर दर्ज की गई।एफ आई आर की सामग्री को पढ़ने पर न्यायालय को ऐसा कुछ भी नहीं मिला, जिससे यह पता चले कि ये व्यक्ति सार्वजनिक धमकी या संगठित अपराध से जुड़ी गैंग गतिविधि में शामिल थे।

जस्टिस अमानुल्लाह द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया कि गैंगस्टर्स एक्ट जैसे कड़े कानूनों के तहत अभियोजन की अनुमति देने से पहले न्यायालयों को वैधानिक आवश्यकताओं का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करना चाहिए। हाल ही में मोहम्मद रहीम अली @ अब्दुर रहीम बनाम असम राज्य के मामले का संदर्भ दिया गया,

Also Read – सुप्रीम कोर्ट ने मशीनरी चोरी मामले में सपा नेता मोहम्मद आजम खान और उनके बेटे को दी जमानत

जहां न्यायालय ने कहा कि

“यदि किसी नागरिक के सामान्य अधिकार के उल्लंघन में विशेष प्रावधान किए जाते हैं तो हमारे विचार में कानून को सख्त रूप से परिभाषित किया जाना चाहिए।”

न्यायालय ने मोहम्मद वाजिद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2023) के मामले का भी उल्लेख किया और कहा कि न्यायालयों को केवल आरोपों से परे देखना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि विशेष कानूनों के तहत मामले वैधानिक सीमा को पूरा करते हों।

न्यायालय ने कहा,

“यह मानते हुए कि तीन (या चार, जिसमें एफ आई आर में संदर्भित नहीं की गई सीसी भी शामिल है) सीसी में सभी आरोप सही हैं, उक्त सीसी के रजिस्ट्रेशन के बाद अपीलकर्ताओं द्वारा कथित धमकियों को लागू करने/उन पर कार्रवाई करने के किसी भी उदाहरण का उल्लेख नहीं है। शिकायतकर्ता(ओं)/सूचनाकर्ता(ओं) ने भी, जहां आवश्यक हो, सिविल कार्यवाही का सहारा लिया। उपरोक्त से जो समग्र तस्वीर उभरती है, उसमें राज्य द्वारा अधिनियम का सहारा लेना समय से पहले और अनुचित लगता है।”

इस पृष्ठभूमि के खिलाफ न्यायालय ने अपील को अनुमति दी और अपीलकर्ताओं के खिलाफ मामला रद्द कर दिया।

Stay Updated With Latest News Join Our WhatsApp  – Group BulletinChannel Bulletin

 

साभार: लाइव लॉ

विवेक कुमार जैन
Follow me

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *