आगरा /प्रयागराज 24 जनवरी ।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि धार्मिक स्थल मुख्य रूप से ईश्वर की पूजा के लिए हैं, इसलिए लाउडस्पीकर के उपयोग को अधिकार के रूप में नहीं माना जा सकता है, खासकर तब जब ऐसा उपयोग अक्सर निवासियों के लिए परेशानी का कारण बनता है।
जस्टिस अश्विनी कुमार मिश्रा और जस्टिस डोनाडी रमेश की खंडपीठ ने मुख्तियार अहमद नामक व्यक्ति द्वारा दायर रिट याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें राज्य के अधिकारियों से मस्जिद पर लाउडस्पीकर लगाने की अनुमति देने का निर्देश देने की मांग की गई।
राज्य के वकील ने इस आधार पर रिट याचिका की स्वीकार्यता पर आपत्ति जताई कि याचिकाकर्ता न तो मुतवल्ली है और न ही मस्जिद उसकी है।
राज्य की आपत्ति में तथ्य पाते हुए न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता के पास रिट याचिका दायर करने का अधिकार नहीं है।
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न्यायालय ने इस बात पर भी जोर दिया कि चूंकि धार्मिक स्थल ईश्वर की पूजा-अर्चना के लिए होते हैं, इसलिए लाउडस्पीकर के इस्तेमाल को अधिकार के रूप में नहीं माना जा सकता। तदनुसार, रिट याचिका खारिज कर दी गई।
ध्यान रहे कि मई 2022 में हाईकोर्ट ने कहा कि अब कानून में यह तय हो गया कि मस्जिदों से लाउडस्पीकर का इस्तेमाल करना मौलिक अधिकार नहीं है।
बता दें कि मई, 2020 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अज़ान को इस्लामी धर्म का अभिन्न अंग मानते हुए राज्य की विभिन्न मस्जिदों के मुअज्जिनों को लॉकडाउन के दौरान भी अज़ान पढ़ने की अनुमति दी थी।
हालांकि, न्यायालय ने इसके लिए माइक्रोफोन के इस्तेमाल पर सख्त टिप्पणी की।
जस्टिस शशिकांत गुप्ता और जस्टिस अजीत कुमार की खंडपीठ ने कहा,
“अज़ान निश्चित रूप से इस्लाम का अनिवार्य और अभिन्न अंग है, लेकिन माइक्रोफोन और लाउडस्पीकर का उपयोग इसका अनिवार्य और अभिन्न अंग नहीं है। मस्जिदों की मीनारों से मुअज्जिन द्वारा बिना किसी एम्पलीफ़ाइंग डिवाइस का उपयोग किए मानवीय आवाज़ में अज़ान पढ़ी जा सकती है और महामारी कोविड -19 को रोकने के लिए राज्य द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के उल्लंघन के बहाने इस तरह के पाठ में बाधा नहीं डाली जा सकती।”
उल्लेखनीय है कि 2022 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंदिर और मस्जिद में लाउडस्पीकर के उपयोग के संबंध में दायर अवमानना याचिका खारिज कर दिया, जबकि यह देखते हुए कि यह राज्य चुनावों को ध्यान में रखते हुए राज्य के सांप्रदायिक सद्भाव को प्रभावित करने के उद्देश्य से प्रायोजित मुकदमा है।
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साभार: लाइव लॉ
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