सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस निर्देश पर रोक लगाई, जिसमें कहा गया कि पुलिस को सिविल/वाणिज्यिक विवादों पर एफआईआर दर्ज करने से पहले कानूनी राय लेनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने 14 अगस्त को इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश के तीन पैराग्राफ पर रोक लगा दी, जिसमें न्यायालय ने उत्तर प्रदेश पुलिस को निर्देश दिया था कि वह ऐसे मामलों में एफआईआर दर्ज करने से पहले सरकारी वकील से कानूनी राय ले, जो प्रथम दृष्टया सिविल लेनदेन प्रतीत होते हैं।
जस्टिस सी.टी. रविकुमार और जस्टिस संजय करोल की सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने हाईकोर्ट के उस निर्देश पर भी रोक लगा दी, जिसमें कहा गया कि मजिस्ट्रेट को सीआरपीसी की धारा 156(3) के अनुसार एफआईआर दर्ज करने का निर्देश तभी देना चाहिए, जब वे इस बात से संतुष्ट हों कि पक्षों के बीच कोई पूर्व सिविल विवाद लंबित नहीं है।
जस्टिस अरविंद सिंह सांगवान और जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की हाईकोर्ट की खंडपीठ ने 18 अप्रैल को एफआईआर दर्ज करने के संबंध में कुछ निर्देश पारित किए। अदालत ने निर्देश दिया कि जिन मामलों में आईपीसी की धारा 406, 408, 420, 467, 471 के तहत एफआईआर दर्ज करने की मांग की जाती है। यह प्रथम दृष्टया प्रतीत होता है कि मामला वाणिज्यिक या नागरिक विवाद से संबंधित है तो “ऐसे सभी मामलों में संबंधित जिलों में संबंधित जिला सरकारी वकील/उप जिला सरकारी वकील से राय ली जाएगी। रिपोर्ट प्राप्त करने के बाद ही एफआईआर दर्ज की जाएगी।”
इसके अलावा, हाईकोर्ट ने कहा कि अदालत द्वारा जारी निर्देश उन मामलों के लिए लागू होंगे, जहां 1 मई, 2024 के बाद एफआईआर दर्ज की जाती है। इसने कहा कि यदि पुलिस अधिकारी ऐसी एफआईआर में कानूनी राय लेने में विफल रहे हैं तो वे अवमानना कार्यवाही के लिए उत्तरदायी हो सकते हैं।
जस्टिस सी.टी. रविकुमार और जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली उत्तर प्रदेश सरकार की विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई करते हुए निर्देश दिया:
“आपराधिक विविध रिट याचिका नंबर 5948/2024 में पारित दिनांक 18.4.2024 के विवादित आदेश के पैराग्राफ 15 से 17 के संचालन और कार्यान्वयन पर अगली सूचीबद्धता तिथि तक रोक लगाई जाती है।“
आक्षेपित आदेश के पैराग्राफ 15 से 17 में निम्न प्रकार कहा गया:
“15. सुप्रीम कोर्ट के हाल ही में दिए गए उपरोक्त निर्णयों के आलोक में यह न्यायालय पुलिस महानिदेशक, उत्तर प्रदेश को निम्नलिखित निर्देश जारी करना उचित समझता है:-
(i) जहां धारा 406, 408, 420/467, 471 भारतीय दंड संहिता आदि के अंतर्गत एफ.आई.आर. पंजीकृत किया जाना अपेक्षित है, जिसमें प्रथम दृष्टया यह प्रतीत होता है कि कोई वाणिज्यिक विवाद या सिविल विवाद है या विभिन्न प्रकार के समझौतों या साझेदारी विलेखों आदि से उत्पन्न विवाद है तो एफआईआर रजिस्टर्ड करने से पूर्व ऐसे सभी मामलों में संबंधित जिलों में संबंधित जिला सरकारी वकील/उप जिला सरकारी वकील से राय ली जाएगी और रिपोर्ट प्राप्त करने के बाद ही एफआईआर रजिस्टर्ड की जाएगी। ऐसी राय एफआईआर के अंतिम भाग में पुनः प्रस्तुत की जाएगी।
साभार लाइव लॉ हिंदी
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