सुप्रीम कोर्ट ने लंबित मामलों पर निर्णय के लिए 11 महीने की समय सीमा तय करने की जनहित याचिका खारिज की

उच्चतम न्यायालय मुख्य सुर्खियां
याचिका खारिज होने से पहले मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने टिप्पणी की, “बहुत वांछनीय; लेकिन अप्राप्य।”

आगरा /नई दिल्ली 19 अक्टूबर ।

सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर विचार करने से इंकार कर दिया, जिसमें संपूर्ण भारतीय न्यायपालिका में लंबित मामलों को ग्यारह महीने के भीतर निपटाने की मांग की गई थी।

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भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला तथा न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि भारतीय न्यायालयों पर पहले से ही असहनीय कार्यभार है।

न्यायालय ने कहा कि हालांकि यह वांछनीय है कि मामलों का निपटारा शीघ्रता से तथा समय-सीमा के भीतर किया जाए, लेकिन भारत में लंबित मामलों की उच्च संख्या को देखते हुए ऐसे लक्ष्यों को लागू करना कठिन है।

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सीजेआई चंद्रचूड़ ने टिप्पणी की,

“बहुत वांछनीय; लेकिन अप्राप्य। क्या आप जानते हैं कि अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट कितने मामलों पर विचार करता है ? हमने एक दिन में 17 बेंचों में जितने मामलों का निपटारा किया, वह अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के एक साल में तय किए गए मामलों से कहीं ज़्यादा है। हम इस बात पर प्रतिबंध नहीं लगा सकते कि कौन इस कोर्ट में आ सकता है और कौन नहीं ?आप देखिए।”

देश भर में लंबित मामलों की उच्च संख्या के कारण हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी की कि वह उच्च न्यायालयों को समयबद्ध तरीके से मामलों की सुनवाई करने के लिए बाध्य नहीं कर सकता।

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और प्रसन्ना बी वराले की पीठ ने कहा कि

उच्च न्यायालय इस तरह के निर्देश जारी करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय के अधीन नहीं हैं।

फरवरी 2023 में भी इसी तरह की टिप्पणियां की गई थीं, जब यह उल्लेख किया गया था कि उच्च न्यायालय भी संवैधानिक न्यायालय हैं और उन्हें सर्वोच्च न्यायालय के अधीन नहीं माना जा सकता।

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एक साल पहले, इसने कोविड महामारी के दौरान बॉम्बे उच्च न्यायालय के काम के घंटों पर आपत्ति जताने वाली याचिका को खारिज करते हुए कहा था कि उच्च न्यायालय सर्वोच्च न्यायालय के प्रशासनिक अधीक्षण के अधीन काम नहीं करते हैं।

[मदन गोपाल अग्रवाल बनाम विधि एवं न्याय मंत्रालय]।

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साभार: बार & बेंच

विवेक कुमार जैन
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