आगरा /नई दिल्ली 05 मार्च ।
सुप्रीम कोर्ट की जज जस्टिस बी.वी. नागरत्ना ने हाल ही में जनहित याचिकाओं (पीएलए ) के दुरुपयोग के बारे में टिप्पणी की और कहा कि इस मुद्दे के बारे में सोचने और लिखने का समय आ गया है।
जस्टिस नागरत्ना ने कहा,
“मुझे लगता है कि अब समय आ गया है कि वे जनहित याचिकाओं के दुरुपयोग के बारे में सोचें और लिखें, जो अन्याय को कम करने के लिए शक्तिशाली कानूनी हथियार है, जिसे कुछ लोगों के कार्यों के कारण संदेह की दृष्टि से देखा जाता है और सकारात्मक दृष्टिकोण से नहीं देखा जाता है।”
जस्टिस नागरत्ना 4 मार्च 2025 को भारतीय विधि संस्थान, नई दिल्ली में ‘कानून, न्याय और समाज: उपेंद्र बख्शी के चयनित कार्य’ पुस्तक के विमोचन के अवसर पर बोल रही थीं।
अपने संबोधन में उन्होंने याद किया कि कैसे प्रोफेसर बख्शी ने राज्य को जवाबदेह बनाने के लिए एक तंत्र के रूप में कार्य करने में जनहित याचिकाओं के महत्व को प्रदर्शित किया।न्यायपालिका को मौलिक अधिकारों के संरक्षक और सामाजिक परिवर्तन के लिए एक शक्ति के रूप में कार्य करने में सक्षम बनाया है।
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि चूंकि जनहित याचिकाओं ने नागरिकों, नागरिक समाज संगठनों और यहां तक कि सबसे हाशिए पर पड़े समूहों को भी व्यवस्थागत अन्याय के खिलाफ़ निवारण की मांग करने का अधिकार दिया है, इसलिए प्रोफेसर बख्शी ने जनहित याचिकाओं को “सामाजिक कार्रवाई मुकदमेबाजी” कहना सही समझा।
साथ ही जज ने निहित स्वार्थों और परोक्ष उद्देश्यों को पूरा करने के लिए जनहित याचिकाओं के दुरुपयोग की हालिया प्रवृत्ति के बारे में अपनी चिंता व्यक्त की।
प्रोफेसर बख्शी – न्यायशास्त्र के प्रतिष्ठित स्कॉलर
जस्टिस नागरत्ना ने प्रोफेसर बख्शी को “न्यायशास्त्र के प्रतिष्ठित स्कॉलर” के रूप में सम्मानित किया, जिनके तीखे कानूनी विश्लेषण ने कानून के विकास को जन्म दिया।
उनकी आलोचनाओं में बहुत बौद्धिक शक्ति है, जो जजों को अधिक आत्म-चिंतनशील होने और यह सुनिश्चित करने के लिए प्रेरित करती है कि कानूनी विद्वता लोकतांत्रिक विमर्श का महत्वपूर्ण हिस्सा बनी रहे।
उन्होंने कहा कि प्रोफेसर बख्शी भारत के स्वतंत्रता के बाद के कानूनी और संवैधानिक इतिहास के जीवंत भंडार थे।
उन्होंने कहा,
“प्रोफ़ेसर बख्शी की विद्वता इस बात की शक्तिशाली याद दिलाती है कि संविधानवाद लोगों के जीवित अनुभवों, न्याय के लिए संघर्ष और अधिक न्यायसंगत और लोकतांत्रिक समाज के लिए निरंतर विकसित होने वाली खोज के बारे में भी है। प्रोफेसर बख्शी के लेखन हमें भारतीय संविधान को एक गतिशील दस्तावेज़ के रूप में देखने का आग्रह करते हैं, जो न्याय, शासन और सामाजिक परिवर्तन की गहरी आकांक्षाओं को मूर्त रूप देता है।”
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि उनका काम बौद्धिक कठोरता और सामाजिक न्याय के प्रति समर्पित प्रतिबद्धता के मिश्रण का उदाहरण है, जो दर्शाता है कि कानूनी विद्वता केवल अमूर्तता के अभ्यास के बजाय बदलाव का साधन हो सकती है। उनकी कानूनी सक्रियता के उदाहरणों के रूप में उन्होंने कुख्यात मथुरा बलात्कार मामले की उनकी आलोचना का हवाला दिया, जिसके कारण कानून में सुधार हुए और भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों को मुआवजा दिलाने में उनके योगदान का हवाला दिया।
जस्टिस नागरत्ना ने पुस्तक के संपादक प्रोफेसर अमिता ढांडा और प्रोफेसर अरुण थिरुवेंगदम के प्रयासों की भी सराहना की।
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साभार: लाइव लॉ