आगरा / नई दिल्ली 20 सितंबर।
भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास एवं पुर्नस्थापना से जुड़े मामलों में ऑन लाइन सुनवाई की सुविधा हो, ताकि प्रभावित पक्षों को न्यायालय तक पहुँचने में होने वाली कठिनाइयों कम हों, इस मांग को लेकर आगरा के वरिष्ठ अधिवक्ता के0सी0 जैन द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर की गयी रिट याचिका (सिविल) संख्या 510 वर्ष 2024 की सुनवाई के बाद 17 सितंबर मंगलवार को सर्वोच्च अदालत ने केन्द्र सरकार व सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी किये और मामले की अग्रिम सुनवाई हेतु 21 अक्टूबर नियत की है।
मुख्य न्यायाधीश डी.वाई.चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी.पारदीवाला एवं न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की बेंच ने सुनवाई की।
याचिका में यह बात रखी गयी कि, भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुर्नस्थापना से संबंधित विवादों के निपटारे में भू स्वामियों को बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है क्योंकि ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों से उनके लिए बार-बार यात्रा करना न केवल कठिन है बल्कि आर्थिक और शारीरिक रूप से भी बोझिल है।
अधिकांश प्रभावित भू-स्वामी समाज के हाशिये पर रहने वाले लोग होते हैं, जिनके पास न्यायालयों तक पहुँचने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं होते। इन मामलों में ऑनलाइन सुनवाई से न्यायालय तक पहुँच में आने वाली कठिनाइयों को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
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याचिका में यह भी उल्लेख किया कि राजस्थान में राज्य सरकार द्वारा 17 अगस्त 2016 को जारी एक अधिसूचना के अनुसार, ’राजस्थान के लिए भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुर्नस्थापना प्राधिकरण केवल जयपुर में स्थापित किया गया है, जिसका क्षेत्राधिकार पूरे राजस्थान में है।’ इस व्यवस्था के तहत, राजस्थान के सभी भूमि मालिकों को अपने मामलों के निपटारे के लिए जयपुर आना पड़ता है, जिससे उन्हें अत्यधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
इसी प्रकार उत्तर प्रदेश में 75 जिलों के लिए केवल 13 भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुर्नस्थापना प्राधिकरण स्थापित किए गए हैं। उत्तर प्रदेश सरकार की 3 दिसंबर 2015 की अधिसूचना के अनुसार, प्रत्येक प्राधिकरण के अधिकार क्षेत्र में कई जिले आते हैं, जिसके कारण प्रभावित भूस्वामियों को लंबी दूरी तय करके सुनवाई के लिए संबंधित प्राधिकरण के कार्यालयों में जाना पड़ता है। उदाहरण के तौर पर, आगरा के प्राधिकरण का क्षेत्राधिकार आगरा, फिरोजाबाद, मैनपुरी, मथुरा, अलीगढ़, हाथरस, कासगंज और एटा जिलों तक फैला हुआ है।
याचिका में यह मांग की गई है कि,
ऑनलाइन सुनवाई का विकल्प प्रदान किया जाए ताकि प्रभावित पक्षों को बार-बार न्यायालय आने की आवश्यकता न हो और उनकी समस्याओं का जल्द से जल्द समाधान हो सके। याचिका में यह तर्क दिया कि उच्च न्यायालयों और केन्द्र सरकार के अन्तर्गत आने वाले ट्रिब्यूनलों में ऑनलाइन सुनवाई की सफलता के बाद, इसे भूमि अधिग्रहण से जुड़े मामलों में भी लागू किया जाना चाहिए।
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इस मामले में अधिवक्ता जैन द्वारा स्वयं रिट याचिका को ई-फाइलिंग के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया गया और उनके द्वारा स्वयं ऑनलाइन के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपनी बात को सशक्त रूप से रखा गया।
अधिवक्ता जैन की इस याचिका सहित दो जनहित याचिकाओं पर 17 सितम्बर को सुनवाई हुयी थी और दोनो को ही विचार करने के लिए स्वीकार किया गया। अधिवक्ता जैन द्वारा अनेक जनहित के मामलों को सुप्रीम कोर्ट में ले जाया गया है और उनका प्रयास सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप से व्यवस्था में सुधार का है।
अधिवक्ता जैन ने कहा
“लम्बी दूरी तय कर प्राधिकरण कार्यालयों तक पहुँचना हाशिये पर रहने वाले भू-स्वामियों के लिए बेहद कठिन और महंगा साबित हो रहा है, जिससे उनके न्याय प्राप्ति के अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। भूमि अधिग्रहण मामलों में ऑननलाइन सुनवाई का विकल्प न्याय तक पहुंचने में आने वाली भौगोलिक और वित्तीय बाधाओं को कम करने का एक प्रभावी साधन हो सकता है।”
उन्होंने यह भी कहा कि
“भूमि अधिग्रहण से जुड़े मामलों में ऑन लाइन सुनवाई की व्यवस्था से न केवल न्याय की पहुँच सुनिश्चित होगी, बल्कि इससे न्यायिक प्रक्रिया की गति भी बढ़ेगी।”

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