पिछले वर्ष जून में मध्य प्रदेश सरकार ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की सिफारिश पर छह महिला न्यायाधीशों की सेवाएं कर दी थी समाप्त
आगरा 04 दिसंबर ।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इस बात के लिए आलोचना की कि उसने राज्य में महिला सिविल जजों की सेवाएं समाप्त कर दीं और उनमें से कुछ को बहाल करने से इंकार कर दिया।
न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि जब न्यायाधीश मानसिक और शारीरिक रूप से पीड़ित हों, तो मामले के निपटान की दर कोई पैमाना नहीं हो सकती।
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने टिप्पणी की,
“यह कहना बहुत आसान है कि ‘बर्खास्त-बर्खास्त’ और घर चले जाएं। हम भी इस मामले की विस्तार से सुनवाई कर रहे हैं; क्या वकील कह सकते हैं कि हम धीमे हैं ? खासकर महिलाओं के लिए, अगर वे शारीरिक और मानसिक रूप से पीड़ित हैं, तो यह मत कहिए कि वे धीमे हैं और उन्हें घर भेज दीजिए। पुरुष न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों के लिए भी यही मानदंड होने चाहिए, हम तब देखेंगे, और हम जानते हैं कि क्या होता है ? आप जिला न्यायपालिका के लिए (मामले के निपटान की) लक्ष्य इकाइयाँ कैसे बना सकते हैं ?”
मामले की अगली सुनवाई अब 12 दिसंबर को होगी।
जनवरी में सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार द्वारा जून 2023 में छह जजों की बर्खास्तगी का स्वत: संज्ञान लिया था।
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कानून विभाग ने एक प्रशासनिक समिति और हाई कोर्ट के जजों की एक पूर्ण-न्यायालय बैठक के बाद बर्खास्तगी के आदेश पारित किए थे, जिसमें प्रोबेशन अवधि के दौरान उनके प्रदर्शन को असंतोषजनक पाया गया था।
फरवरी की सुनवाई में, शीर्ष अदालत ने मौखिक रूप से हाईकोर्ट से पूछा था कि क्या वह अपने फैसले पर पुनर्विचार करने को तैयार है ?
जुलाई में सुप्रीम कोर्ट ने फिर से मध्य प्रदेश हाईकोर्ट से एक महीने के भीतर प्रभावित जजों के अभ्यावेदन पर नए सिरे से विचार करने को कहा।
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वरिष्ठ अधिवक्ता गौरव अग्रवाल ने मामले में एमिकस क्यूरी की भूमिका निभाई। वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह और आर बसंत जजों की ओर से पेश हुए।
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ओर से अधिवक्ता अर्जुन गर्ग पेश हुए।
[In Re: Termination of Civil Judge, Class-II (JR. Division) Madhya Pradesh State Judicial Service]
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साभार: बार & बेंच
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