आगरा:
कथित तौर पर अदालत में फर्जी प्रार्थना पत्र दाखिल करने के मामले में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम ) ने डॉ. दीपाली अग्रवाल के खिलाफ नोटिस जारी किया है। उन पर भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस ) की धारा 379 के तहत मामला दर्ज किया गया है।
क्या है पूरा मामला ?
मामले की शुरुआत दीपेश बोहरा ने की, जिन्होंने अपने वकील अशोक कुमार तिलक के माध्यम से सीजेएम अदालत में एक प्रार्थना पत्र दायर किया।
दीपेश के अनुसार, सूरत, गुजरात के रहने वाले अतुल छापड़िया ने 2022 में उनके खिलाफ धोखाधड़ी और अमानत में खयानत का मुकदमा दर्ज कराया था, जिसके चलते उन्हें जेल जाना पड़ा। यह मामला अभी भी अदालत में लंबित है।
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दीपेश ने आरोप लगाया है कि अतुल छापड़िया ने पुलिस से मिलकर गलत तथ्यों के आधार पर 65 लाख रुपये का माल (गहने और नकदी) अपना बताकर अदालत से छुड़वा लिया।
तीन बार खारिज हुए प्रार्थना पत्र:
दीपेश के मुताबिक, इस मामले से कोई सीधा संबंध न होने के बावजूद, डॉ. दीपाली अग्रवाल ने 13 फरवरी 2024 को एक भ्रामक प्रार्थना पत्र अदालत में प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने 40 लाख रुपये का माल अपना बताया और मुकदमे की गलत अपराध संख्या दी। यह प्रार्थना पत्र 4 जून 2024 को खारिज हो गया।
इसके बाद, 25 जून 2024 को उन्होंने फिर से बिना अपराध संख्या के एक और प्रार्थना पत्र दाखिल किया, जिसे 7 अगस्त 2024 को अदालत ने दोबारा खारिज कर दिया।
फिर भी, 17 अगस्त 2024 को उन्होंने तीसरा प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया, जिसे अदालत ने 22 अगस्त 2024 को बिना माल जारी किए निस्तारित कर दिया।
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तीन प्रार्थना पत्र खारिज होने के बावजूद, दीपाली अग्रवाल ने दीपेश को झूठे मामले में फंसाने के लिए भारतीय दंड संहिता के तहत धोखाधड़ी और अन्य आरोपों में एक और याचिका दायर की, जबकि उस समय तक देश में भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस ) लागू हो चुकी थी। यह याचिका भी 13 मई 2025 को खारिज हो गई।
इसके बाद, दीपेश बोहरा ने डॉ. दीपाली अग्रवाल के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मांग की। सीजेएम ने उनके प्रार्थना पत्र को स्वीकार करते हुए डॉ. दीपाली अग्रवाल को नोटिस जारी कर इस मामले में अपना पक्ष रखने का निर्देश दिया है।
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