आगरा/रांची 23 सितंबर।
एक विशेष सुनवाई में झारखंड हाईकोर्ट ने सरकार को किसी भी परीक्षा के आयोजन के आधार पर राज्य में इंटरनेट सेवाओं को निलंबित करने से अस्थायी रूप से रोक दिया। अदालत ने कहा कि अदालत की अनुमति के बिना कोई भी इंटरनेट सेवा बाधित नहीं की जाएगी।
कोर्ट ने आदेश दिया,
“यह स्पष्ट किया जाता है कि इस रिट याचिका के लंबित रहने तक इस न्यायालय की अनुमति के बिना किसी भी परीक्षा के आयोजन के आधार पर झारखंड राज्य में किसी भी रूप में कोई भी इंटरनेट सुविधा निलंबित नहीं की जाएगी।”
जस्टिस आनंद सेन और जस्टिस अनुभा रावत चौधरी की खंडपीठ 21 से 22 सितंबर के बीच मोबाइल इंटरनेट को आंशिक रूप से बंद करने को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी। बाद में ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी सहित संपूर्ण इंटरनेट सुविधा को बंद कर दिया गया।

अदालत ने जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई की, जिसमें याचिकाकर्ताओं ने राज्य सरकार द्वारा जारी अधिसूचना पर चिंता जताई। इसमें इंटरनेट सेवाओं को आंशिक रूप से बंद करने के बजाय राज्य ने संपूर्ण इंटरनेट सुविधा को निलंबित कर दिया था।
न्यायालय का उपरोक्त आदेश सरकार द्वारा 20.09.2024 को जारी अधिसूचना के उल्लंघन के मद्देनजर पारित किया गया, जिसमें केवल मोबाइल डेटा, मोबाइल इंटरनेट और मोबाइल वाई-फाई को 21 सितंबर, 2024 और 22 सितंबर को सुबह 08.00 बजे से दोपहर 01.30 बजे तक निलंबित करने का निर्देश दिया गया था।
हालांकि राज्य के अधिकारियों ने पहले की अधिसूचना के अधिक्रमण/संशोधन में अब संपूर्ण इंटरनेट सुविधा को निलंबित कर दिया, जिसमें पूरे झारखंड राज्य के लिए फिक्स्ड टेलीकॉम लाइनों, एफटीटीएच और लीज्ड लाइनों पर आधारित ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी भी शामिल है।
राज्य के वकील के आश्वासन पर न्यायालय ने 21 सितंबर को याचिकाकर्ता को अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया और कहा कि पक्षों के बीच सुविधा के संतुलन पर विचार किया गया।
न्यायालय ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता के पक्ष में अंतरिम राहत इस आधार पर नहीं दी गई कि इंटरनेट सुविधा पूरी तरह से बंद नहीं की गई बल्कि यह केवल बहुत सीमित अवधि के लिए आंशिक रूप से बंद की गई, वह भी केवल मोबाइल इंटरनेट के लिए।
न्यायालय के 21 सितंबर के आदेश के बाद ब्रॉडबैंड सहित इंटरनेट सेवाओं को पूरी तरह से बंद कर दिया गया। न्यायालय ने कहा कि राज्य द्वारा इस तरह की कवायद न्यायालय के आदेश का न्यायिक अतिक्रमण है।
न्यायालय ने कहा,
“अब इस न्यायालय द्वारा पारित दिनांक 21.09.2024 के आदेश के बाद राज्य ने संपूर्ण इंटरनेट सुविधाओं को भी निलंबित कर दिया। राज्य की यह बाद की कार्रवाई इस न्यायालय द्वारा 21.09.2024 को पारित न्यायिक आदेश का उल्लंघन करने के बराबर है। खासकर तब जब रिट याचिका अभी भी लंबित है। यह इस न्यायालय के साथ किया गया धोखा है और कपटपूर्ण कार्रवाई है। इस न्यायालय द्वारा पारित अंतरिम आदेश से पता चलता है कि पक्षों के बीच सुविधा के संतुलन को ध्यान में रखा गया यानी आम जनता और उचित जांच करने के लिए राज्य की चिंता के बीच सुविधा का संतुलन, लेकिन राज्य की ताजा कार्रवाई से संतुलन ही बिगड़ गया।”
राज्य के एडिशनल एडवोकेट जनरल ने न्यायालय को बताया कि रात में कुछ खुफिया जानकारी मिली थी। इसलिए सरकार ने पूरी सुविधा बंद करने का फैसला किया। पीठ ने कहा कि उसे यह सुझाव देने के लिए कोई सामग्री नहीं मिली कि राज्य में पूरी इंटरनेट सुविधा को बाधित करने के लिए कौन सी खुफिया जानकारी थी।

अदालत ने कहा,
“सार्वजनिक हित, बड़े पैमाने पर स्टूडेंट्स की पर्याप्त सुरक्षा, निष्पक्ष परीक्षा सुनिश्चित करना जैसे शब्दों और वाक्यांशों को बिना किसी तथ्यात्मक समर्थन के उक्त निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए कहना पूरे इंटरनेट सेवाओं को बंद करने के लिए पर्याप्त नहीं है। वह भी पूरे राज्य में क्योंकि अब यह अच्छी तरह से स्थापित हो चुका है कि इंटरनेट सुविधा को बंद करना भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत निहित मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।”
केस टाइटल- राजेंद्र कृष्ण बनाम झारखंड राज्य
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