पिता का प्यार मां के त्याग ,समर्पण प्यार से बेहतर नहीं : पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट

उच्च न्यायालय मुख्य सुर्खियां
न्यायालय ने दिए ढाई साल के बच्चे की कस्टडी मां को सौंपने का आदेश
महिला पति और ससुराल वालों से परेशान होकर अपने बच्चे के साथ आ गई थी मायके
पति द्वारा बच्चे को अवैध तरीके से अपने साथ ले जाने के कारण मामला पहुंचा था हाईकोर्ट

आगरा/चंडीगढ़ 2 सितंबर ।

पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने ढाई साल के बच्चे की कस्टडी को लेकर दाखिल महिला की याचिका पर टिप्पणी करते हुए कहा कि पिता का प्यार मां के प्यार से बेहतर नहीं हो सकता है। इस टिप्पणी के साथ ही हाईकोर्ट ने बच्चे की कस्टडी उसकी मां को सौंपने का निर्देश दिया है।

मामले के अनुसार अंबाला निवासी महिला ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल करते हुए आरोप लगाया गया था कि उसके ढाई वर्षीय बेटे को उसके पति ने अवैध रूप से हिरासत में रखा है। याची ने बताया था कि उसे उसका पति और ससुराल वाले परेशान करते थे और इस वजह मई में बेटे के साथ ससुराल से चली गई और मायके में रहने लगी।

 

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26 जून को उसका बेटा लापता हो गया। सीसीटीवी फुटेज की जांच करने पर पता चला कि याची का पति बेटे को अवैध तरीके से ले गया है। पति के खिलाफ बेटे का अपहरण करने के आरोप में एफआईआर भी कराई था।

हाईकोर्ट ने कहा कि

बच्चे की कस्टडी पिता को सौंपने के लिए किसी अदालत द्वारा कोई आदेश पारित नहीं किया गया था। इसलिए आदेश के अभाव में कम उम्र में बच्चे की कस्टडी पिता के पास कानूनी नहीं मानी जा सकती है।

हाईकोर्ट ने कहा कि

मां का प्यार त्याग और समर्पण की परिभाषा है। दो-तीन वर्ष की आयु में बच्चे और मां के बीच का बंधन पिता के साथ बंधन से भी अधिक होता है।

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हालांकि पिता की भावनाएं अपने बच्चे के प्रति हमेशा मजबूत होती हैं, लेकिन वे इस छोटी सी उम्र में मां की भावनाओं से अधिक नहीं हो सकती हैं। जिस बच्चे को मां का प्यार नहीं मिलता, वह अपने जीवन में बेपरवाह हो सकता है। इतनी छोटी सी उम्र में, मां के प्यार का कोई विकल्प नहीं है।

इन टिप्पणियों के साथ कोर्ट ने पुलिस को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि नाबालिग बच्चे की कस्टडी पिता से मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अंबाला या जिला एवं सत्र न्यायाधीश अंबाला द्वारा नियुक्त किसी अधिकारी की उपस्थिति में याचिकाकर्ता-मां को तुरंत सौंप दी जाए।

 

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विवेक कुमार जैन
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