आगरा /जयपुर 2 सितंबर।
राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा कि एक गैर सरकारी संगठन जिसे राज्य के पदाधिकारियों द्वारा अनुमोदित किया गया था और जिसे सरकारी योजना के तहत सब्सिडी दी गई थी, उसे “राज्य” नहीं माना जा सकता है।
जस्टिस पंकज भंडारी और जस्टिस प्रवीर भटनागर की खंडपीठ एनजीओ की एक कर्मचारी द्वारा अपनी बर्खास्तगी के आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
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याचिकाकर्ता का मामला था, कि उसे एक एनजीओ के अध्यक्ष द्वारा नियुक्त किया गया था, जो महिला सुरक्षा एवं सलाह केंद्र नियम एवं अनुदान योजना 2017 के तहत सब्सिडी प्राप्त कर रहा था, ताकि महिला की शिकायतों को देखा जा सके। याचिकाकर्ता ने कहा कि योजना के अनुसार, एनजीओ में कम से कम दो महिलाओं की आवश्यकता थी और इन दो पदों में से एक उसे दिया गया था।
इसलिए, जैसा कि उनकी ओर से तर्क दिया गया है, चूंकि एनजीओ को जिला कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट और राज्य के अन्य पदाधिकारियों की समिति द्वारा अनुमोदित किया गया था, इसलिए एनजीओ के किसी भी कर्मचारी को अधिकारियों की मंजूरी के बिना हटाया नहीं जा सकता था।
न्यायालय ने याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुतियों को खारिज कर दिया और कहा कि,
“प्रतिवादी नंबर 4 एक एनजीओ है और उसे केवल इसलिए राज्य के रूप में नहीं माना जा सकता क्योंकि इसे राज्य के पदाधिकारियों द्वारा अनुमोदित किया गया है। महिला सुरक्षा एवं सलाह केन्द्र अध्ययन एवं अनुदान योजना के अनुसार, राज्य केवल महिलाओं की शिकायतों की जांच करने के लिए गैर-सरकारी संगठनों को सब्सिडी दे रहा है। जैसा कि यह हो सकता है, विद्वान एकल न्यायाधीश ने सही माना है कि प्रतिवादी नंबर 4 – संस्थान एक राज्य नहीं है …”
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तदनुसार, याचिका खारिज कर दी गई।
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