इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि घटना की तिथि और समय का जिक्र न होने पर प्राथमिकी में हुई त्रुटि को जांच के दौरान ठीक नहीं किया जा सकता

उच्च न्यायालय मुख्य सुर्खियां

आगरा/प्रयागराज 19 नवंबर ।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि रिकॉर्ड में स्पष्ट रूप से दिखाई देने वाली त्रुटि, जैसे कि प्राथमिकी में दर्ज तिथि और समय का उल्लेख न होना, विवेचना के दौरान ठीक नहीं की जा सकती।

जस्टिस सौरभ श्रीवास्तव ने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट मिर्जापुर द्वारा दाखिल चार्जशीट का संज्ञान लेने के कार्य को, जबकि एफआईआर में तिथि, समय और गवाह जैसे महत्वपूर्ण विवरण नहीं थे , इसे “बेहद चौंकाने वाला ” बताया है।

न्यायालय ने कहा कि सीजेएम ने एफआईआर में महत्वपूर्ण विवरण न होने के तथ्यों की अनदेखी करते हुए फिर से संज्ञान लिया, जबकि पुनर्विचार न्यायालय ने मामले को नए सिरे से तय करने के लिए मजिस्ट्रेट को भेज दिया था।

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मामले के अनुसार याचिकाकर्ता जगत सिंह द्वारा मजिस्ट्रेट के पिछले आदेश 1 अक्टूबर, 2018 को चुनौती देते हुए आपराधिक पुनर्विचार दायर करने के बाद कोर्ट ने मामले को संबंधित मजिस्ट्रेट को वापस भेज दिया गया था। जिन्होंने उस आरोप पत्र का संज्ञान लिया, जिसमें उक्त आवश्यक विवरण नहीं थे। अदालत ने देखा कि मामले में एफआईआर में महत्वपूर्ण विवरण, विशेष रूप से तारीख और समय का अभाव है।

एकल न्यायाधीश ने कहा कि मजिस्ट्रेट को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 190 के तहत संज्ञान लेने से पहले इन कारकों पर विचार करना चाहिए।

प्रस्तुत मामले में याची जगत सिंह के खिलाफ रास्ते के अधिकार को लेकर हुए विवाद के सिलसिले में आईपीसी की धारा 143, 341, 504 और 506 के तहत मिर्जापुर में प्राथमिकी दर्ज की गई। इस मामले में चार्जशीट दाखिल की गई, जिस पर संबंधित मजिस्ट्रेट ने 1 अक्टूबर, 2018 को संज्ञान लिया।

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याचिकाकर्ता ने इस आदेश को पुनर्विचार याचिका दायर कर चुनौती दी, जिसे एडिशनल जिला एवं सेशन जज, मिर्जापुर ने 20 जुलाई, 2022 को स्वीकार करते हुए मजिस्ट्रेट का आदेश खारिज कर दिया और मामले को नए सिरे से निर्णय के लिए भेज दिया।

हालांकि, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने 1 दिसंबर, 2023 को फिर से संज्ञान लिया जिसे फिर से पुनर्विचार अदालत के समक्ष चुनौती दी गई। इस बार उनकी चुनौती खारिज कर दी गई और मजिस्ट्रेट के आदेश की पुष्टि की गई ।

पुनर्विचार न्यायालय के आदेश और सीजेएम के संज्ञान लेने के आदेश दोनों को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का रुख किया, जिसमें कहा गया कि प्राथमिकी में आवश्यक विवरण जैसे कि विशिष्ट तिथि, समय और गवाहों का अभाव है, जो धारा 154 दंड प्रक्रिया संहिता के तहत दायर किसी भी जानकारी के लिए महत्वपूर्ण हैं। इसके बावजूद, यह तर्क दिया गया कि सीजेएम ने यंत्रवत संज्ञान लिया और पुनर्विचार न्यायालय ने भी इस आदेश की गलत पुष्टि की है।

दोनों आदेशों को अत्यधिक अवैध और गलत पाते हुए न्यायालय ने पूरे मामले की कार्यवाही को अलग रखते हुए याचिका को मंजूर कर ली।

हालांकि, कोर्ट ने प्रतिवादी नंबर 2 को किसी भी घटना के बारे में जानकारी, यदि वह हुई हो तो उसकी तिथि और समय के साथ अपनी शिकायत के निवारण के लिए उपयुक्त प्राधिकारी को देने करने की स्वतंत्रता दी है।

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मनीष वर्मा
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