न्यायिक विवेक का इस्तेमाल किए बगैर आदेश पारित करने पर हाईकोर्ट ने लिया फैसला
आगरा/प्रयागराज २६ अप्रैल ।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने डा.अमित वर्मा अपर जिला जज कानपुर नगर को तीन महीने के लिए प्रशिक्षण पर भेजने का निर्देश दिया है।
कोर्ट ने कहा है कि जज वर्मा फैसला लिखाने की काबिलियत नहीं रखते। आदेश देते समय कारण और निष्कर्ष का उल्लेख नहीं करते। ऐसे ही उनके आदेश को रद्द कर हाईकोर्ट ने नये सिरे से आदेश पारित करने का निर्देश दिया था। इसके बावजूद वैसी ही गलती दुहराई गई। कोर्ट ने महानिबंधक से कहा है कि प्रशिक्षण के लिए भेजने के लिए मुख्य न्यायाधीश से आदेश प्राप्त करें और उन्हें न्यायिक प्रशिक्षण एवं शोध संस्थान लखनऊ प्रशिक्षण के लिए भेजें।
कोर्ट ने जिला जज कानपुर नगर को प्रश्नगत पुनरीक्षण अर्जी वर्मा के अलावा अन्य जज को सुनवाई हेतु स्थानांतरित करने का भी आदेश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति नीरज तिवारी ने श्रीमती मुन्नी देवी बनाम श्रीमती शशिकला पांडेय की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है।
मालूम हो कि विपक्षी शशिकला पांडेय ने 2013 में किराया वसूली व बेदखली का वाद दायर किया।जो 29 फरवरी 24 को याची के विरूद्ध डिक्री हो गया।जिसके खिलाफ याची ने पुनरीक्षण अर्जी दाखिल की । जिसे एडीजे ने 7 नवंबर 24 को खारिज कर दिया । जिसे हाईकोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती दी गई।
याचिका में कहा गया कि आदेश का कारण व निष्कर्ष नहीं दिया है। जज ने न्यायिक विवेक का इस्तेमाल नहीं किया है। 17 दिसंबर 24 को हाईकोर्ट ने एडीजे का आदेश रद्द कर नये सिरे से आदेश के लिए पत्रावली वापस भेज दी। इसी बीच याची ने पुनरीक्षण अर्जी में नये आधार जोड़ने की संशोधन अर्जी दी। जिसे बिना कारण बताए 1 मार्च 25 को एडीजे ने निरस्त कर दिया।जिसे फिर हाईकोर्ट में चुनौती दी गई।
याची का कहना था कि एडीजे डा. अमित वर्मा ने पहले आदेश में जो गलती की थी वहीं गलती इस आदेश में भी की है। इसलिए आदेश रद्द किया जाय।जिस पर हाई कोर्ट ने कहा कहा कि जज वर्मा फैसला लिखाने की काबिलियत नहीं रखते, इसलिए इन्हें प्रशिक्षित किया जाय।
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