परिवार अदालत फिरोजाबाद का तलाक मंजूर करने का आदेश रद्द
अनावश्यक मुकद्दमे में घसीटने के लिए विपक्षी पर लगाया पचास हजार रुपए हर्जाना
आगरा /प्रयागराज 29 अक्टूबर ।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने माना है कि विवाह संबंध नहीं चल पाना विवाह भंग का आधार नहीं हो सकता और यह कहकर पति पत्नी के बीच वैवाहिक संबंध लंबे समय तक न चलने के कारण परिवार अदालत द्वारा तलाक मंजूर करने का आदेश रद्द कर दिया है और कोर्ट ने बेवजह मुकद्दमेबाजी में घसीटने के लिए विपक्षी पर 50 हजार रूपए हर्जाना लगाया है।
कोर्ट कहा है कि विपक्षी ने परिवार अदालत फिरोजाबाद के आदेश के अनुपालन में 2,50,000/- रूपये जमा किए हैं। हर्जाना राशि उसी से कटौती कर यदि गुजारा भत्ते का बकाया न हो तो शेष राशि विपक्षी को वापस की जाय।
कोर्ट ने कहा जब तक अत्यधिक क्रूरता न हो अदालतें जोड़ों के अंतरंग क्षणों की जांच नहीं कर सकतीं। उनके गोपनीय क्षणों पर कोई फैसला नहीं दे सकतीं।
न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति डोनाडी रमेश की खंडपीठ ने यह टिप्पणी तलाक की मंजूरी के खिलाफ दायर अपील की सुनवाई करते हुए की।
फिरोजाबाद की पारिवारिक अदालत ने पति-पत्नी के बीच तलाक को स्वीकार कर लिया था। इसके खिलाफ अपील कोर्ट ने अपील स्वीकार कर ली और प्रतिवादी (पति) पर 50 हजार रुपये हर्जाना लगाया।
जोड़े ने 1999 में शादी की थी और 9 महीने साथ रहे। इस दौरान कोई बच्चा पैदा नहीं हुआ। फिर अलग हो गये। पति ने तलाक के लिए अर्जी दायर कर दी। पारिवारिक अदालत ने 2015 में पति के पक्ष में फैसला सुनाया। इसे हाई कोर्ट में अपील में चुनौती दी गई। पत्नी का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने कहा कि विवाह विच्छेद के लिए पति की याचिका सुनवाई योग्य नहीं थी क्योंकि यह विवाह की तारीख से एक वर्ष के भीतर दायर की गई थी।
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हाई कोर्ट ने माना कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत शादी के एक साल के भीतर तलाक की याचिका की अनुमति नहीं है।
कोर्ट ने कहा वास्तव में प्रावधान को पूरी तरह से पढ़ने पर यह पता चलता है कि हिंदू विवाह को भंग करने की कार्रवाई का कारण विवाह के पहले वर्ष के भीतर किसी भी पक्ष के लिए उत्पन्न नहीं हो सकता है, सिवाय ‘अत्यधिक कठिनाई’ या ‘अत्यधिक भ्रष्टता’ से जुड़े मामलों को छोड़कर।
फिर भी, शादी के एक साल के भीतर याचिका दायर करने की अनुमति मांगने के लिए विशिष्ट आवेदन दायर करना होगा। तलाक के मामले में एक साल बाद फैसला देने से कानूनी बाधा अप्रासंगिक नहीं हो जाती।
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खंडपीठ ने पाया है कि फैमिली कोर्ट ने पत्नी की आपत्ति पर कोई निष्कर्ष नहीं निकाला है। क्रूरता को लेकर उच्च न्यायालय ने कहा कि पारिवारिक अदालत ने कानूनी कार्यवाही के दौरान पत्नी के आचरण का उल्लेख किया था और उस पर भरोसा किया था कि उसने पति के खिलाफ 3-4 मामले दायर कराए थे।
कोर्ट ने कहा, तलाक देने का कोई आधार नहीं है। पत्नी को अनावश्यक मुकदमे में घसीटा गया है। पति पर 50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया।
खंडपीठ ने कहा,
“हमें सूचित किया गया है कि प्रतिवादी ने रुपये जमा किए थे। आक्षेपित निर्णय और आदेश के अनुपालन में फैमिली कोर्ट के समक्ष समक्ष ढाई लाख रुपये जमा हैं, यह भुगतान वहां से किया जाए। यह सुनिश्चित करने के बाद कि अपीलकर्ता को दी गई रखरखाव राशि के प्रति प्रतिवादी के खिलाफ बकाया सभी वसूली पूरी हो गई है, शेष राशि अर्जित ब्याज के साथ उसे प्रतिवादी को वापस करने का निर्देश भी कोर्ट ने दिया है।
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