हिंदू विवाह अमान्य होने पर विवाह तिथि से गुजारा भत्ता का दायित्व नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

उच्च न्यायालय मुख्य सुर्खियां

आगरा/प्रयागराज १७ जुलाई ।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 11 के तहत यदि कोई विवाह अमान्य घोषित कर दिया जाता है, तो वह विवाह की तिथि से ही अमान्य माना जाएगा। ऐसी स्थिति में पति, पत्नी को भरण-पोषण देने के लिए बाध्य नहीं होगा, क्योंकि कानूनी रूप से विवाह हुआ ही नहीं माना जाएगा।

न्यायमूर्ति राजीव मिश्रा की एकल पीठ ने यह टिप्पणी राजदेव सचदेवा द्वारा दायर एक आपराधिक पुनरीक्षण याचिका की सुनवाई करते हुए की। यह मामला पति को निचली अदालत द्वारा दिए गए भरण-पोषण के आदेश के खिलाफ था।

क्या था पूरा मामला ?

पति-पत्नी का विवाह 2015 में हुआ था। बाद में विवाद बढ़ने पर पत्नी ने गाजियाबाद में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी ) की विभिन्न धाराओं, जैसे 498ए, 406, 313, 354(ए)(1), 509, 323, 34 के तहत प्राथमिकी (एफ आई आर ) दर्ज कराई। इसके बाद उसने आईपीसी की धारा 451, 323, 34 के तहत एक और एफआईआर दर्ज कराई।

पति राजदेव सचदेवा और उसके परिवार द्वारा दायर अग्रिम जमानत याचिका की सुनवाई के दौरान यह बात सामने आई कि पत्नी की पहली शादी अभी भी मौजूद थी।

निचली अदालत ने पाया कि पत्नी ने पहले अपनी पहली शादी से इंकार किया और बाद में इसे स्वीकार किया, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि उसने अदालत में पूरी जानकारी नहीं दी थी।

Also Read – आजम खान की 10 साल की सजा के खिलाफ अपील पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में 31 जुलाई को सुनवाई

इसके बाद, पत्नी ने घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 की धारा 12 और 23 के तहत एक और मामला दायर किया। इस दौरान पति ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 11 के तहत विवाह को अमान्य घोषित करने के लिए आवेदन किया, जिसके जवाब में पत्नी ने धारा 24 के तहत भरण-पोषण और मुकदमे के खर्च के लिए आवेदन किया।

धारा 11 के तहत पति का आवेदन स्वीकार कर लिया गया। पत्नी ने इस आदेश के खिलाफ अपील की, जिसे बाद में वापस लेने के कारण खारिज कर दिया गया। हालांकि, घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 23 के तहत कार्यवाही में, विवाह विच्छेद होने के बावजूद पत्नी को 10,000/- रुपये प्रति माह का भुगतान जारी रखने का आदेश दिया गया था।

भरण-पोषण के इस आदेश के खिलाफ पति की अपील निचली अदालत ने खारिज कर दी, जिसके बाद उसने हाईकोर्ट का रुख किया।

हाईकोर्ट का निष्कर्ष:

न्यायालय ने अपने फैसले में पाया कि पत्नी का दूसरा विवाह तब हुआ था जब उसका पहला विवाह अभी भी वैध था। न्यायालय ने जोर दिया कि कानून बहुविवाह की अनुमति नहीं देता। न्यायालय ने यह भी नोट किया कि यद्यपि पत्नी ने शुरू में विवाह को अमान्य घोषित करने वाले आदेश को चुनौती दी थी, लेकिन बाद में उसने अपनी अपील वापस ले ली, जिससे वह आदेश 20 नवंबर 2021 को अंतिम हो गया।

न्यायमूर्ति राजीव मिश्रा ने कहा कि,

“चूंकि घोषणात्मक डिक्री के माध्यम से पक्षकारों का विवाह शून्य और अमान्य घोषित किया गया है, इसलिए यह विवाह की तिथि से संबंधित होगा। इसका परिणाम यह होगा कि एक बार पक्षकारों का विवाह स्वयं शून्य घोषित हो जाने के बाद पक्षकारों के बीच के बाद के संबंध का कोई महत्व नहीं रह जाता।”

अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि रिकॉर्ड पर मौजूद तथ्यों के अनुसार, 21 नवंबर 2021 से पक्षकारों के बीच घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 की धारा 2(एफ) के अनुसार कोई संबंध नहीं है। तदनुसार, न्यायालय ने भरण-पोषण देने संबंधी विवादित आदेश को रद्द करने योग्य माना।

Stay Updated With Latest News Join Our WhatsApp  – Channel BulletinGroup Bulletin
मनीष वर्मा
Follow Me

1 thought on “हिंदू विवाह अमान्य होने पर विवाह तिथि से गुजारा भत्ता का दायित्व नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *