आगरा / प्रयागराज 26 अगस्त ।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने छह साल की बच्ची से दुष्कर्म के आरोपी को उम्रकैद की सजा रद्द कर दी है। कोर्ट ने कहा कि अभियोजन संदेह से परे अपराध साबित करने में विफल रहा।
कोर्ट ने कहा
मेडिकल जांच में दुराचार की पुष्टि नहीं हुई। गुप्तांग में किसी प्रकार की चोट या सूजन नहीं पाई गई। ट्रायल कोर्ट ने डॉक्टर के साक्ष्य की अनदेखी की। अभियुक्त संदेह का लाभ पाने का हकदार हैं।
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यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्र तथा न्यायमूर्ति डा गौतम चौधरी की खंडपीठ ने हीरा की सजा के खिलाफ दाखिल अपील को मंजूर करते हुए दिया है।
24 अक्टूबर, 2002 को अपर सत्र न्यायाधीश बुलंदशहर ने अभियुक्त अपीलार्थी को बच्ची के साथ दुष्कर्म का दोषी करार देते हुए उम्रकैद व एक हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई, जिसे अपील में चुनौती दी गई थी।
शिकायतकर्ता ने एफआईआर दर्ज की कि जब वह बाहर था, उसकी पत्नी भी जंगल गई थी। चार साल की लड़की घर में अकेली थी। खेलने बाहर निकली तो अभियुक्त उसे गेहूं के खेत में ले गया। उसके चिल्लाने पर लोग पहुंचे, वह खून से लथपथ बेहोश मिली।
कोर्ट ने याची को बरी करते हुए रिहाई का दिया आदेश पुलिस ने मेडिकल कराया और बयान दर्ज किया।
चार्जशीट पर संज्ञान लेकर सत्र अदालत में ट्रायल किया गया। गवाहों के बयान लिए गए, दोषी पाए जाने पर उम्र कैद की सजा सुनाई गई।
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हाई कोर्ट ने कहा
कि अभियोजन दुष्कर्म के सबूत देने में विफल रहा।
कोर्ट ने याची को बरी करते हुए रिहाई का आदेश दिया है।
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