आगरा/प्रयागराज 07 अप्रैल ।
इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन (एचसीबीए ) ने जस्टिस यशवंत वर्मा के शपथ ग्रहण के तरीके की निंदा की, जो दिल्ली में अपने आधिकारिक आवास पर बेहिसाब नकदी पाए जाने के आरोपों पर इन-हाउस जांच का सामना कर रहे हैं, शनिवार को हाईकोर्ट के जज के रूप में शपथ ग्रहण की।
पूरी प्रक्रिया को गुप्त और उनकी शपथ को भ्रामक और अस्वीकार्य करार देते हुए बार एसोसिएशन ने हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को लिखे एक पत्र में इस बात पर निराशा व्यक्त की कि जस्टिस वर्मा को पीठ पीछे शपथ दिलाई गई और कानूनी बिरादरी को अनजान रखा गया, जिससे उन्होंने दावा किया कि इस संस्था में उनका विश्वास खत्म हो सकता है।
पत्र में चीफ जस्टिस से मौलिक मूल्यों की रक्षा करने और संस्था की परंपराओं का पालन करने का भी आग्रह किया गया।
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पत्र में कहा गया है कि
“बस संक्षेप में कहें तो जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ प्रथम दृष्टया विश्वसनीय साक्ष्य मिलने के बाद इन-हाउस जांच बैठा दी गई। हमें बताया गया कि यह जांच युद्ध स्तर पर की जा रही है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि साक्ष्यों से छेड़छाड़ या उन्हें नष्ट न किया जाए। न्याय न केवल किया जाना चाहिए बल्कि ऐसा प्रतीत भी होना चाहिए कि न्याय किया जा रहा है। जज को शपथ दिलाना हमारी न्यायिक प्रणाली में सर्वोत्कृष्ट घटना है। संस्था में समान हितधारक होने के कारण वकीलों को इससे दूर नहीं रखा जा सकता। हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने प्रस्ताव पारित किया, जिसमें कहा गया कि यह शपथ भारत के संविधान के विरुद्ध है। इसलिए एसोसिएशन के सदस्य असंवैधानिक शपथ से जुड़ना नहीं चाहते। हमने जो प्रस्ताव पारित किया, हमने खुलकर बात की और इतना ही नहीं हमने माई लॉर्ड सहित सभी को प्रस्ताव की कॉपी भी भेजी। इस प्रकार, हम यह समझने में विफल रहे कि इस शपथ में गुप्त क्या है ? हमें बताया गया कि प्रणाली निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से हर कदम उठा रही है लेकिन इस शपथ को बार को अधिसूचित क्यों नहीं किया गया ? यह ऐसा प्रश्न है, जिसने फिर से लोगों के न्यायिक प्रणाली में विश्वास को खत्म कर दिया।”
बार के पत्र में लिखा है कि
“हम स्पष्ट रूप से उस तरीके की निंदा करते हैं, जिस तरह से जस्टिस यशवंत वर्मा को हमारी पीठ पीछे शपथ दिलाई गई।”
जजों के लिए आयोजित सामान्य सार्वजनिक शपथ ग्रहण समारोहों के विपरीत जहां इस कार्यक्रम में अक्सर विभिन्न गणमान्य व्यक्ति शामिल होते हैं और इसे एक औपचारिक अवसर बना दिया जाता है, जस्टिस वर्मा ने आज चैंबर के भीतर प्राइवेट सीटिंग में शपथ ली।
केंद्र सरकार ने 24 मार्च को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिशों के आधार पर 28 मार्च को दिल्ली से इलाहाबाद हाईकोर्ट में उनके प्रत्यावर्तन की अधिसूचना जारी की। जस्टिस वर्मा अपने आधिकारिक परिसर में अवैध नकदी मुद्राओं की खोज के आरोपों पर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया द्वारा गठित 3- जजों के पैनल द्वारा इन-हाउस जांच का सामना कर रहे हैं।
बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के विरोध के बावजूद ट्रांसफर आदेश आया था। जस्टिस वर्मा जो मूल रूप से इलाहाबाद हाईकोर्ट से संबंधित थे, को 2021 में दिल्ली हाईकोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया।
जस्टिस वर्मा मार्च में विवाद का केंद्र बन गए 21 मार्च को समाचार रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद कि उनके सरकारी बंगले के बाहरी हिस्से में एक गोदाम में आग लगने से नकदी की बोरियां मिलीं। 22 मार्च को सीजेआई जस्टिस संजीव खन्ना ने इन-हाउस प्रक्रिया के हिस्से के रूप में जस्टिस वर्मा के खिलाफ आरोपों की जांच करने के लिए 3 सदस्यीय समिति गठित की। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने आग बुझाने का वीडियो, दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की रिपोर्ट और जस्टिस वर्मा की प्रतिक्रिया को अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर सार्वजनिक कर दिया।
जस्टिस वर्मा ने नकदी रखने से इनकार किया है और दावा किया कि यह उनके खिलाफ एक साजिश है। 24 मार्च को दिल्ली हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसरण में जस्टिस वर्मा से न्यायिक कार्य वापस ले लिया। इलाहाबाद हाईकोर्ट में जनहित याचिका ( पी आई एल ) याचिका दायर की गई, जिसमें हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को जस्टिस यशवंत वर्मा को पद की शपथ दिलाने से रोकने का निर्देश देने की मांग की गई।
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साभार: लाइव लॉ
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