दोनों पक्षों को अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करने का दिया निर्देश
आगरा, ६ अगस्त ।
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग-प्रथम, आगरा ने 11 साल पुराने एक मामले में फैसला सुनाते हुए चिकित्सा लापरवाही के आरोपों को खारिज कर दिया है। आयोग ने यह निर्णय 4 जून 2025 को सुनाया।
एटा के सुजान सिंह ने अपने बेटे शैलेंद्र सिंह की मृत्यु के लिए एस.एन. मेडिकल कॉलेज, आगरा और अन्य अस्पतालों के डॉक्टरों पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए ₹18,00,000/- के मुआवजे की मांग की थी।
मामले का विवरण:
शिकायतकर्ता सुजान सिंह ने बताया कि 18 जुलाई 2010 की शाम करीब 7 बजे उनके बेटे शैलेंद्र सिंह को बदमाशों ने गोली मार दी थी। गंभीर हालत के कारण उसे अलीगंज के सरकारी अस्पताल से एस.एन. मेडिकल कॉलेज, आगरा रेफर कर दिया गया।
रात करीब 11 बजे उसे एस.एन. मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया, जहां डॉ. अरुण राठौर की देखरेख में उसका इलाज शुरू हुआ। शैलेंद्र के पेट में गोली लगी थी और बहुत खून बह रहा था।
खून रोकने के लिए 19 जुलाई 2010 को डॉ. राठौर ने पहला ऑपरेशन किया और परिजनों को बताया कि गोली निकाल दी गई है। हालांकि, खून बहना बंद नहीं हुआ और हालत में सुधार नहीं हुआ, जिसके बाद 3 अगस्त 2010 को दूसरा ऑपरेशन किया गया। परिजनों को फिर बताया गया कि गोली निकाल दी गई है, लेकिन गोली उन्हें दिखाई नहीं गई।
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अस्पतालों का स्थानांतरण और अंत:
चूंकि शैलेन्द्र की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ, इसलिए 6 अगस्त 2010 को उसे एस.एन. मेडिकल कॉलेज से सफदरजंग अस्पताल, नई दिल्ली रेफर कर दिया गया। 8 अगस्त 2010 को परिजनों ने उसे सेंट स्टीफंस अस्पताल, तीस हजारी, दिल्ली में भर्ती कराया।
वहां भी डॉक्टरों ने बताया कि पेट में कोई गोली नहीं है, लेकिन मरीज की हालत और बिगड़ती गई। आखिरकार, 13 अगस्त 2010 को उसे फिर से सफदरजंग अस्पताल में भर्ती कराया गया।
19 अगस्त 2010 को शैलेंद्र सिंह की इलाज के दौरान मृत्यु हो गई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सामने आया कि पेट में गोली मौजूद थी, जो उसकी मौत का कारण बनी।
आरोपों पर अस्पतालों का पक्ष:
एस.एन. मेडिकल कॉलेज के डॉ. अरुण राठौर और उनकी टीम ने अपने लिखित बयान में कहा कि गोली रीढ़ की हड्डी के पास एक सुरक्षित जगह पर थी। उन्होंने तर्क दिया कि गोली निकालने से मरीज की जान को खतरा हो सकता था और उसे लकवा होने की भी पूरी संभावना थी।
उन्होंने कहा कि मरीज के परिजनों को इस स्थिति के बारे में स्पष्ट रूप से बता दिया गया था। एस.एन. मेडिकल कॉलेज ने कहा कि उन्होंने 18 जुलाई 2010 से 6 अगस्त 2010 तक सभी चिकित्सीय मानकों के अनुसार इलाज किया था। वहीं, सेंट स्टीफंस अस्पताल ने भी कहा कि मरीज की हालत गंभीर थी और उन्होंने सभी चिकित्सीय मानकों का पालन किया।
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अदालत का फैसला:
उपभोक्ता आयोग ने पाया कि एस.एन. मेडिकल कॉलेज और सफदरजंग अस्पताल सरकारी अस्पताल हैं, जहां इलाज निःशुल्क होता है, इसलिए शिकायतकर्ता इन अस्पतालों और उनके डॉक्टरों का उपभोक्ता नहीं है।
हालांकि, सेंट स्टीफंस अस्पताल एक निजी अस्पताल है और इलाज के लिए ₹36,242 का भुगतान किया गया था, इसलिए शिकायतकर्ता इस अस्पताल का उपभोक्ता है।
चिकित्सा लापरवाही के आरोप पर, आयोग ने डॉ. अरुण राठौर द्वारा प्रस्तुत फॉरेंसिक रिसर्च रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें बताया गया था कि रीढ़ की हड्डी के पास पड़ी गोली को निकालने से मरीज की जान को खतरा हो सकता है।
आयोग ने सर्वोच्च न्यायालय के कई फैसलों का भी उल्लेख किया, जिसमें कहा गया है कि हर असफल इलाज या मरीज की मृत्यु को लापरवाही नहीं माना जा सकता।
डॉक्टर को दोषी ठहराने के लिए लापरवाही का सीधा संबंध साबित होना चाहिए। आयोग ने निष्कर्ष निकाला कि उपलब्ध सबूतों के आधार पर डॉक्टरों की ओर से कोई चिकित्सा लापरवाही या सेवा में कमी साबित नहीं हुई।
इन आधारों पर, आयोग ने पति द्वारा दायर किए गए मुकदमे को खारिज करने का आदेश दिया। दोनों पक्षों को अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करने का निर्देश दिया गया। प्रतिवादी गण की तरफ़ से पैरवी अधिवक्ता गौरव जैन और मनीष गोयल द्वारा की गई ।
Attachment/Order/Judgement – sujaan singh
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