इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने वकीलों और जिला न्यायाधीशों की छवि खराब करने वाले व्यक्ति पर लगाया एक लाख रुपये का जुर्माना

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न्यायालय ने पाया कि आरोप बिना किसी आधार के लगाए गए थे, जो बहुत दुर्भाग्यपूर्ण और अनावश्यक थे
याचिकाकर्ता की बढ़ती उम्र को देखते हुए न्यायालय ने अवमानना कार्यवाही शुरू करने से किया इंकार

आगरा /प्रयागराज 2 सितंबर।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में कानपुर नगर में वरिष्ठ अधिवक्ताओं और जिला न्यायाधीशों के खिलाफ गंभीर आरोप लगाने के लिए 77 वर्षीय एक व्यक्ति पर ₹1 लाख का जुर्माना लगाया है।

न्यायमूर्ति नीरज तिवारी ने कहा कि

आरोपों में कोई दम नहीं है और ऐसा लगता है कि इनका उद्देश्य न्यायिक संस्था को बदनाम करना है।

न्यायालय ने कहा,

“याचिकाकर्ता-प्रतिवादी द्वारा अपीलीय न्यायालय के समक्ष दायर लिखित प्रस्तुतियों में वकीलों, जिला न्यायाधीश तथा कानपुर नगर न्यायपीठ के कई अन्य न्यायाधीशों के विरुद्ध गंभीर आरोप लगाए गए हैं, जिन्हें किसी हलफनामे से भी समर्थन नहीं मिल रहा है, जो संस्था की प्रतिष्ठा को धूमिल करने के अलावा और कुछ नहीं है।”

न्यायालय ने याचिकाकर्ता की बढ़ती उम्र और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को देखते हुए उसके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू करने से मना कर दिया, लेकिन उसकी याचिका खारिज करते हुए उस पर 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया।जिसे उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति के खाते में जमा करना होगा।

 

न्यायालय ने कहा,

“यदि याचिकाकर्ता जुर्माना जमा करने में विफल रहता है, तो उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल उक्त राशि को भू-राजस्व के बकाया के रूप में वसूलने के लिए जिला मजिस्ट्रेट/जिला कलेक्टर, कानपुर नगर को सूचित करेंगे।”

77 वर्षीय याचिकाकर्ता रणधीर कुमार पांडे ने किराए की संपत्ति से बेदखली से संबंधित विवाद में 5 मई, 2024 के फैसले के खिलाफ समीक्षा याचिका दायर की थी।

हाईकोर्ट ने किराए की संपत्ति विवाद में पांडे की याचिका को शुरू में गुण-दोष के आधार पर खारिज करने का मन बनाया था। हालांकि, 5 मई की सुनवाई के दौरान पांडे के वकील ने दलील दी कि 77 वर्षीय पांडे मामले को गुण-दोष के आधार पर नहीं लड़ना चाहते हैं और उन्होंने प्रार्थना की थी कि उन्हें प्रतिवादी की दुकान खाली करने के लिए एक साल का समय दिया जाए, जिसे वे किराए पर ले रहे हैं।

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कोर्ट ने पांडे को संबंधित दुकान खाली करने का निर्देश देते हुए कुछ शर्तों पर अनुरोध स्वीकार कर लिया था।

हालांकि, बाद में याचिकाकर्ता ने अपनी समीक्षा याचिका में इस फैसले की सत्यता को चुनौती दी और आरोप लगाया कि उन्होंने अपने वकील वरिष्ठ अधिवक्ता डीपी सिंह को कभी भी गुण-दोष के आधार पर मामला न लड़ने का निर्देश नहीं दिया।

व्यक्तिगत रूप से पक्षकार के रूप में पेश हुए याचिकाकर्ता ने वरिष्ठ अधिवक्ता अतुल दयाल और कानपुर नगर के जिला न्यायाधीशों के खिलाफ भी अस्पष्ट आरोप लगाए। कोर्ट ने कहा कि इनमें से किसी भी आरोप का समर्थन किसी हलफनामे से नहीं किया गया।

वकीलों ने भी इन आरोपों का खंडन किया। वरिष्ठ अधिवक्ता सिंह ने कहा कि याचिकाकर्ता उनके चैंबर/निवास पर भी गया था और उनके साथ दुर्व्यवहार किया था।

वरिष्ठ अधिवक्ता दयाल ने पांडे के व्यवहार के बारे में भी गंभीर शिकायतें उठाईं।

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कोर्ट ने पाया कि पांडे के आरोप बिना किसी आधार के लगाए गए थे, जो बहुत दुर्भाग्यपूर्ण और अनावश्यक थे।

इसलिए, इसने पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया और याचिकाकर्ता को अपने अस्पष्ट प्रस्तुतियाँ दाखिल करने और कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने के लिए ₹1 लाख जमा करने का आदेश दिया।

केस:रणधीर कुमार पांडे बनाम पुरुषोत्तम दास माहेश्वरी

Order / Judgement – Randhir_Kumar_Pandey_v__Purushottam_Das_Maheshwari

 

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विवेक कुमार जैन
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