आगरा:
केरल उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए यह स्पष्ट किया है कि कोई भी पति या पत्नी दूसरे की ओर से विशेष रूप से अधिकृत पावर ऑफ अटॉर्नी (मुख्तारनामा) के बिना रिट याचिका दायर नहीं कर सकते।
न्यायालय ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत मुकदमा करने का अधिकार उस व्यक्ति के पास होता है, जिसके कानूनी अधिकार का उल्लंघन हुआ हो।
यह फैसला न्यायमूर्ति सी.एस. डायस ने मलप्पुरम की एक महिला द्वारा अपने एनआरआई पति की ओर से दायर रिट याचिका को खारिज करते हुए सुनाया।
महिला ने याचिका में अपने पति की संपत्ति के वर्गीकरण में सुधार की मांग की थी, जिसे गलती से ‘आर्द्रभूमि’ (wetland) के रूप में वर्गीकृत कर दिया गया था।
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महिला ने दलील दी कि चूँकि उसके पति विदेश में काम करते हैं, इसलिए वह उनके स्थान पर याचिका दायर कर रही है।
न्यायालय ने महिला के अधिकार क्षेत्र (लोकस स्टैंडी) पर सवाल उठाया, क्योंकि वह न तो संपत्ति की मालिक थी और न ही उसके पास अपने पति द्वारा निष्पादित कोई मुख्तारनामा था।
न्यायालय ने कहा कि केरल उच्च न्यायालय के नियमों के अनुसार, रिट याचिका केवल याचिकाकर्ता या उसके विधिवत प्राधिकृत अधिवक्ता द्वारा ही दायर की जा सकती है।
ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो किसी गैर-पक्षकार पति या पत्नी को बिना मुख्तारनामा के याचिका दायर करने की अनुमति दे।
महिला के वकील ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 120 का हवाला देते हुए तर्क दिया कि महिला को अपने पति की ओर से याचिका दायर करने का अधिकार है।
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हालांकि, न्यायालय ने इस तर्क को खारिज कर दिया और स्पष्ट किया कि यह प्रावधान केवल एक पति या पत्नी को दूसरे से संबंधित कार्यवाही में एक सक्षम गवाह होने का अधिकार देता है, न कि उनके स्थान पर मुकदमा दायर करने का।
न्यायालय ने सिविल प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) का भी हवाला दिया और बताया कि केवल मान्यता प्राप्त एजेंटों और वकीलों को ही वादियों की ओर से कार्य करने की अनुमति है, और ऐसे एजेंटों में वे लोग शामिल हैं जिनके पास वैध मुख्तारनामा होता है।
न्यायालय ने महिला की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यदि उसका पति उसके पक्ष में मुख्तारनामा निष्पादित करता है तो वह इस मामले में दोबारा आवेदन कर सकती है।
Attachment/Order/Judgement – Kerala_High_Court_Judgment
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