दिल्ली उच्च न्यायालय ने च्यवनप्राश विज्ञापन मामले में पतंजलि को दी चेतावनी

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आगरा/नई दिल्ली:

दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक एकल न्यायाधीश के आदेश के ख़िलाफ़ अपील दायर करने पर पतंजलि आयुर्वेद को कड़ी फटकार लगाई है।यह आदेश पतंजलि को अपने च्यवनप्राश विज्ञापनों के कुछ हिस्सों को हटाने के लिए निर्देशित करता है, जिनमें कथित तौर पर डाबर जैसी प्रतिद्वंद्वी कंपनियों के उत्पादों को अपमानित किया गया था।

न्यायमूर्ति हरि शंकर और न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ला की पीठ ने पतंजलि से कहा कि या तो वे अपनी अपील वापस ले लें या जुर्माने का भुगतान करने के लिए तैयार रहें।

पीठ ने स्पष्ट किया कि एकल न्यायाधीश के आदेश में पूरे विज्ञापन को हटाने के लिए नहीं कहा गया था, बल्कि केवल आपत्तिजनक हिस्सों में सुधार करने का निर्देश दिया गया था।

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क्या है मामला ?

यह मामला तब शुरू हुआ जब डाबर लिमिटेड ने एक मुक़दमा दायर किया, जिसमें आरोप लगाया गया कि पतंजलि अपने ‘स्पेशल च्यवनप्राश’ के विज्ञापनों के माध्यम से उसके प्रमुख च्यवनप्राश ब्रांड का अपमान कर रहा है।डाबर का दावा है कि उसके च्यवनप्राश की बाज़ार में 60% से अधिक हिस्सेदारी है।

डाबर ने तर्क दिया कि पतंजलि का विज्ञापन ग़लत जानकारी पेश कर रहा है, डाबर की आयुर्वेदिक परंपरा के प्रति निष्ठा पर सवाल उठा रहा है, और उसके उत्पाद को ‘घटिया’ बता रहा है।

एकल न्यायाधीश का निर्णय:

जुलाई 2025 में, न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा ने एक अंतरिम आदेश पारित किया, जिसमें पतंजलि आयुर्वेद और पतंजलि फूड्स को अपने विज्ञापनों में संशोधन करने का निर्देश दिया गया।न्यायाधीश ने माना कि पतंजलि के कुछ दावे ‘स्वीकार्य व्यावसायिक अतिशयोक्ति’ से परे थे और ‘अपमान’ की श्रेणी में आते थे।

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न्यायाधीश ने पतंजलि को अपने विज्ञापनों से “40 जड़ी-बूटियों से बने साधारण च्यवनप्राश से क्यों संतुष्ट हों ?” जैसे वाक्यांशों को हटाने का आदेश दिया।इसके अलावा, टेलीविज़न विज्ञापनों से उस हिस्से को भी हटाने के लिए कहा गया, जिसमें यह दावा किया गया था कि केवल आयुर्वेदिक ज्ञान रखने वाले ही “असली च्यवनप्राश” बना सकते हैं। इन बदलावों के बाद ही विज्ञापनों को जारी रखने की अनुमति दी गई।

पतंजलि की अपील:

एकल न्यायाधीश के इस आदेश को चुनौती देते हुए पतंजलि ने दिल्ली उच्च न्यायालय के वाणिज्यिक अपीलीय प्रभाग में अपील दायर की।पतंजलि ने तर्क दिया कि एकल न्यायाधीश का आदेश ‘व्यावसायिक अभिव्यक्ति’ के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।

उन्होंने दावा किया कि विज्ञापनों में सीधे तौर पर डाबर का ज़िक्र नहीं किया गया था, ‘साधारण’ शब्द का इस्तेमाल एक तटस्थ अर्थ में किया गया था, और उनके ‘स्पेशल’ फ़ॉर्मूलेशन को आयुर्वेदिक सार संग्रह पर आधारित होने के कारण नियामक मंज़ूरी मिली हुई है।पतंजलि ने यह भी कहा कि विज्ञापन में अतिशयोक्ति एक स्वीकार्य विशेषता है।

पीठ का अगला क़दम:

पतंजलि के वरिष्ठ अधिवक्ता जयंत मेहता ने आगे की कार्रवाई के लिए समय माँगा, जिसके बाद न्यायालय ने मामले की अगली सुनवाई 23 सितंबर को तय की है।

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विवेक कुमार जैन
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