आगरा जुलाई, 2025।
आगरा के अछनेरा थाना अंतर्गत हुए एक 25 साल पुराने अपहरण और हत्या के मामले में दो आरोपियों को पुलिस की घोर लापरवाही के चलते बरी कर दिया गया है। विशेष न्यायाधीश (दस्यु प्रभावी क्षेत्र) ने पप्पू उर्फ भगवान (निवासी ग्राम पसोली, थाना छाता, मथुरा) और ऊदल पुत्र कुंवर पाल सिंह (निवासी ग्राम डोकला वास, थाना सुरीर, मथुरा) को साक्ष्य के अभाव में बरी करने का आदेश दिया।
पुलिस पर आरोप है कि उन्होंने न तो मृतक के शव की शिनाख्त उसके परिजनों से कराई, न ही मृतक के कपड़े अदालत में पेश किए, और न ही घटना के महत्वपूर्ण गवाह को अदालत में प्रस्तुत किया।
यह मामला थाना अछनेरा में 2 जून 1999 को दर्ज किया गया था। वादी अनेक सिंह ने आरोप लगाया था कि उनके दो भाई महेश और सुरेश दूध बेचने के लिए नगला गढ़िया गए थे। सुरेश तो वापस आ गए, लेकिन महेश घर नहीं लौटे। तलाश के दौरान, महेश की साइकिल और दूध की टंकी सांधन ग्राम के माइनर में मिली, जिसके बाद अनेक सिंह ने अपने भाई सुरेश के अपहरण का मुकदमा दर्ज कराया।
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विवेचना के दौरान, पुलिस ने कई लोगों से पूछताछ की, जिसमें ग्राम गढ़िया का लड्डू पुत्र भूमि सिंह भी शामिल था। लड्डू ने पुलिस को बताया था कि गुड्डन उर्फ गुड्डू और पप्पू ने उससे बाबू लाल मास्टर और मेबु सिंह के पुत्र सुरेश के अपहरण में सहयोग करने को कहा था, जिसे उसने मना कर दिया था। यह भी सामने आया कि पप्पू और गुड्डू ने वादी से उनके भाई की रिहाई के लिए दो लाख रुपये की मांग की थी, जिसमें से वादी ने 50 हजार रुपये दिए भी थे।
बाद में, वादी के भाई का शव मथुरा के थाना छाता क्षेत्र में मिलने की सूचना मिली। वादी और अन्य जब मौके पर पहुंचे तो उन्हें पता चला कि पुलिस ने अज्ञात में ही मृतक का दाह संस्कार कर दिया था। वादी ने अपने भाई की पहचान उसके पहने हुए कपड़ों से की थी। पुलिस ने इस मामले में पप्पू उर्फ भगवान और ऊदल के अलावा श्याम और विनोद के खिलाफ भी आरोप पत्र अदालत में पेश किया था, जिनकी अनुपस्थिति के कारण उनकी पत्रावली अलग कर दी गई थी।
अदालत में वादी सहित तीन गवाह पेश हुए, लेकिन पुलिस ने महत्वपूर्ण गवाह लड्डू को अदालत में पेश नहीं किया, जिससे आरोपियों ने अपहरण में मदद मांगी थी। इसके अतिरिक्त, मृतक के कपड़े भी अदालत में पेश नहीं किए गए और न ही मृतक के शव की उसके परिजनों से शिनाख्त कराई गई थी।
आरोपियों के अधिवक्ता राजकुमार, ब्रज किशोर वोहरा और आरती शर्मा के तर्कों और साक्ष्य के अभाव को देखते हुए अदालत ने आरोपियों को बरी करने का आदेश दिया। यह फैसला पुलिस की विवेचना में हुई गंभीर चूक को उजागर करता है, जिसके कारण अपराधी 25 साल बाद भी सजा से बच निकले।
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