सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि मुफ्त उपहारों के कारण, लोग काम करने को तैयार नहीं

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पीठ ने कहा क्या हम परजीवियों का एक वर्ग नहीं बना रहे हैं ?
न्यायालय ने कहा कि बेहतर होगा यदि बेघरों को मुख्यधारा के समाज में एकीकृत करने की मांग की जाए ताकि वे राष्ट्र में योगदान दे सकें

आगरा /नई दिल्ली 12 फरवरी ।

दिल्ली में शहरी बेघरों के लिए आश्रय की मांग करने वाली एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान, जस्टिस बीआर गवई ने चुनाव से पहले मुफ्त उपहारों के वितरण की निंदा की और टिप्पणी की कि यह बेहतर होगा यदि बेघरों को मुख्यधारा के समाज में एकीकृत करने की मांग की जाए ताकि वे राष्ट्र में योगदान दे सकें।

पीठ ने कहा,

‘मुझे यह कहते हुए खेद है, लेकिन हलफनामे (प्रतिवादी) में कहा गया है कि उन्हें (बेघर व्यक्तियों) इतनी सुविधाएं दी जाएंगी… राष्ट्र के विकास में योगदान देकर उन्हें समाज की मुख्यधारा का हिस्सा बनने की अनुमति देने के बजाय, क्या हम परजीवियों का एक वर्ग नहीं बना रहे हैं ?

दुर्भाग्य से, इन मुफ्त उपहारों के कारण, जो चुनाव घोषित होने पर ही निहाई पर हैं, लाडली बहन और कुछ अन्य योजनाएं … लोग काम करने को तैयार नहीं हैं। उन्हें बिना कोई काम किए मुफ्त राशन, राशि मिल रही है! मैं आपको व्यक्तिगत अनुभवों से बता रहा हूं … इन मुफ्त उपहारों के कारण, कुछ राज्य मुफ्त राशन देते हैं, इसलिए लोग काम नहीं करना चाहते हैं।

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश एडवोकेट प्रशांत भूषण ने जब इन टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि देश में ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं है जो काम नहीं करना चाहता है तो पीठ ने इसे खारिज करते हुए कहा, आपको केवल एक पक्ष की जानकारी होनी चाहिए।

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व्यक्तिगत अनुभव याद करते हुए पीठ ने कहा,

‘मैं एक कृषक परिवार से आता हूं।महाराष्ट्र में मुफ्त उपहारों के कारण, जिसकी उन्होंने चुनावों से पहले ही घोषणा की थी, कृषकों को मजदूर नहीं मिल रहे हैं।

एक बिंदु पर, भूषण ने मौजूदा आश्रयों की जीर्ण-शीर्ण स्थितियों का मुद्दा उठाया, यह समझाने की कोशिश में कि कुछ बेघर व्यक्ति आश्रयों में जाने के इच्छुक क्यों नहीं हैं। इस पर भी जस्टिस गवई ने कहा, ‘एक आश्रय गृह जो निर्जन है और सड़क पर सो रहा है, के बीच में और बेहतर क्या है ?’

जस्टिस गवई ने कहा कि

मुफ्त में चीजें उपलब्ध कराने से लोगों को कोई काम नहीं करने की आदत पड़ जाती है, साथ ही यह भी स्वीकार किया गया कि आश्रय का अधिकार अब एक मौलिक अधिकार है और जनहित याचिका में उठाए गए मुद्दे से निपटना होगा। लेकिन क्या स्थिति से निपटने का एक बेहतर तरीका बेघर समाज का हिस्सा बनाना होगा और “उन्हें राष्ट्र के विकास में योगदान करने की अनुमति देना”

यह ध्यान दिया जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट चुनाव से पहले राजनीतिक दलों द्वारा किए गए ‘मुफ्त’ के वादों पर अंकुश लगाने की मांग करने वाली याचिकाओं के एक और सेट पर विचार कर रहा है। वर्ष 2022 में दो जजों की पीठ ने कुछ मुद्दे तय किए और मामले को एक बड़ी पीठ के पास भेज दिया था ।

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साभार: लाइव लॉ

विवेक कुमार जैन
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