4 साल पहले कैंसर पीड़ित पुत्र का वीर्य करवा दिया था फ्रीज,
उपचार के दौरान हो गई थी 20 वर्षीय पुत्र की मौत
आगरा / नई दिल्ली 05 अक्टूबर।
अपने 20 वर्षीय अविवाहित बेटे की असामयिक मौत से दुखी मां बाप के चेहरे पर दिल्ली हाई कोर्ट के एक फैसले से आशा की एक किरण जाग गई है। अब मृत बेटे से संरक्षित किए गए वीर्य से सेरोगेसी के माध्यम से अपने वंश को आगे बढ़ा सकेंगें।
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हाईकोर्ट ने भी मां-बाप के दुख को दृष्टिगत रखते हुए कानूनी प्रावधानों को शिथिल कर दिया और बेटा का वीर्य मां बाप को सौंपने का आदेश दिया ताकि दंपति सरोगेसी या किसी अन्य विधि से अपनी वंश परंपरा बढ़ा सके।
दुनिया में हर मां-बाप की चाहत होती है कि उसकी वंश परंपरा आगे बढ़े। लेकिन, कई बार ईश्वर को कुछ और ही मंजूर होता है। बावजूद इसके इंसान अपनी कोशिश नहीं छोड़ता है और अंततः ईश्वर को भी उसकी कोशिश के आगे झुकना पड़ता है। कुछ ऐसी ही है ये कहानी…
दरअसल, एक दंपति का एक 20 साल का बेटा है। उसको कैंसर हो जाता है. डॉक्टर बताते हैं कि इलाज के दौरान लड़का हमेशा के लिए स्पर्म/ वीर्य प्रोड्यूस करने की शक्ति खो सकता है। इसलिए उसका वीर्य फ्रीज/संरक्षित करवा दिया जाता है।
लेकिन, ईश्वर उस दंपति के साथ बेहद क्रूर नजर आता है और उपचार के दौरान लड़के की मौत हो जाती है। वह अपने मां-बाप की इकलौती संतान था। इसके बाद दंपति पूरी तरह टूट जाते है। लेकिन उन्होंने हिम्मत नही हारी और अपने बेटे के फ्रीज करवाए गए वीर्य से अपनी वंश परंपरा बढ़ाने की कोशिश करते है लेकिन इसमें फिर कानून अड़चन शुरू हो जाती है और दिल्ली हाईकोर्ट को दखल देना पड़ता है।
दरअसल, यह कहानी नहीं बल्कि दिल्ली की एक दंपति के साथ घटी घटना है। हाईकोर्ट ने नामी निजी अस्पताल सर गंगाराम को निर्देश दिया कि वह एक मृत व्यक्ति के संरक्षित रखे गए शुक्राणु उसके माता-पिता को सौंप दे। मौत के बाद प्रजनन का मतलब एक या दोनों जैविक माता-पिता की मृत्यु के बाद सहायक प्रजनन तकनीक का उपयोग करके गर्भधारण की प्रक्रिया से है।
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हाईकोर्ट के फैसले दूर होगी उदासी
हाईकोर्ट की जज प्रतिभा एम. सिंह ने इस तरह के पहले निर्णय में कहा,
“वर्तमान भारतीय कानून के तहत, यदि शुक्राणु या अंडाणु के मालिक की सहमति का सबूत पेश किया जाता है, तो उसकी मौत के बाद प्रजनन पर कोई प्रतिबंध नहीं है.”
कोर्ट ने कहा कि केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय इस निर्णय पर विचार करेगा कि क्या मौत के बाद प्रजनन या इससे संबंधित मुद्दों के समाधान के लिए किसी कानून, अधिनियम या दिशा-निर्देश की आवश्यकता है ?
कोर्ट ने यह फैसला सुनाते हुए गंगा राम अस्पताल को निर्देश दिया कि वह दंपती को उनके मृत अविवाहित पुत्र के संरक्षित रखे गए शुक्राणु उन्हें तत्काल प्रदान करें, ताकि ‘सरोगेसी’ के माध्यम से उनका वंश आगे बढ़ सके ?
याचिकाकर्ता के कैंसर से पीड़ित बेटे की कीमोथेरेपी शुरू होने से पहले 2020 में उसके वीर्य के नमूने को ‘फ्रीज’ करवा दिया गया था, क्योंकि डॉक्टरों ने बताया था कि वह कैंसर के उपचार से नपुंसक हो सकता है।
इसलिए बेटे ने जून 2020 में अस्पताल की आईवीएफ लैब में अपने शुक्राणु को संरक्षित करने का फैसला किया था। जब मृतक के माता-पिता ने वीर्य का नमूना लेने के लिए अस्पताल से संपर्क किया, तो अस्पताल ने कहा कि अदालत के उचित आदेश के बिना संरक्षित वीर्य के सैंपल को जारी नहीं किया जा सकता।
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हाई कोर्ट ने 84 पृष्ठ के फैसले में कहा कि याचिका में संतान को जन्म देने से संबंधित कानूनी व नैतिक मुद्दों समेत कई महत्वपूर्ण मसले उठाए गए हैं।
कोर्ट ने कहा,
“माता-पिता को अपने बेटे की अनुपस्थिति में पोते-पोती को जन्म देने का मौका मिल सकता है। ऐसे हालात में अदालत के सामने कानूनी मुद्दों के अलावा नैतिक, आचारिक और आध्यात्मिक मुद्दे भी होते हैं”।
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