इलाहाबाद हाईकोर्ट की टिप्पणी : सीएमओ व डॉक्टर नहीं जानते अनचाहे गर्भ को हटाने की कानूनी प्रक्रिया

उच्च न्यायालय मुख्य सुर्खियां
प्रमुख सचिव चिकित्सा स्वास्थ्य को एसओपी जारी करने का निर्देश
29 सप्ताह के अनचाहे गर्भ को गिराने की हाईकोर्ट ने दी अनुमति ,कहा परिवार का नाम गुप्त रखा जाय

आगरा / प्रयागराज 28 सितंबर

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि प्रदेश में मुख्य चिकित्सा अधिकारी और डॉक्टरों को महिला की जांच करते समय अनचाहे गर्भ को हटाने (टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी )के मामलों में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया की जानकारी नहीं होती।

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इसलिए हाईकोर्ट ने प्रमुख सचिव चिकित्सा स्वास्थ्य और परिवार कल्याण को मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) जारी करने का निर्देश दिया है, जिसका पालन सभी मुख्य चिकित्सा अधिकारियों और उनके द्वारा गठित बोर्डों द्वारा किया जाएगा।

नाबालिग पीड़िता याची और उसके परिवार ने गर्भपात कराने की अनुमति के लिए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की।

कोर्ट ने मेडिकल बोर्ड के गठन का निर्देश दिया, जिसने अपनी रिपोर्ट पेश की।

मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट में कहा गया कि गर्भ लगभग 29 सप्ताह का है। इस अवस्था में गर्भ को पूर्ण अवधि तक ले जाने से पीड़िता के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचेगा। पीड़िता और उसके परिवार के सदस्य चिकित्सीय गर्भपात चाहते थे। इसलिए न्यायालय ने याचिका स्वीकार कर ली और गर्भपात की अनुमति दे दी है।

न्यायमूर्ति शेखर बी. सराफ तथा न्यायमूर्ति मंजीव शुक्ला की खंडपीठ ने कहा, कई मामले ऐसे आये जिनसे पता चला कि जिलों के मुख्य चिकित्सा अधिकारियों सहित मेडिकल कॉलेजों और पीड़िता की जांच के लिए मेडिकल बोर्ड के सदस्य के रूप में नियुक्त डॉक्टरों को पीड़िता की जांच करते समय और उसके बाद मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी के दौरान अपनाई जाने वाली प्रक्रिया के बारे में उचित जानकारी नहीं है।

कहा कि अपनाई जाने वाली प्रक्रिया चिकित्सीय गर्भपात अधिनियम, 1971 में निर्धारित की गई। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल्स, 2003 और मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रेगुलेशन, 2003 के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न निर्णयों में भी इसका उल्लेख किया गया।

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“पूरी प्रक्रिया में शामिल संवेदनशीलता को ध्यान में रखना होगा। कहा कि यह गंभीर चिंता का विषय है कि कुछ जिलों के डॉक्टर उपरोक्त विधानों और भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्थापित प्रक्रिया से बिल्कुल भी परिचित नहीं हैं।

हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि पीड़िता और उसके परिवार के सदस्यों का नाम केस रिकॉर्ड से हटा दिया जाए।

यह भी निर्देश दिया गया कि गर्भावस्था की चिकित्सा समाप्ति से संबंधित ऐसे सभी मामलों में पीड़िता या उसके परिवार के सदस्यों का नाम उल्लेखित नहीं किया जाना चाहिए।

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मनीष वर्मा
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