सर्वोच्च अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 14 की व्याख्या करते हुए कहा कि यह कानून का एक स्थापित प्रस्ताव है कि अनुच्छेद 14 नकारात्मक समानता की परिकल्पना नहीं करता

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संविधान का अनुच्छेद 14 नकारात्मक भेदभाव को प्रतिबंधित करता है के आधार पर दूसरों को दी गई अवैध पदोन्नति को आधार नहीं मानते हुए की याचिका खारिज

आगरा /नई दिल्ली 22 जनवरी

सुप्रीम कोर्ट ने ज्योस्तनामयी मिश्रा बनाम ओडिशा राज्य और अन्य मामले में सुनवाई के बाद अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि अतीत में दी गई अनियमित पदोन्नति अवैधता को जारी रखने का आधार नहीं बन सकती।

इस टिप्पणी के साथ सर्वोच्च न्यायालय ने रिटायर चपरासी की अपील खारिज की, जिसने इस तथ्य के आधार पर ट्रेसर के पद पर पदोन्नति की मांग की थी कि अन्य कर्मचारियों को इस पद पर पदोन्नत किया गया था, भले ही भर्ती नियमों में निर्दिष्ट किया गया कि ट्रेसर की भूमिका निचले स्तर के पदों से पदोन्नति के बजाय सीधी भर्ती के माध्यम से भरी जानी चाहिए।

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जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस राजेश बिंदल की खंडपीठ उड़ीसा हाईकोर्ट के निर्णय से उत्पन्न मामले की सुनवाई कर रही थी, जहां अपीलकर्ता रिटायर चपरासी ने अपने समकक्षों की पिछली अवैध पदोन्नति के आधार पर ट्रेसर के पद पर पदोन्नति की मांग की थी।

उड़ीसा अधीनस्थ वास्तुकला सेवा नियम, 1979 (1979 नियम), ट्रेसर के पद के लिए 100% सीधी भर्ती को अनिवार्य बनाता है। इन नियमों के बावजूद, चपरासी जैसे गैर-फीडर पदों से पदोन्नति के मामले सामने आए, जिससे भेदभाव की धारणा बनी।

अपीलकर्ता का दावा खारिज करते हुए जस्टिस राजेश बिंदल द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया कि संविधान का अनुच्छेद 14 नकारात्मक भेदभाव को प्रतिबंधित करता है।

नतीजतन, अन्य चपरासियों को दी गई पदोन्नति अवैध मानी गई। अपीलकर्ता को पदोन्नति देकर अवैधता को कायम रखने के लिए इसका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, एक पदोन्नति जो नियमों द्वारा अधिकृत नहीं थी।

खंडपीठ ने कहा,

“28.06.1999 के दो संचारों का हवाला देते हुए एक और तर्क उठाया गया, जिसमें झीना रानी मानसिंह और ललातेंदु रथ को चपरासी के पद से पदोन्नति पर ट्रेसर के रूप में नियुक्त किया गया, जिसके आधार पर याचिकाकर्ता अनुच्छेद 14 के उल्लंघन का दावा कर रहा है, अर्थात भेदभाव। इतना ही कहना पर्याप्त है कि यह न्यायालय विभाग द्वारा की गई अवैधताओं पर मुहर नहीं लगा सकता, जबकि इसे कायम रखा गया। न्यायालय में आने वाला कोई भी वादी न्यायालय से विभाग को कानून या वैधानिक नियमों का उल्लंघन करते हुए कार्य करने का निर्देश मांगते हुए नकारात्मक भेदभाव का दावा नहीं कर सकता। यह कानून का एक स्थापित प्रस्ताव है कि अनुच्छेद 14 नकारात्मक समानता की परिकल्पना नहीं करता है।”

आर. मुथुकुमार और अन्य बनाम अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक टैंगेडको और अन्य (2022) के मामले का भी संदर्भ दिया गया, जहां न्यायालय ने कहा,

“यदि किसी एक या लोगों के समूह को कानूनी आधार या औचित्य के बिना कोई लाभ या फायदा दिया गया तो उस लाभ को कई गुना नहीं बढ़ाया जा सकता, या समानता या समानता के सिद्धांत के रूप में उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता।”

तदनुसार, अपील खारिज कर दी गई।

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साभार: लाइव लॉ

विवेक कुमार जैन
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