आगरा /नई दिल्ली 04 दिसंबर ।
सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी ) की आलोचना की कि उसने अपनी राय एक समिति को ‘आउटसोर्स’ कर दी है और अपनी राय केवल समिति के निष्कर्षों के आधार पर ही दी।
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने कहा,
“एनजीटी , नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल एक्ट 2010 के तहत गठित ट्रिब्यूनल है। ट्रिब्यूनल को अपने समक्ष मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर पूरी तरह से विचार करके अपना निर्णय लेना होता है। वह किसी राय को आउटसोर्स नहीं कर सकता और न ही ऐसी राय के आधार पर अपना निर्णय दे सकता है।”
इस संबंध में खंडपीठ ने कंथा विभाग युवा कोली समाज परिवर्तन ट्रस्ट और अन्य बनाम गुजरात राज्य और अन्य में सुप्रीम कोर्ट के 2022 के फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि एनजीटी के न्यायिक कार्यों को विशेषज्ञ समितियों को नहीं सौंपा जा सकता।

इस मामले में एनजीटी ने संयुक्त समिति की रिपोर्ट के आधार पर मेसर्स ग्रासिम इंडस्ट्रीज पर जुर्माना लगाया। हालांकि, कंपनी को न तो मामले में पक्षकार बनाया गया और न ही आदेश पारित करने से पहले कोई नोटिस जारी किया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा,
“एनजीटी द्वारा अपनाया गया दृष्टिकोण स्पष्ट रूप से एक व्यक्ति को बिना सुने दोषी ठहराने जैसा है।”
एनजीटी के आदेश को दरकिनार करते हुए कोर्ट ने मामले को नए सिरे से विचार के लिए ट्रिब्यूनल को भेज दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कोई भी प्रतिकूल आदेश पारित करने से पहले कंपनी को सुनवाई का अवसर दिया जाना चाहिए।
केस टाइटल: मेसर्स ग्रासिम इंडस्ट्रीज बनाम मध्य प्रदेश राज्य
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साभार: लाइव लॉ
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