आगरा/नई दिल्ली 16 जनवरी ।
सुप्रीम कोर्ट ने कुड्डालोर पॉवरजेन कॉर्पोरेशन लिमिटेड बनाम मेसर्स केमप्लास्ट कुड्डालोर विनाइल्स लिमिटेड और अन्य मामले में फैसला सुनाया कि कार्रवाई के भिन्न कारण पर दायर किया गया कोई भी वाद का मुकदमा सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (सीपीसी ) के आदेश II नियम 2 के तहत प्रतिबंध के अधीन नहीं होगा।
न्यायालय ने स्थायी निषेधाज्ञा की मांग करने वाले पहले मुकदमे की स्थापना के बाद बिक्री के लिए समझौते के विशिष्ट प्रदर्शन के लिए एक बाद के मुकदमे को उचित ठहराया, यह देखते हुए कि दोनों मुकदमे अलग-अलग कार्रवाई के कारणों पर आधारित थे।
ऑर्डर II आदेश 2 सीपीसी में यह अनिवार्य किया गया कि वादी एक ही कार्रवाई के कारण से उत्पन्न होने वाले अपने पूरे दावे को एक ही मुकदमे में शामिल करे। यह नियम दावों के विभाजन और एक ही कार्रवाई के कारण के आधार पर मुकदमों की बहुलता को रोकने का प्रयास करता है। हालांकि, न्यायालय ने कहा कि यह नियम तब लागू नहीं होगा, जब वाद का मुकदमा पहले मुकदमे के लिए कार्रवाई के कारण से भिन्न कार्रवाई के कारण पर दायर किया गया हो।
जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की खंडपीठ उस मामले की सुनवाई कर रही थी, जिसमें प्रतिवादी नंबर 1 (वादी-खरीदार) और प्रतिवादी नंबर 2 (प्रतिवादी-विक्रेता) के बीच अचल संपत्ति के संबंध में बिक्री के लिए समझौता किया गया। विवाद तब उत्पन्न हुआ, जब प्रतिवादी नंबर 2 ने 2008 में अपीलकर्ता के पक्ष में उसी संपत्ति के लिए एक और सेल डीड निष्पादित किया।
प्रतिवादी नंबर 1 ने शुरू में स्थायी निषेधाज्ञा की मांग करते हुए मुकदमा दायर किया और वाद में बिक्री समझौते के विशिष्ट प्रदर्शन और बाद के सेल डीड को शून्य और अमान्य घोषित करने के लिए एक दूसरा मुकदमा दायर किया। हालांकि, वह पहले मुकदमे के दौरान जानता था कि प्रतिवादी नंबर 2 ने अपीलकर्ता के पक्ष में उसी संपत्ति के लिए एक और सेल डीड निष्पादित किया, लेकिन वह राज्य सरकार के आदेश के कारण बिक्री समझौते और कब्जे के विशिष्ट प्रदर्शन के लिए राहत को शामिल करने में असमर्थ था, जो त्यागवल्ली गाँव में सेल डीड के रजिस्ट्रेशन को प्रतिबंधित करता है, जहां मुकदमा संपत्ति स्थित है।
ट्रायल कोर्ट ने आदेश II नियम सीपीसी को लागू किया और बिक्री समझौते के विशिष्ट निष्पादन के लिए प्रतिवादी नंबर 1 के मुकदमे को खारिज कर दिया। अदालत ने तर्क दिया कि वादी ने पहले मुकदमे में सभी दावों और राहतों को शामिल करने में विफल रहा, जबकि उसे पता था कि प्रतिवादी नंबर 2 ने पहले मुकदमे के दाखिल होने से पहले उसी संपत्ति के लिए एक और सेल डीड निष्पादित किया, जिसमें स्थायी निषेधाज्ञा की मांग की गई।
ट्रायल कोर्ट के फैसले से व्यथित होकर वादी ने मद्रास हाईकोर्ट के समक्ष अपील दायर की। हाईकोर्ट ने अपील स्वीकार की।
इसके बाद अपीलकर्ता (बाद के खरीदार) ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील की।
हाईकोर्ट के फैसले की पुष्टि करते हुए जस्टिस पारदीवाला द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया कि हालांकि पहले मुकदमे के बाद उसी कारण से एक बाद का मुकदमा दायर करना आदेश ll नियम 2 सीपीसी के तहत वर्जित है, लेकिन अलग कारण से दूसरा मुकदमा दायर करना वर्जित नहीं है।
न्यायालय ने कहा,
“आदेश II नियम 2 सीपीसी “के तहत प्रतिबंध का वास्तविक अर्थ यह होना चाहिए कि यह वादी को उसी कार्रवाई के कारण दावे, दावे के किसी भाग या राहत के लिए दूसरा मुकदमा शुरू करने से रोकता है, जिसका वादी पहले मुकदमे के दाखिल होने के समय हकदार था।”
न्यायालय ने फैसला सुनाया कि प्रतिवादी संख्या 1 के पास स्थायी निषेधाज्ञा के लिए प्रारंभिक मुकदमे में बिक्री के लिए समझौते के विशिष्ट प्रदर्शन और मुकदमे की संपत्ति के कब्जे की वसूली की राहत का पीछा न करने के लिए वैध आधार थे। इसने देखा कि सेल डीड के रजिस्ट्रेशन पर रोक लगाने वाले सरकारी आदेश ने प्रतिवादी नंबर 1 को पहले की कार्यवाही के भीतर बाद के मुकदमे में दावा की गई राहत की मांग करने से रोक दिया।
न्यायालय ने कहा,
“ऐसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है जहां वादी राहत का हकदार हो सकता है लेकिन ऐसी राहत एक निश्चित समय पर उपलब्ध नहीं थी। दूसरे शब्दों में पहले मुकदमे की संस्था के दौरान मौजूद परिस्थितियों के कारण ऐसी राहत प्राप्त करना असंभव था। हमारा मानना है कि ऐसे परिदृश्यों में न्यायालयों को आदेश II नियम 2 सीपीसी के तहत सिद्धांतों की ऐसी व्याख्या करनी चाहिए, जो केवल तकनीकी बातों तक सीमित न हो।
न्यायालय ने आगे कहा,
“हमारे विचार में बाद के मुकदमे में राहतें वास्तव में कार्रवाई के कारण पर आधारित हैं, जो कि पहले मुकदमे की नींव से अलग है। दूसरे मुकदमे में जो तथ्य साबित करने के लिए आवश्यक हैं और दावों का समर्थन करने के लिए सबूत भी पहले मुकदमे से अलग हैं। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि प्रतिवादी नंबर 1 पहले चरण में बाद के मुकदमे में दावा की गई राहतों के लिए प्रार्थना कर सकता था।”
इस संबंध में न्यायालय ने राजस्थान और इलाहाबाद हाईकोर्ट्स के क्रमशः रामजीलाल बनाम राजस्व मंडल, राजस्थान, एआईआर 1964 राज 114 में रिपोर्ट किए गए और नेशनल सिक्योरिटी एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम एस.एन. जग्गी, एआईआर 1971 ऑल 421 में रिपोर्ट किए गए निर्णयों को मंजूरी दी।
न्यायालय ने टिप्पणी की,
“राजस्थान हाईकोर्ट और इलाहाबाद हाईकोर्ट के इन निर्णयों में क्रमशः यह सही रूप से माना गया कि जब वादी के लिए पहली बार में कोई विशेष राहत प्राप्त करना संभव नहीं है, लेकिन ऐसी राहत उसे पहले मुकदमे के बाद किसी बाद की घटना के घटित होने पर उपलब्ध हो जाती है तो आदेश II नियम 2 के तहत प्रतिबंध उस वादी के रास्ते में नहीं आएगा, जिसने उन राहतों का दावा करने के लिए बाद में मुकदमा दायर किया। यह कहा जा सकता है कि उस बाद की घटना के घटित होने से संबंधित वादी के लिए कुछ राहतों का दावा करने के लिए कार्रवाई का एक नया कारण पैदा होता है, जिसे अन्यथा उसे दावा करने से रोका गया था।”
परिणामस्वरूप, न्यायालय ने अपील खारिज की, यह मानते हुए कि प्रतिवादी नंबर 1 का दूसरा मुकदमा आदेश II नियम 2 सीपीसी द्वारा वर्जित नहीं माना गया।
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साभार: लाइव लॉ