केंद्र सरकार ने जमानत पर अलग कानून बनाने के सुप्रीम कोर्ट के सुझाव को ठुकराया; कहा- बीएनएसएस के प्रावधान पर्याप्त

उच्चतम न्यायालय मुख्य सुर्खियां

आगरा /नई दिल्ली 28 जनवरी।

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि जमानत पर अलग कानून लाने का कोई प्रस्ताव नहीं है, क्योंकि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 (बीएनएसएस ) के प्रावधान पर्याप्त हैं।

सतेंदर कुमार अंतिल बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो मामले में 2022 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने जमानत देने की प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए केंद्र सरकार को अलग जमानत कानून लाने की सिफारिश की थी। पिछले साल कोर्ट ने केंद्र से पूछा था कि क्या अलग जमानत कानून पर विचार किया जा रहा है ?

कोर्ट के सवालों के जवाब में दाखिल हलफनामे में केंद्र सरकार ने कहा कि नया आपराधिक कानून बीएनएसएस , जिसने 1 जुलाई 2024 से दंड प्रक्रिया संहिता की जगह ली, अध्याय XXXV में जमानत और जमानत बांड से संबंधित है।

गृह मंत्रालय द्वारा दायर हलफनामे में कहा गया,

“भारतीय नागरिक सुरक्षा संधि (बीएनएसएस ), 2023 के अध्याय-XXXV में जमानत और बांड से संबंधित प्रावधान पर्याप्त माने जाते हैं, इसलिए ‘जमानत’ पर अलग से कानून लाने का कोई प्रस्ताव नहीं है।”

2022 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने उल्लेख किया कि यूनाइटेड किंगडम में जमानत अधिनियम है, जो एक सरल प्रक्रिया का पालन करके जमानत से निपटने वाला व्यापक कानून है। यूके जमानत अधिनियम में विचाराधीन कैदियों के साथ जेलों का भरा होना वारंट जारी करने से जुड़े मामले, दोषसिद्धि से पहले और बाद में जमानत देना, जांच एजेंसी और अदालत द्वारा शक्ति का प्रयोग, जमानत की शर्तों का उल्लंघन, अनुमान के अभेद्य सिद्धांत पर बांड और जमानत का निष्पादन और जमानत पाने का अधिकार शामिल है।

Also Read – सुप्रीम कोर्ट ने धर्मांतरण मामले में जमानत देने से इंकार करने पर की इलाहाबाद हाईकोर्ट की आलोचना

न्यायालय ने कहा कि हमारे देश में भी इसी तरह के अधिनियम की तत्पर आवश्यकता है। न्यायालय ने इस आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता स्वतंत्रता-पूर्व संहिता का ही एक विस्तार है जिसमें कुछ संशोधन किए गए हैं।

संघ ने न्यायालय को यह भी बताया कि उसने ‘गरीब कैदियों को सहायता’ योजना के क्रियान्वयन के लिए विस्तृत दिशा-निर्देश और मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) जारी की है, जिसे जून 2023 में राज्यों को सूचित किया गया। राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सलाह दी गई कि वे राज्य/केंद्र शासित प्रदेश के प्रत्येक जिले में अधिकार प्राप्त समिति और राज्य-मुख्यालय स्तर पर एक निरीक्षण समिति का गठन करें।

Stay Updated With Latest News Join Our WhatsApp  – Group BulletinChannel Bulletin

 

साभार: लाइव लॉ

विवेक कुमार जैन
Follow me

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *