सर्वोच्च अदालत ने कहा कि लोगों पर मुकदमा चलाने से बाल विवाह नहीं रुका है इसके लिए समुदाय-संचालित दृष्टिकोण की है आवश्यकता

उच्चतम न्यायालय मुख्य सुर्खियां
न्यायालय ने कहा कि बाल विवाह व्यक्ति से अपना साथी चुनने का विकल्प लेते हैं छीन
न्यायालय ने बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए बहु-क्षेत्रीय समन्वय और कानून प्रवर्तन अधिकारियों के लिए मजबूत प्रशिक्षण पर दिया जोर

आगरा/नई दिल्ली 19 अक्टूबर ।

सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि बाल विवाह पर रोक लगाने वाले कानून को विभिन्न समुदायों के अनुरूप बनाया जाना चाहिए और इसकी सफलता सुनिश्चित करने के लिए कानून को लागू करते समय समुदाय-संचालित दृष्टिकोण होना चाहिए

भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ, जिसमें जस्टिस जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा शामिल थे।

पीठ ने कहा कि इस तरह की शादियां करने वाले व्यक्तियों पर मुकदमा चलाना प्रभावी निवारक नहीं रहा है।

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कोर्ट ने कहा,

“कानून प्रवर्तन का उद्देश्य मुकदमा चलाना नहीं होना चाहिए, क्योंकि अभियोजन आधारित दृष्टिकोण इसके विपरीत साबित हुआ है।”

इसलिए, इसने बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 (पीसीएमए) के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए बहु-क्षेत्रीय समन्वय और कानून प्रवर्तन अधिकारियों के लिए मजबूत प्रशिक्षण की वकालत की।

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कोर्ट ने कहा,

“निवारक रणनीति को विभिन्न समुदायों के अनुरूप बनाया जाना चाहिए। कानून तभी सफल होगा, जब बहु-क्षेत्रीय समन्वय होगा। कानून प्रवर्तन अधिकारियों के प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण की आवश्यकता है। हम इस बात पर जोर देते हैं कि समुदाय संचालित दृष्टिकोण की आवश्यकता है।”

कोर्ट ने यह भी कहा कि बाल विवाह निषेध अधिनियम में कई खामियां हैं और विशेष रूप से इस तथ्य पर प्रकाश डाला कि कानून बाल विवाह की वैधता पर चुप है।

न्यायालय ने कहा कि ऐसे विवाह व्यक्ति से अपना साथी चुनने का विकल्प छीन लेते हैं।

इसलिए न्यायालय ने रेखांकित किया कि ऐसे विवाहों को रोकने की आवश्यकता है।

इसलिए, इसने यह सुनिश्चित करने के लिए कई दिशा-निर्देश जारी किए कि कानून अपने उद्देश्य को प्राप्त करे।

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पीठ ने कहा,

“हम निर्देश देते हैं कि निम्नलिखित दिशा-निर्देशों को लागू किया जाए…महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को निर्देश दिया जाता है कि वह सभी मुख्य सचिवों और नालसा को कार्यान्वयन के लिए निर्णय भेजे। हमने व्यापक निर्देश और दिशा-निर्देश दिए हैं।”

पीसीएमए के क्रियान्वयन के संबंध में एक जनहित याचिका (पीआईएल) में यह फैसला आया।

याचिकाकर्ता-एनजीओ ने तर्क दिया कि अधिनियम को अक्षरशः लागू नहीं किया जा रहा है। शीर्ष अदालत ने अप्रैल 2018 में इस मामले में केंद्र सरकार से जवाब मांगा था और इस साल 10 जुलाई को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

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याचिकाकर्ता-एनजीओ, सोसाइटी फॉर एनलाइटनमेंट एंड वॉलंटरी एक्शन की ओर से अधिवक्ता मुग्धा, कामरान ख्वाजा और सत्य मित्रा पेश हुए।

केंद्र सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी और वरिष्ठ अधिवक्ता स्वरूपमा चतुर्वेदी अधिवक्ता स्निधा मेहरा, रजत नायर, प्रत्यूष श्रीवास्तव, संदीप कुमार महापात्रा और अमरीश कुमार शर्मा के साथ पेश हुए।

[सोसाइटी फॉर एनलाइटनमेंट एंड वॉलंटरी एक्शन और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य]।

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साभार: बार & बेंच

विवेक कुमार जैन
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